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पं. दीनदयाल उपाध्याय का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं

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 Class 12th Hindi lesson 5 पं. दीनदयाल उपाध्याय का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं:–



लेखक : एक संक्षिप्त परिचय


जन्म 25 सितम्बर, 1916 ई01


जन्म स्थान नगला चन्द्रभान (मथुरा) 1 

पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय ।


माता- रामप्यारी ।


सम्पादन- पाञ्चजन्य, स्वदेश।


लेखन विधा : निबन्ध, उपन्यास, काव्य । 

भाषा : जनप्रचलित आम बोलचाल की भाषा।


शैली : विचारात्मक, विवेचनात्मक एवं आलोचनात्मक ।


प्रमुख रचनाएँ—सम्राट चन्द्रगुप्त, शंकराचार्य की जीवनी, एकात्म मानववाद, भारतीय अर्थनीति दशा और दिशा आदि।


मृत्यु- 11 फरवरी, 1968 ई01



दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 ई० को उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के नगला चन्द्रभान आम में हुआ था। अब इस ग्राम को 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम' नाम से जाना जाता है। इनके परदादा का नाम पंडित हरिराम उपाध्याय था जो एक प्रख्यात ज्योतिषी थे। इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा माँ का नाम रामप्यारी था। इनके पिता जलेसर में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे और माँ बहुत ही धार्मिक विचारधारा वाली महिला थी। इनके छोटे भाई का नाम शिवदयाल उपाध्याय था। दुर्भाग्यवश मात्र ढाई वर्ष के ही थे, तभी इनके पिता का असामयिक निधन हो गया। इसके बाद इनका परिवार राजस्थान राज्य के जयपुर जिले के ग्राम धनकिया में इनके नाना के साथ रहने लगा। यहाँ परिवार दुःखों से उबरने का प्रयास ही कर रहा था कि तपेदिक रोग के इलाज के दौरान इनकी माँ दो छोटे बच्चों को छोड़कर संसार से चली गयीं। जब ये 10 वर्ष के थे तभी इनके नाना का भी निधन हो गया। मामा ने इनका पालन-पोषण अपने बच्चों की तरह किया। छोटी अवस्था में ही अपना ध्यान रखने के साथ ही साथ इन्होंने अपने छोटे भाई के अभिभावक का दायित्व भी निभाया। परन्तु दुर्भाग्य से भाई को चेचक की बीमारी हो गयी और 18 नवम्बर, 1934 ई० को उसका निधन हो गया। दीनदयाल जी ने कम उम्र में ही अनेक उतार-चढ़ाव देखा। परन्तु अपने दृढ़ निश्चय से जिन्दगी में आगे बढ़े। इन्होंने सीकर से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। जन्म से बुद्धिमान और प्रतिभाशाली दीनदयाल को स्कूल और कालेज में अध्ययन के दौरान कई स्वर्ण पदक और प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए। इन्होंने अपनी स्कूल की शिक्षा बिड़ला कॉलेज पिलानी और स्नातक की शिक्षा कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धर्म कॉलेज से पूरी की। इसके पश्चात् इन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की, लेकिन आम जनता की सेवा के लिए इस नौकरी का इन्होंने परित्याग कर दिया।

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