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अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ संक्षिप्त परिचय, पवन-दूतिका सन्दर्भ सहित व्याख्या

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 अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ संक्षिप्त परिचय:–



• नाम – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

• जन्म – 1865 ई. में निजामाबाद, उत्तर प्रदेश

• माता का नाम – श्रीमती रुक्मिणी देवी

• पिता का नाम – पण्डित भोलासिंह उपाध्याय

• शिक्षा – स्वाध्याय से इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी,फारसी,

    संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञानप्राप्त किया।

• कृतियाँ,काव्य - संग्रह – प्रियप्रवास, वैदेही वनवास,

रसकलश (प्रबन्ध काव्य) चोखे चौपदे,

चुभते चौपदे, पद्य-प्रसून, ग्राम-गीत,

कल्पलता (मुक्तक काव्य)। उपन्यासप्रेमकान्ता,

ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिलाफूल। 

• नाटक – प्रद्युम्न विजय, रुक्मिणीपरिणय आदि।

• उपलब्धियाँ – हिन्दी साहित्य सम्मेलनों के सभापति,कवि सम्राट, साहित्य वाचस्पति आदिउपाधियों सहित प्रियप्रवास परमंगलाप्रसाद, पारितोषिका

• मृत्यु – 1947 ई.


पवन-दूतिका:–

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या


1. बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।

आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।

आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले।

प्रात:वाली सुपवन इसी काल वातयनों से।।

सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।

धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यो।।

प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती।

क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।




सन्दर्भ :–

प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा द्वारा प्रातःकालीन पवन को फटकार लगाने का वर्णन किया गया है। राधा को लगता है कि प्रातः की सुगन्धित वायु उसके दु:ख को और अधिक बढ़ा रही है।


व्याख्या:–

 कवि कहता है कि एक दिन जब राधा उदास, खिन्न मन के साथ घर में अकेली बैठी हुई थी और उसकी दोनों आँखों से आँसू बहकर ज़मीन पर गिर रहे थे, तभी प्रातःकालीन सुगन्धित पवन रोशनदानों से होक घर के अन्दर प्रवेश करती है, किन्तु इससे राधा का दु:ख और अधिक बढ़ गया और वह दुःखी होकर पवन को फटकार लगाते हुए बोली कि हे प्रातःकालीन पवन! तू मुझे और क्यों सता रही है? क्या तू भी समय की कठोरता से दूषित हो गई है? क्या तुझ पर भी समय की क्रूरता का प्रभाव पड़ गया है? कहने का अभिप्राय यह है कि दुःखी राधा को सुगन्धित पवन का झोंका और भी दु:खी कर रहा है। इसे वह पवन की क्रूरता मान रही हैं और पवन से पूछ रही हैं कि आखिर वह क्रूर क्यों हो गई है?


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली– प्रबन्ध।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – अनुप्रास तथा मानवीकरण।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा।


2. मेरे प्यार नव जलद से कंज से नेत्रवाले।

जाके आए न मधुबन से औ न भेजा सँदेसा।।

मैं रो रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ।

जा के मेरी सब दु:ख कथा श्याम को तू सुना दे।

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी।

शोभावाली सुखद कितनी मंजु कँजें मिलेंगी।

प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे।

तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना।।




सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा के द्वारा पवन को दूतिका मानकर कृष्ण के लिए सन्देश भेजा जा रहा है। वे पवन से मार्ग में पड़ने वाली सुष्मा का वर्णन करते हुए, उसे उससे प्रभावित नहीं होने के लिए कहती हैं।


व्याख्या:–

 पवन से अपनी विरह-व्यथा बताती हुई राधा कहती हैं कि नवीन बादल से शोभायमान एवं कमल समान सुन्दर नेत्रों वाले मेरे प्रियतम कृष्ण ब्रज के इस वन (मधुबन) को छोड़कर जाने के पश्चात् फिर यहाँ नहीं आए और न तो उन्होंने मेरे लिए कोई सन्देश ही भेजा। उनसे बिछड़ कर मेरी दशा अत्यन्त दयनीय हो गई है। मैं रोते-रोते पागल हो रही हैं। अतः तुम जाकर मेरे इन दु:खों से उन्हें अवगत कराना। राधा पवन से रास्ते में आने वाले विभिन्न प्राकृतिक सौन्दर्य से सचेत रहने के लिए कहते हुए आगे कहती हैं कि मेरे घर से कुछ ही दूर जाने के बाद तुम्हें अत्यन्त मनोहारी और सुख प्रदान करने वाली कुंजे मिलेंगी। वहाँ की शीतल छाया एवं जल-प्रवाह व पक्षियों के कलरव की मधुर ध्वनियाँ तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगी, किन्तु मेरे दुःख को ध्यान में रखकर तुम वहाँ विश्राम न करने लगना।


काव्य गत सौन्दर्य:–

भाषा – खड़ीबोली।

शैली – प्रबन्ध। 

छन्द – मन्दाक्रान्ता।

अलंकार – उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश, अन्त्यानुप्रास एवं मानवीकरण।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति –अभिधा।


3. थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।

अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौन्दर्यशाली।।

वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।

आना जाना इस विपिन से मुह्यमाना न होना।।

जाते जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।

तो जा के सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।

धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।

सद्गन्धों से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना।।




सन्दर्भ :–

पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा मथुरा जाने वाली पवन-तिका को मार्ग में मिलने वाले मनोरम स्थलों व दृश्यों से अवगत कराती हुई उसे उनसे मोहित न होने, किन्तु दुखियों के कष्ट दूर करने की सीख देती हैं।


व्याख्या:–

 राधा मथुरा जा रही पवन-दूती से कहती हैं कि यहाँ से तनिक आगे जाने पर तुम्ह अत्यन्त रमणीय स्थल वृन्दावन मिलेगा, सैकड़ों पुष्पों वाले उस धाम में पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ, तरह-तरह के सुन्दर वृक्ष और लताएँ तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगी, किन्तु आने-जाने के क्रम में तुम उस वन से मोहित मत होना। राधा, दूती से आगे कहती हैं कि मार्ग में तुम्हें कोई थका-हारा व्यक्ति मिल जाए तो तुम उसके पास चले जाना। फिर धीरे-धीरे उसके शरीर का स्पर्श कर उसके दुःख-सन्ताप को मिटा देना। साथ ही उसके चारों और अपनी सुगन्ध बिखेर कर उस थके व्यक्ति को प्रफुल्लित कर देना।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली –प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास ।

गुण –प्रसाद।

शब्द शक्ति – अभिधा ।

भाव –साम्य निम्न पंक्तियों में उपरोक्त पद्यांश से मिलता-जुलता भाव प्रदर्शित किया गया है-


“माना जंगल प्यारा है गहरा है और घना है,

पर हाय! मुझे अपने वादे को पूरा भी करना है।”


4. लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।

होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।।

जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।

होठों की औ कमल-मख की म्लानताएँ मिटाना।।

कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।

धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।

जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।

छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।


सन्दर्भ :–

पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 राधा पवन को दतिका बनाकर कृष्ण के पास भेजते हुए कहती है कि उसे मार्ग में मिले पथिकों का उपकार करते हुए जाने की प्रेरणा देती है। अपने दुःख में भी उन्हें अन्य लोगों के दुःख की चिन्ता है।


व्याख्या:–

 कृष्ण की विरह-अग्नि में जलती हुई राधा पवन-दतिका को समझाती हुई कहती है, हे पवन! यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई। दे तो तू उसके वस्त्रों को मत उड़ाना। यदि वह थोड़ी भी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटा देना, साथ ही उसके होंठों और कमल सदृश-दिखने वाले उसके मुख की मलिनता को हर लेना। । राधा पवन से यह भी कहती हैं कि यदि तम्हें मार्ग में खेत में काम करने वाली कोई थकी हुई स्त्री दिखे तो तुम धीरे-धीरे उसके पास पहुँचकर अपने स्पर्श से उसकी थकान मिटा देना। साथ ही आकाश में बादल के दिखाई देने पर उसे पास लाकर उसकी छाया के द्वारा उस थकी हुई स्त्री को शीतलता

प्रदान करना, उसे आराम पहुँचाना।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली –प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता।

अलंकार– रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश एवं मानवीकरण

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति –अभिधा।


5. जाते-जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो।

न्यारी शोभा वर नगर की देखना मुग्ध होना।

तू होवेगी चकित लख के मेरु से मन्दिरों को।

आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क से हैं।

देखे पूजा समय मथुरा मन्दिरों मध्य जाना।।

नाना वाद्यों मधुर स्वर की मुग्धता को बढ़ाना।

किंवा लेके रुचिर तरु के शब्दकारी फलों को।

धीरे-धीरे मधुर रव से मुग्ध हो-हो बजाना।


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग :–

प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन को मथुरा भेजने से पूर्व वहाँ के भव्य मन्दिरों की शोभा का बखान कर रही हैं।


व्याख्या :–

कृष्ण के पास पवन को भेजने के क्रम में राधा उससे कहती हैं। कि मथुरा नगरी की शोभा अद्भुत है। वहाँ पहुँचकर तुम स्वयं ही उसकी सुन्दरता को देखने के लिए लालायित हो जाओगी, किन्तु ऐसे में तुम अपनी उत्सुकता पर रोक मत लगाना, अपितु नगरी की अनुपम शोभा को देखकर उस पर मुग्ध होना। तुम सूर्य के समान चमकते हुए कलशों से युक्त सुमेरु पर्वत जैसे ऊँचे-ऊँचे भव्य मन्दिरों को देख विस्मित रह जाओगे। राधा पवन से कहती हैं कि जब मथुरा के मन्दिरों में पूजा अर्चना की जा रही हो, उस समय तुम वहाँ जाकर वहाँ बज रहे वाद्यों की आवाज में आवाज मिलाकर उनकी मधुरता को बढ़ाना अन्यथा अपनी रुचि से किसी वृक्ष के शब्द रूपी फलों के स्वरों को सुनकर मुग्ध हो अपने मधुर स्वर से उनका साथ देना।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द –मन्दाक्रान्ता।

अलंकार – पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा एवं अनुप्रास ।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा ।



6. तू देखेगी जलद तन को जा वहीं तद्गता हो।

होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।

मुद्रा होगी वर वदन की मूर्ति-सी सौम्यता की।

सीधे-सीधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से।।।

नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है।

पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला।

छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती।

सदवस्त्रों में नवल तन की फटती-सी प्रभा है।




सन्दर्भ :–

पूर्ववत्।


प्रसंग :–

प्रस्तुत पद्य में पवन को दूत के रूप में मथुरा भेजने के क्रम में राधा उसे श्रीकृष्ण की पहचान बताता है।


व्याख्या:–

 राधा पवन से कहती हैं कि मथुरा जाने पर तुम बादलों जैसे श्यामवर्ण वाले कृष्ण को उन्हीं में तल्लीन होकर देखोगी। उनकी सन्दर आँखों से प्रकाश निकल रहा होगा। उनके सुन्दर, सौम्य मुख को देख ऐसा प्रतीत होगा जैसे । वह कोई मनोहर सौम्य मूर्ति हो, तुम्हें उनके बोले हुए शब्द अमृत से सींचे हुए-स। प्रतीत होंगे।

हे दूती! उनका शरीर नीले खिले हुए कमल के समूह के सदृश साँवला और । मनोरम है। वे कमर पर पीताम्बर अर्थात् पीला वस्त्र पहनते हैं, जो अति शोभायमान लगता है। उनके बालों से लटकी एक लट उनके मुख की शोभा और । बढ़ा देती है। सुन्दर वस्त्र धारण किए हुए कृष्ण के सौम्य शरीर से प्रकाश की किरणें-सी निकलती रहती है।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – उपमा, अनुप्रास एवं रूपक ।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा ।



7. साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली।

सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-सम्पोषिका है।

दोनों कन्धे वृषभ-वर-से हैं बड़े ही सजीले।

लम्बी बाँहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।

राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा।।

शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलों की।

नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होंगे।

मोतीमाला लसित उनका कम्बु-सा कण्ठ होगा।




सन्दर्भ :–

पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्य में राधा द्वारा पवन को कृष्ण की शोभा बताई जा रही। है, ताकि वह उन्हें आसानी से पहचान ले।


व्याख्या:–

 राधा पवन से कृष्ण की शोभा का गुणगान करती हई कहती हैं। कि उनका सम्पूर्ण शरीर साँचे में ढला हुआ अर्थात् सुडौल है, जिसे देख अलौकिक सौन्दर्य के दर्शन का आभास होता है। उनके शरीर से निकलने वाली सुगन्धित पुष्पों के सदृश सुगन्ध प्राणों का पोषण करने वाली अर्थात् मन को आह्लादित कर देने वाली है। उनके कन्धों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है। जैसे वे उत्तम कोटि के साँड़ के कन्धे हों। यहाँ कहने का भाव यह है कि। श्रीकृष्ण के कन्धे अति बलिष्ठ हैं। राधा आगे कहती हैं कि कृष्ण की भुजाएँ हाथी की सूड के सदृश बल की पिटारी अर्थात् अति शक्तिशाली है। उनके मस्तक पर राजाओं के समान अपूर्व सौन्दर्य से युक्त मुकुट विराजमान होगा। उनके दोनों कान मनोहर स्वर्ण-कुण्डलों से सुशोभित होंगे, वे अपनी दोनों भुजाओं में रत्न-जड़ित भुजबन्द धारण किए हुए होंगे। शंख जैसी सुन्दर और सुडौल दिखने वाली उनकी गर्दन में मोतियों की माला होगी। ।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता।

अलंकार – उपमा और अनुप्रास ।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा।




8. तेरे में है न यह गुण जो तू व्यथाएँ सुनाए।

व्यापारों को प्रखर मति औ युक्तियों से चलाना।

बैठे जो हों निज सदन में मेघ-सी कान्तिवाले।

तो चित्रों को इस भवन के ध्यान से देख जाना।

जो चित्रों में विरह-विधुरा का मिले चित्र कोई।

तो जा जाके निकट उसको भाव से यों हिलाना।

प्यारे हो के चकित जिससे चित्र की ओर देखें।

आशा है यों सुरति उनको हो सकेगी हमारी।।




सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा, श्रीकृष्ण के पास भेज रही पवन को समझाती हैं। कि मुख-विहीन होने पर भी किस प्रकार विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से वह उन्हें अपना सन्देश सुनाए।


व्याख्या:–

 राधा पवन से कहती हैं कि तुम कृष्ण के सम्मुख मेरे दुःखों को वाणी से कह पाने में असमर्थ हो, इस कारण मेरी व्यथा और सन्देश को उन तक पहुँचाने में अपनी तीव्र बुद्धि और विवेक का प्रयोग करते हुए उचित क्रिया-व्यापारों के माध्यम से अपना कार्य पूर्ण करना। यदि मथुरा पहुँचने पर तुम्हें मेरे प्रियतम जो बादलों की कान्ति के सदृश प्रतीत होते हैं, अपने घर में बैठे मिले, तब तुम भवन के सारे चित्रों को ध्यानपूर्वक देखना। राधा आगे कहती हैं कि यदि उन चित्रों में वियोग से व्यथित किसी स्त्री का चित्र दिखे तो तुम उसके निकट पहुँचकर उसे इस भाव से हिलाना कि मेरे प्रिय विस्मय के साथ उसे देखने लगें। मुह गता है कि उस विरहिणी का चित्र देख उन्हें मेरी याद आने लगेगी अर्थात् उन्हें आभास होने लगेगा कि मैं भी विरह-अग्नि । में उसी प्रकार जल रही हूँ, जिस प्रकार इस चित्र में यह स्त्री।।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – उपमा, अनुप्रास एवं मानवीकरण ।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा।


9. जो कोई भी इस सदन में चित्र उद्यान का हो।

औ हों प्राणी विपुल उसमें घूमते बावले से।

तो जाके सन्निकट उसके औ हिला के उसे भी।

देवात्मा को सुरति ब्रज के व्याकुलों की कराना।

कोई प्यारा कुसुम कुम्हला गेह में जो पड़ा हो।

तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसी को।

यों देना ऐ पवन बतला फूल-सी एक बाला।

म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है।



सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन से कहती है कि यदि श्रीकृष्ण के घर ऐसा कोई चित्र है, जिसमें उद्यान में बेचैन से घूमते प्राणी दर्शाए गए हो ता, शाए हुए फूल को श्रीकृष्ण के चरणों पर रखने के लिए। कहती है।


व्याख्या:–

 राधा पवन से कहती हैं कि यदि तुम्हें कृष्ण के घर में ऐसा कोई चित्र दिखे, जिसमें अनेक जीव-जन्तु बगीचे में पागलों की तरह घूम रहे हों तो उसके निकट जाकर तुम उसे भी हिला देना ताकि कृष्ण को उसे देख विरह में व्याकुल ब्रजवासियों की याद आ जाए। यदि कृष्ण के घर में तुम्हें कोई । सुन्दर-सा फूल मुरझाया हुआ दिखे तो उसे उड़ाकर उनके चरणों पर डाल देना, ताकि उन्हें यह आभास हो सके कि कुम्हलाए हुए फूल-सी उदास कोई बालिका व्याकुल होकर उनके चरण चूमना चाहती है।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – उपमा और अनुप्रास ।

शब्द शक्ति – अभिधा ।

गुण – प्रसाद।




10. जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।

छिद्रों में जा क्वणित करना वेण-सा कीचकों को।

यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की।

जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती।

ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही।

थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना।

यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा।

आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।।



सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तत पद्यांश में राधा पवन को कृष्ण के समक्ष अपना सन्देश भेजने के लिए बाँसों ओर कमल के खिले हुए फूलों को माध्यम बनाने की सीख दे रही हैं।


व्याख्या:–

 राधा पवन को कहती हैं कि यदि तुम्हें कृष्ण किसी उपवन अथवा बगीचे में खड़े नजर आएँ तो तुम बाँसों के छिद्रों में पहुँचकर उन्हें बाँसुरी के सदृश बजाना, ताकि उन्हें उनकी बाँसुरी सुनने के लिए व्याकुल होती गोपियों की याद आ जाए। राधा आगे कहती हैं कि मेरे प्रियतम के समक्ष ही खिले हुए कमल की। पंखुड़ियों को व्याकुल होकर थोड़ा-थोड़ा जल में डुबोना, ताकि ऐ बहन! यह देख कृष्ण को इसका आभास हो जाए कि कमल नेत्रों वाली राधा वियोग में व्यथित होकर अपने नेत्रों को आँसुओं में डुबोए रखती है अर्थात् दिन-रात रोती रहती हैं।


काव्य गत सौन्दर्य:–



भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – उपमा, अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा।



11. धीरे लाना वहन कर के नीप का पुष्प कोई।
औ प्यारे के चपल दृग के सामने डाल देना।
ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।
कैसी होती विरह वश मैं नित्य रोमांचिता हूँ।।
बैठ नीचे जिस विटप के श्याम होवें उसी का।
कोई पत्ता निकट उनके नेत्र के ले हिलाना।।
यों प्यारे को विदित करना चातुरी से दिखाना।
मेरे चिन्ता-विजित चित का क्लान्त हो काँप जाना।


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन को कदम्ब के पुष्प और वृक्ष के पत्ते के माध्यम से अपना सन्देशा सुनाने की विधियाँ बता रही हैं।


व्याख्या :–

राधा पवन दूती से कहती हैं हे पवन! मेरे प्रियतम (कृष्ण) की चंचल आँखों के आगे धीरे से कदम्ब का फूल रख देना, जिससे यह प्रकट हो सके कि मैं उनके वियोग में प्रतिदिन किस प्रकार शंकाओं से घिरी रहती हूँ और मिलन की आस में कदम्ब के फूल जैसी पुन:-पुन: रोमांचित हो उठती हूँ। हे दूतिका! कृष्ण जिस पेड़ के नीचे बैठे हों, तुम उसी का पत्ता उनकी आँख के समक्ष लाकर हिलाना। पत्ते को चतुराई पूर्वक हिलाकर तुम मेरे प्रियतम को इस बात से अवगत करा देना कि चिन्ता ने मेरे हृदय पर विजय पाकर मुझे किस प्रकार थका दिया है अर्थात् प्रिय के वियोग में वह प्रत्येक क्षण उन्हीं के विषय में चिन्तित रहती है।


काव्य गत सौन्दर्य :–


भाषा – खड़ीबोली।

 छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

गुण – प्रसाद ।

शैली – प्रबन्ध।

अलंकार – उपमा और अन्त्यानुप्रास।

 शब्द शक्ति – अभिधा।




12. सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो।

तो पाँवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना।

यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो।

मेरा होना अति मलिन औ सूखते नित्य जाना।

कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो।

तो प्यारे के दुग युगल के सामने ला उसे ही।।

धीरे-धीरे सँभल रखना और उन्हें यों बताना।।

पीला होना प्रबल दुःख से प्रोषिता-सा हमारा।।


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग :–

राधा, श्रीकृष्ण के पास पवन को दूत के रूप में भेजने से पहले समझा रही हैं कि वह मथुरा की भूमि पर पड़ी हुई मलिन लतिका और पेड़ के पीले पत्ते के माध्यम से उनके प्रिय को उनकी प्रेमिका की स्थिति का भान कैसे कराएगी।


व्याख्या:–

 राधा पवन से कहती है कि यदि मथुरा की भूमि पर तुम्हें कहीं मुरझाई हुई लता दिखाई दे तो उसे कृष्ण के पैरों के पास ले जाकर गिरा देना। इस प्रकार, उनके समक्ष स्पष्ट रूप से यह प्रकट कर देना कि प्रेम-विहीन रहकर मैं भी उसी लतिका की तरह मुरझाकर सदा सखते जा रही हैं। यदि नए पेड़ के पीले पड़ गए पत्ते पर तुम्हारी दृष्टि पड़े तो तुम हमारे प्रियतम की आँखों के आगे उसे धीरे से रख देना और उन्हें बताना कि पति से बिछड़ी हुई स्त्री के समान मैं भी नित्य पीली पड़ती जा रही हूँ


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता ।

अलंकार – उपमा और पुनरुक्तिप्रकाश ।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा।



13. यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाएँ।

धीरे-धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।

थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू।

हा ! कैसे तो व्यथित चित को बोध में दे सकूँगी।

पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।

तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।

छु के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।

जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तझी को लगाके।।



सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन से कहती हैं कि वह कृष्ण के पास जाकर उनके चरणों की धूल ले आए और यदि उससे कुछ भी न हो सके तो बस उनके पाँवों को छूकर ही चली आए।


व्याख्या:–

 कृष्ण के वियोग में व्यथित राधा, पवन-दूतिका से कहती हैं कि मेरे द्वारा बताए गए उपायों को अपनाकर तुम कृष्ण के समक्ष मेरी सारी व्यथाएँ रखना और आते हुए उनके पैरों की धूल ले आना, क्योंकि उसके बिना मैं अपने दुःखी मन को समझा नहीं सकूँगी। राधा आगे कहती है कि यदि तुम मेरे द्वारा समझाए गए कार्यों को पूर्ण करने में सक्षम न हो सको, तो मेरी बस एक विनती मान कर तुम उनके कमल रूपी चरणों को प्रेमपूर्वक स्पर्श करके चली आना। मैं तुम्हें ही हृदय से लगाकर स्वयं में नवजीवन का संचार करूँगी अर्थात् स्वयं को जीवित रख सकूँगी।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

छन्द – मन्दाक्रान्ता।

अलंकार – पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास एवं मानवीकरण।

गुण – प्रसाद ।

शब्द शक्ति – अभिधा।





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