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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का संक्षिप्त जीवन परिचय, प्रेम-माधुरी संदर्भ सहित व्याख्या

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 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का संक्षिप्त जीवन परिचय:–



• जन्म – 9 सितंबर , सन् 1850 ई0

• जन्म-स्थान – काशी (४० प्र०)। 

• पिता – गोपालचन्द्र 'गिरिधरवास'

• माता – पार्वती देवी

• मृत्यु – 6 जनवरी, सन् 1885 ई०

• भारतेन्दु युग के प्रवर्तक |


[प्रस्तुत काव्यांश भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित 'प्रेम-माधुरी' से अवतरित किया गया है।]



प्रेम-माधुरी:–



मारग प्रेम को को समुझे 'हरिचन्द' यथारथ होत यथा है। 

लाभ कछू न पुकारन में बदनाम ही होन की सारी कथा है। जानत है जिय मेरी भली विधि और उपाइ सबै विरथा है। 

बावरे हैं ब्रज के सिगरे मोहिं नाहक पूछत कौन बिया है ।।1।।


सन्दर्भ:–

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘प्रेम-माधुरी’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत सवैया में ब्रजबाला प्रेम-मार्ग पर चलने से होने वाली निन्दा एवं कष्टों का वर्णन कर रही है।


व्याख्या:–

 नायिका अपनी सखी से कहती है कि प्रेम मार्ग को समझना अत्यन्त कठिन है। यह मार्ग जीवन के कटु यथार्थ की तरह ही कठोर एवं कष्टकर है। वह अपनी सखी से अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए कहती है कि इस कठिन मार्ग पर चलते हुए उसे जो कष्ट हुए हैं उसे दूसरों को सुनाने से कोई लाभ नहीं है। दूसरों को इस प्रेम-कथा को सुनाने से उसे बदनामी के अतिरिक्त कुछ भी मिलने वाला नहीं है। वह कहती है कि उसे यह अच्छी तरह से पता है कि प्रम-व्यथा से मक्ति पाने के सभी उपाय व्यर्थ है, इसलिए इसे चुपचाप सहते। जाना ही अच्छा है। उसे ऐसा लगता है जैसे ब्रज के सारे लोग पागल हो गए हैं, सस व्यर्थ ही बार-बार उसकी प्रेम-पीड़ा के बारे में पूछते है कि उसे कष्ट क्या है? उसके अनुसार प्रेम-पीड़ा किसी दूसरे के सामने प्रकट करने की चीज नहीं है, कन ब्रजवासियों द्वारा बार-बार उसके कष्ट का कारण पूछने पर उसका दुःख हो जाता है और इसे सहना अत्यन्त कठिन है।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – ब्रज ।

शैली – मुक्तक।

छन्द – सवैया ।

अलंकार – अनुप्रास अलंकार।

गुण – माधुर्य।

शब्द शक्ति – लक्षणा।




रोकहि जो तो अमंगल होय औ प्रेम नसें जो कहें पिय जाइए। 

जी कहैं जाहु न तो प्रभुता जो कछू न कहें तो सनेह नसाइए। 

जो 'हरिचन्द' कहें तुमरे बिनु जीहैं न तो यह क्यों पति आइए। 

तासों पयान समै तुमरे हम का कहें आप हमें समझाइए | ।।2।।


सन्दर्भ :–

पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत सवैया में नायिका के द्वारा परदेश जा रहे अपने पति से चतुरतापूर्वक कहे गए कथन का वर्णन है।


व्याख्या:–

 कवि ने नायिका के उस मनोभाव का चित्रण किया है, जो वह परदेश जाने वाले अपने पति के सामने प्रकट कर रही है। नायिका अपने प्रियतम से कहती है कि यदि जाते समय वह उन्हें रोकती है तो टोक लगेगा, जो यात्रा के समय अमंगल का सूचक है, क्योंकि लोग यही कहते हैं कि यात्रा के समय टोकना अशुभ होता है। यदि वह उन्हें परदेश जाने के लिए कहती है तो उससे उसका प्रेम नष्ट हो जाएगा। वह कहती है यदि वह उन्हें परदेश जाने से मना करती है तो यह उन पर प्रभुत्व स्थापित करने अर्थात् उन्हें आदेश देने के समान होगा, जो अनुचित है और यदि वह कुछ नहीं कहती है तो उसका पति के प्रति स्नेह नष्ट होता है। वह कहती है कि ऐसी स्थिति में यदि वह अपने प्रियतम से कहे कि उनके बिना वह जीवित नहीं रह सकती है तो क्या वे विश्वास करेंगे? नायिका इस बात से परेशान है कि परदेश जाते हुए अपने पति से वह क्या कहे। अन्ततः वह अपने प्रियतम (पति) से ही अनुरोध करती है कि उसके परदेश गमन के समय वह उससे क्या कहे, यह बात उसे वह स्वयं समझा दे। नायिका चतुरतापूर्वक अपने मन की बात पति को बताते हुए उसके प्रेम को जीतने की कोशिश कर रही है।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – ब्रज ।

शैली – मुक्तक।

छन्द – सवैया ।

अलंकार – अनुप्रास ।

गुण – माधुर्य ।

शब्द शक्ति – लक्षणा।




आजु लौं जौ न मिले तो कहा हम तो तुमरे सब भाँति कहावें । 

मेरी उरानो है कछु नाहि सबै फल आपने भाग को पावें। 

जो 'हरिचंद' भई सो भई अब प्रान चले चहँ तासों सुनावें। 

प्यारे जू है जग की यह रीति विदा की समै सब कंठ लगावें। ।।3।।


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में नायिका की विरह दशा का वर्णन किया गया है।


व्याख्या:–

 विरह में व्याकुल एक नायिका अपने प्रेमी के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करती हुई कहती है कि आज तक तुम हमसे नहीं मिले तो कोई बात नहीं। हम तो सभी प्रकार से केवल तुम्हारे ही कहलाते हैं। मेरा आपको कोई उलाहना नहीं है, क्योंकि सभी अपने भाग्य का फल पाते हैं। जैसा जिसके भाग्य में लिखा होता है, वैसा ही उसे भोगना पड़ता है। अगर मेरे भाग्य में आपसे न मिलना लिखा था, तो इसमें कोई क्या कर सकता है? कवि हरिश्चन्द्र कहते हैं कि जो कुछ होना । था, वह तो हो चुका है, इसलिए बीती बातों को याद करके दुःखी होने से कोई फायदा नहीं है। अब मेरे प्राण इस तन से निकलने वाले हैं अर्थात् मेरा अन्तिम समय निकट आ गया है। अतः मैं आपको सुनाते हुए कह रही हूँ कि संसार की यह रीति (नियम) होती है, कि अन्तिम विदाई के समय सभी अपनों को गले से लगाते हैं। आप जीवन भर हमसे नहीं मिले तो न सही, परन्तु जब मैं सदैव के लिए आपसे दूर जा रही हूँ, तो आप आकर मुझे अपने गले से लगा लीजिए।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – ब्रज ।

शैली – मुक्तक ।

छन्द – मत्तगयन्द सवैया।

अलंकार – अनुप्रास अलंकार।

गुण – माधुर्य ।

शब्द शक्ति – लक्षणा।



व्यापकः ब्रह्म सबै थल पूरन हैं हमहूँ पहचानती हैं। 

पैं बिना नंदलाल बिहाल सदा 'हरिचन्द' न ज्ञानहि ठानती हैं। 

तुम ऊधौ यह कहियो उनसों हम और कछू नहिं जानती हैं। 

पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अखियाँ दुखियों नहिं मानती हैं। ।।4।।


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत सवैया में गोपियाँ उद्धव के ज्ञानमार्ग की अपेक्षा भक्तिमार्ग को अधिक महत्त्व देती हैं।


व्याख्या :–

गोपियाँ, उद्धव से यह कह रही हैं कि उन्हें भी यह अच्छी तरह से मालूम है कि ब्रह्म सम्पूर्ण विश्व के कण-कण में व्याप्त है, किन्तु उन्हें नन्दलाल (कृष्ण) के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। कवि हरिश्चन्द्र कह रहे हैं कि वे ज्ञान मार्ग को महत्त्व नहीं देती हैं। (ब्रह्म को पाने के तीन मार्ग हैं-ज्ञान, कर्म एवं भक्ति।) गोपियाँ भक्ति के द्वारा कृष्ण को पाना चाहती हैं, ज्ञान के द्वारा नहीं। इसलिए वे उद्धव से कहती हैं कि वे कृष्ण से यह कह दें कि वे उनकी भक्ति करने के अतिरिक्त उनको पाने के अन्य किसी भी मार्ग को नहीं जानती। कृष्ण को देखे बिना उनकी दुःखी आँखें किसी प्रकार सन्तुष्ट नहीं होंगी एवं उनके मनाने से भी नहीं मानेंगी। अतः वे कृष्ण को उनसे मिलने के लिए भेज दें, उनकी दुखियाँ आँखों को कृष्ण से मिलने की प्रतीक्षा है।


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – ब्रज ।

शैली – मुक्तक ।

छन्द – सवैया ।

अलंकार – अनुप्रास अलंकार।

गुण – माधुर्य।

शब्द शक्ति – लक्षणा।






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