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संत रैदास (रविदास) का जीवन परिचय | रचनाएँ, भक्ति योगदान और प्रमुख तथ्य | Sant Ravidas Biography in Hindi

संत रैदास (रविदास) का जीवन परिचय (Sant Ravidas Biography in Hindi)

संत रविदास (या रैदास) का जन्म काशी (वाराणसी) में माघ पूर्णिमासंवत् 1433

चौदह से तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास ।
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे स्री रविदास।।

इनका जन्म चर्मकार जाति में हुआ था। उनके पिता का नाम रग्घु (या राहू) और माता का नाम घुरविनिया (या करमा) था। इनकी पत्नी का नाम लोना था। वे जूते बनाने का कार्य करते थे और इस व्यवसाय को सम्मान के साथ अपनाया।

📚 शिक्षा और साधना:

रैदास जी ने किसी औपचारिक शिक्षा की जगह साधु-संतों की संगति से व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। वे अपने समय के परिश्रमी और समयनिष्ठ व्यक्ति थे। उनका जीवन सेवा, भक्ति और परोपकार से परिपूर्ण था।

🔗 गुरु और शिष्य परंपरा:

रैदास को रामानंदाचार्य का शिष्य माना जाता है, हालांकि इसके कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते। अनेक कथाओं के अनुसार उनकी कबीर से भी भेंट हुई थी।

नाभा दास कृत 'भक्तमाल' में उनके चरित्र और उच्च आचरण का वर्णन मिलता है। प्रियादास की टीका के अनुसार चित्तौड़ की रानी मीरा बाई उनकी शिष्या थीं और उन्होंने अपने कई भजनों में गुरु के रूप में रैदास का उल्लेख किया है:

गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुरसे कलम भिड़ी।
सतगुरु सैन दई जब आके जोत रली।।

🕊️ भक्ति भावना और व्यवहार:

रविदास अत्यंत दयालु, परोपकारी और संत स्वभाव के थे। वे साधु-संतों को बिना मूल्य जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके इसी स्वभाव के कारण उनके माता-पिता ने उन्हें घर से अलग कर दिया। बाद में वे पास में ही एक अलग कुटिया बनाकर भजन, साधना और सेवा में लगे रहते थे।

📝 संत रैदास की रचनाएँ:

  • रैदास की अनेक रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं।
  • इनकी भाषा में ब्रज, अवधी, और पंजाबी का मेल है।
  • इनकी कुछ रचनाएँ अरबी और फारसी प्रभाव वाली भी पाई जाती हैं, जो लोकप्रचलन के कारण मानी जाती हैं।
  • रैदास के पद बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग द्वारा भी प्रकाशित किए जा चुके हैं।

🕰️ संत रैदास का समय:

भिन्न स्रोतों के अनुसार, संत रविदास का जीवनकाल लगभग 1482 से 1584 वि. (1527 ई.)120 वर्ष मानी जाती है।

🌟 संत रविदास का योगदान:

  • समाज में समानता, भक्ति और सेवा का संदेश दिया।
  • जातिवाद और ऊँच-नीच के विरोधी थे।
  • उनकी वाणी आज भी संत परंपरा में पूजनीय है।

📌 निष्कर्ष:

संत रविदास समाज सुधारक, भक्ति कवि और आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने भक्ति मार्ग के माध्यम से लोगों को ईश्वर भक्ति, समानता और करुणा का मार्ग दिखाया। उनकी वाणी आज भी सिख, निर्गुण और रविदासी परंपरा में आदरपूर्वक गाई जाती है।

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