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जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय, गीत संदर्भ सहित व्याख्या

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 जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय:–



• जन्म- 30-01-1889 ई0

• जन्म स्थान काशी।

• पिता- देवीप्रसाद ।

• मृत्यु - 14-01-1937 ई०।

• छायावाद के प्रवर्तक।



गीत संदर्भ सहित व्याख्या:–


बीती विभावरी जाग री। 

अम्बर- पनघट में डुबो रही- 

तारा-घट ऊषा - नागरी ।

खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा, 

किसलय का अंचल डोल रहा, 

लो यह लतिका भी भर लायी- 

मधु-मुकुल नवल-रस गागरी।

अधरों में राग अमन्द पिये, 

अलकों में मलयज बन्द किये-

तू अब तक सोयी है आली! 

आँखों में भरे विहाग री ।।


('लहर' से)


सन्दर्भ :–

प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘गीत’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।


प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्रात:कालीन सौन्दर्य के माध्यम से प्रकृति के जागरण का आह्वान किया है।


व्याख्या:–

 इस पद्यांश में एक सखी दसरी सखी से कहती है, हे सखी! रात बीत गई है, अब तो तुम जागो। गगनरूपी पनघट में उषारूपी नायिका तारारूपी घड़े को डुबो रही है अर्थात् समस्त नक्षत्र प्रभात के आगमन के कारण आकाश में लीन हो गए हैं। प्रातःकाल के आगमन पर पक्षियों के समूह कलरव कर रहे हैं। शीतल मन्द सुगन्धित हवा चलने से पल्लवों के आँचल हिलने लगे हैं। लताएँ भी नवीन परागरूपी रस से युक्त गागर को भर लाई है। (समस्त कलियाँ पुष्पों में परिवर्तित होकर पराग से युक्त हो गई हैं); परन्तु हे सखी! तू अपने अधरों में प्रेम की मदिरा को पिए हए, अपने बालों में सुगन्ध को समाए हुए तथा आँखों में आलस्य भरे हुए सो रही है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि प्रातःकाल होने पर सर्वत्र जागरण हो गया है और तू अभी तक सोई


काव्य गत सौन्दर्य:–


भाषा – शुद्ध संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली ।

शैली – गीति।

अलंकार – सांगरूपक, अनुप्रास, उपमा, मानवीकरण, पुनरुक्तिप्रकाश एवं यमक । 

गुण – माधुर्य ।

शब्द शक्ति – लक्षणा एवं व्यंजना।




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