हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय (Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi)
हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी के प्रसिद्ध निबंधकार, आलोचक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। उनका जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दूबे का छपरा गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री अनमोल द्विवेदी संस्कृत और ज्योतिष के विद्वान थे, जिससे उन्हें बचपन से ही इन विषयों की शिक्षा प्राप्त हुई।
इन्होंने काशी में संस्कृत और ज्योतिष का गहन अध्ययन किया तथा शान्तिनिकेतन (बोलपुर, पश्चिम बंगाल) में हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में 11 वर्षों तक कार्य किया।
🎓 शिक्षा व सम्मान:
- डी.लिट्: 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय से
- पद्मभूषण: भारत सरकार द्वारा 1957 में
- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय व पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे
- हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के सभापति भी रहे
इनका निधन 19 मई, 1979
📚 साहित्यिक योगदान:
आचार्य द्विवेदी मौलिक चिन्तक, भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ तथा बंगला व संस्कृत भाषा के विद्वान थे। वे एक साथ निबंधकार, आलोचक, उपन्यासकार, इतिहासकार और संपादक थे। उनकी रचनाओं में प्राचीनता और नवीनता का समन्वय मिलता है।
🖋️ निबंधकार रूप में:
- हिन्दी ललित निबंध लेखन में अद्वितीय स्थान
- भारतीय संस्कृति, कला, धर्म, इतिहास आदि विषयों पर गहन विचार
🕵️ आलोचक और शोधकर्ता:
- हिन्दी साहित्य के इतिहास की नवीन व्याख्या
- आदिकालीन साहित्य, जैन-साहित्य और अपभ्रंश साहित्य का विश्लेषण
- सूरदास, कबीर जैसे कवियों पर महत्वपूर्ण आलोचनात्मक लेखन
📖 उपन्यासकार के रूप में:
- चार सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास
- इतिहास और कल्पना का संतुलित संयोजन
📚 प्रमुख रचनाएँ:
निबंध-संग्रह:
- अशोक के फूल
- कुटज
- विचार प्रवाह
- विचार और वितर्क
- आलोक पर्व
- कल्पलता
आलोचना:
- सूरदास
- कालिदास की लालित्य योजना
- कबीर
- साहित्य-सहचर
- साहित्य का मर्म
इतिहास:
- हिन्दी-साहित्य की भूमिका
- हिन्दी-साहित्य का आदिकाल
- हिन्दी-साहित्य
उपन्यास:
- बाणभट्ट की आत्मकथा
- चारुचन्द्रलेख
- पुनर्नवा
- अनामदास का पोथा
सम्पादन कार्य:
- नाथ सिद्धों की बानियाँ
- संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो
- सन्देश रासक
अनूदित कृतियाँ:
- प्रबन्ध चिन्तामणि
- पुरातन प्रबन्ध संग्रह
- प्रबन्धकोश
- विश्वपरिचय
- लाल कनेर
- मेरा बचपन
📌 निष्कर्ष:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने विचार, ज्ञान और सृजन की त्रिवेणी को एक साथ प्रस्तुत किया। उनका साहित्यिक योगदान हिन्दी जगत के लिए अमूल्य धरोहर है।
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