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कबीरदास का जीवन परिचय | रचनाएँ और विचार | Kabir Das Biography in Hindi

कबीरदास का जीवन परिचय (Kabir Das Biography in Hindi)

संत कबीरदास ज्ञानाश्रयी निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख प्रवर्तक थे। उनका जन्म संवत् 1456 (सन् 1398)ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को माना जाता है। इस विषय में एक प्रसिद्ध दोहा है:

चौदह सौ पचपन साल गये, चन्द्रवार एक ठाठ ठये।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी प्रगट भये।।
– कबीर चरित बोध

उनके जन्म को लेकर कई मत हैं। एक मान्यता अनुसार वे एक ब्राह्मणी के पुत्र थे जिन्हें काशी के लहरतारा तालाब के पास छोड़ दिया गया। वहाँ से नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने उन्हें पाला। इसी कारण वे जुलाहा समाज में पले-बढ़े।

🧘‍♂️ गुरु और साधना:

कबीरदास ने रामानन्द को अपना गुरु माना। उनके अनुसार:

काशी में परगट भये, हैं रामानन्द चेताये।

उन्हें 'राम' नाम का गुरुमंत्र मिला जो उनके भक्ति और चिंतन का मूल बना। उनकी पत्नी का नाम लोई था और उनके पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का कमाली था।

🌍 विचार और दर्शन:

कबीरदास निर्भीक, मस्तमौला और सच्चे मानवतावादी संत थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दोनों पंथों की रूढ़ियों का विरोध किया और मानव धर्म को सर्वोपरि माना। उनका कहना था कि मोक्ष कर्मों से प्राप्त होता है, स्थान से नहीं। इसी विचार को प्रमाणित करने वे अंत समय में मगहर चले गए, क्योंकि जन-मान्यता थी कि मगहर में मरने से नरक प्राप्त होता है।

संवत् पंद्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गौन।
माघे सुदी एकादशी, रलौ पौन में पौन।।

उनकी मृत्यु संवत् 1575 (सन् 1518) में मानी जाती है।

📚 कबीरदास की रचनाएँ:

कबीरदास स्वयं लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे। उनके अनुसार:

मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।

उनकी वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित है। इसमें तीन प्रमुख भाग हैं:

  • साखी – नैतिक और आध्यात्मिक उपदेश
  • सबद (पद) – भक्ति और ध्यान संबंधी गीत
  • रमैनी – तात्विक व चिन्तनात्मक विचार

हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार साखी सबसे अधिक प्रामाणिक मानी जाती है, फिर सबद और उसके बाद रमैनी

🔎 निष्कर्ष:

कबीरदास भारतीय संत परंपरा के प्रमुख स्तंभ हैं। उन्होंने समन्वयवादी दर्शन, निराकार भक्ति और समाज-सुधार के लिए जो कार्य किए, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

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