हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय | प्रमुख रचनाएं, भाषा शैली, सम्मान
पूरा नाम: हरिशंकर परसाई
जन्म: 22 अगस्त, 1922
जन्म स्थान: जमानी गाँव, होशंगाबाद जिला, मध्य प्रदेश
मृत्यु: 10 अगस्त, 1995
मृत्यु स्थान: जबलपुर, मध्य प्रदेश
🔰 जीवन परिचय:
हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1922 को मध्य प्रदेशजमानी गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर स्नातक तक की पढ़ाई मध्यप्रदेश में हुई। इसके बाद इन्होंने हिंदी में एम.ए. नागपुर विश्वविद्यालय से किया और कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया।
बचपन से ही साहित्य और कला में रुचि थी। अध्यापन छोड़कर पूरी तरह से साहित्य-साधना में लग गए। जबलपुर में उन्होंने ‘वसुधा’ नामक पत्रिका का संपादन किया। वे धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान के लिए नियमित लेखन करते रहे।
🖋️ साहित्यिक योगदान:
हरिशंकर परसाई हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्यकार माने जाते हैं। उनके व्यंग्य मुख्यतः राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों पर आधारित होते हैं।
उनकी पहली रचना "स्वर्ग से नरक जहाँ तक" 1948 में प्रकाशित हुई। उन्होंने धार्मिक पाखंड, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों पर तीखा प्रहार किया।
📚 प्रमुख रचनाएं:
- कहानी-संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे
- उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज
- निबंध संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बईमान की परत, पगडंडियों का ज़माना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है, तिरछी रेखाएं, ठिठुरता गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर
- संपादन: वसुधा (पत्रिका)
🗣️ भाषा शैली:
हरिशंकर परसाई की भाषा आम बोलचाल की है, लेकिन प्रभावशाली है। उन्होंने लक्षणा और व्यंजना का उत्कृष्ट प्रयोग किया। उनकी शैली व्यंग्यात्मक, विवरणात्मक और कथात्मक है। मुहावरों, कहावतों, और देशज शब्दों का प्रयोग उन्हें लोकप्रिय बनाता है।
🎖️ सम्मान:
उन्हें उनकी प्रसिद्ध कृति ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
🕯️ निधन:
10 अगस्त 1995 को जबलपुर में इनका निधन हुआ। वे हिंदी के महान व्यंग्यकारों में सदैव याद किए जाएंगे।
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