पवन-दूतिका पद्यांश व्याख्या | हरिऔध | मथुरा मंदिर की शोभा वर्णन
पद्यांश:
5. जाते-जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो।
न्यारी शोभा वर नगर की देखना मुग्ध होना।
तू होवेगी चकित लख के मेरु से मन्दिरों को।
आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क से हैं।
देखे पूजा समय मथुरा मन्दिरों मध्य जाना।।
नाना वाद्यों मधुर स्वर की मुग्धता को बढ़ाना।
किंवा लेके रुचिर तरु के शब्दकारी फलों को।
धीरे-धीरे मधुर रव से मुग्ध हो-हो बजाना।
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
प्रसंग:
इस पद्यांश में राधा पवन को मथुरा भेजने से पूर्व वहाँ के भव्य मन्दिरों की शोभा का बखान कर रही हैं।
व्याख्या:
कृष्ण के पास पवन को भेजते हुए राधा कहती हैं कि मथुरा नगरी अत्यंत भव्य और आकर्षक है। वहाँ पहुँचकर तुम स्वयं उसकी सुंदरता से आकर्षित हो जाओगे। मथुरा के मेरु जैसे ऊँचे मन्दिर, जिनके ऊपर सूर्य समान चमकते कलश हैं, तुम्हें चकित कर देंगे। पूजा के समय मंदिरों में वाद्य बजते हैं, तुम भी अपने मधुर स्वर से उस वातावरण की शोभा बढ़ाना। यदि चाहो तो वृक्षों के फलों के मधुर स्वर सुनकर भी तुम आनंदित होकर उसका साथ देना।
काव्यगत सौन्दर्य:
- भाषा: खड़ीबोली
- शैली: प्रबन्ध
- छन्द: मन्दाक्रान्ता
- अलंकार: पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा, अनुप्रास
- गुण: प्रसाद
- शब्द शक्ति: अभिधा
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