पवन-दूतिका | अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
पद्यांश:
लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।।
जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।
होठों की औ कमल-मख की म्लानताएँ मिटाना।।
कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।
धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।
सन्दर्भ:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
प्रसंग:
राधा पवन को दतिका बनाकर कृष्ण के पास भेजते हुए कहती है कि उसे मार्ग में मिले पथिकों का उपकार करते हुए जाने की प्रेरणा देती है। अपने दुःख में भी वे दूसरों के दुःख की चिन्ता करती हैं।
व्याख्या:
कृष्ण की विरह में जलती राधा पवन-दूतिका से कहती हैं – यदि मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखे, तो उसके वस्त्र मत उड़ाना। यदि वह थकी हो तो उसकी थकावट मिटा देना। उसके चेहरे की मलिनता और होंठों की म्लानता को दूर कर देना।
यदि कोई कृषक कन्या खेत में श्रम करती दिखे तो उसके पास जाकर धीरे-धीरे उसकी थकान हर लेना। अगर आकाश में कोई बादल दिखे तो उसे नीचे लाकर उस स्त्री को छाया द्वारा राहत देना।
काव्यगत सौन्दर्य:
- भाषा: खड़ीबोली
- शैली: प्रबन्ध
- छंद: मन्दाक्रान्ता
- अलंकार: रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण
- गुण: प्रसाद
- शब्द-शक्ति: अभिधा
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