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कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं

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 Class 12th Hindi lesson 3 कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं:–



लेखक : एक संक्षिप्त परिचय


जन्म - 29 मई, 1906 ई० ।


जन्म-स्थान- देवबन्द (सहारनपुर)


पिता पं० रमादत्त मिश्र ।


सम्पादन- 'ज्ञानोदय', 'नया जीवन','विकास' ।


लेखन विधा : गद्य-साहित्य ।


भाषा : तत्सम प्रधान, शुद्ध और साहित्यिक खड़ी बोली ।


शैली : भावात्मक, वर्णनात्मक, नाटकीय


प्रमुख रचनाएँ- आकाश के तारे, धरती के फूल, माटी हो गयी सोना, जिन्दगी मुस्कराई।


मृत्यु - 9 मई, सन् 1995 ई०।



स्वातन्त्र्य संग्राम की ज्योति और पत्रकारिता की साधना में जिन साहित्यकारों और गद्य शैलीकारों का अभ्युदय हुआ है, उनमें प्रभाकर जी का स्थान विशिष्ट है हिन्दी में लघुकथा, संस्मरण, रेखाचित्र और रिपो की अनेक विधाओं का इन्होंने प्रवर्तन और पोषण किया है। ये एक आदर्शवादी पत्रकार रहे हैं। अतः इन्होंने पत्रकारिता को भौतिक स्वार्थी की सिद्धि का साधन न बनाकर उच्च मानवीय मूल्यों की खोज और स्थापना में ही लगाया है।


प्रभाकर जी का जन्म 29 मई, 1906 ई० को सहारनपुर जनपद के देवबन्द ग्राम के एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनके पिता पं० रमादत्त मिश्र की आजीविका पूजा-पाठ और रोहिताई थी, पर विचारों की महानता और व्यक्तित्त्व की दृढ़ता में श्रेष्ठ थे। उनका जीवन अत्यन्त सरल और सात्विक था, पर प्रभाकर जी की माता का स्वभाव बड़ा कर्कश और उम्र था। अपने एक संस्मरण 'मेरे पिताजी' में लेखक ने दोनों का परिचय देते हुए लिखा है......वे दूध-मिश्री तो माँ लाल मिर्च"। इनकी रिक्षा प्रायः नगण्य ही हुई। एक पत्र में इन्होंने लिखा है.. "हिन्दी शिक्षा (सच माने) पहली पुस्तक के दूसरे पाठ खटमल खटमल टमटम टमटमा फिर साधारण संस्कृत। बस हरि ओम यानी बाप पढ़े न हम।" उस किशोर अवस्था में जबकि व्यक्तित्व के गठन के लिए विद्यालयो की शरण आवश्यक होती है, प्रभाकर जी ने राष्ट्रीय संग्राम में भाग लेना ही अधिक पसन्द किया। जब खुर्जा के संस्कृत विद्यालय में पड़ रहे थे, तब इन्होंने प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता मौलाना आसिफ अली का भाषण सुना, जिसका इन पर इतना असर हुआ कि ये परीक्षा छोड़कर चले आये। उसके बाद इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र सेवा में लगा दिया। ये सन् 1930-32 तक और सन् 1942 में जेल में रहे और निरंतर राष्ट्र के उच्च नेताओं के सम्पर्क में आते रहे। इनके लेख इनके राष्ट्रीय जीवन के मार्मिक संस्मरणों की जीवन्त झांकियाँ हैं, जिनमें भारतीय स्वाधीनता के इतिहास के महत्त्वपूर्ण पृष्ठ भी हैं। स्वतन्त्रता के बाद इन्होंने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता में लगा दिया। 9 मई, सन् 1995 ई0 को इस महान् साहित्यकार का निधन हो गया। प्रभाकर जी के प्रसिद्ध प्रकाशित ग्रन्थ हैं-


रेखाचित्र 'नई पीढ़ी के विचार', 'जिन्दगी मुस्कराई', 'माटी हो गयी सोना', 'भूले-बिसरे चेहरे'।

लघु कथा 'आकाश के तारे', 'धरती के फूल'।

संस्मरण: ' दीप जले शंख बजे'।

ललित निबन्ध : 'क्षण बोले कण मुस्काए', 'बाजे पायलिया के घुंघरू'।

संपादन इन्होंने नया जीवन' और 'विकास' नामक दो समाचार पत्रों का संपादन किया। इन पत्रों में प्रभाकर जी ने सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षिक समस्याओं पर आशावादी और निर्भीक विचारों को प्रस्तुत किया।


अन्य विशिष्ट रचनाएँ 'महके आँगन चहके द्वार इनकी एक महत्वपूर्ण कृति है।

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