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पंचलाइट कहानी का सारांश

 पंचलाइट कहानी का सारांश :–



पंचलाइट का अर्थ है पेट्रोमेक्स अथवा गैस की लालटेन रेणु जी द्वारा लिखित इस कहानी में ग्रामीण जीवन का वास्तविक चित्र खींचा गया है। महतो टोली में गाँव के कुछ अशिक्षित लोग है। उन्होंने रामनवमी मेले से एक पेट्रोमेक्स खरीदा। इस पेट्रोमेक्मा को गाँववाले 'पंचलैट' कहकर पुकारते थे। पंचलैट खरीदने के बाद जो दस रुपये बच गये थे, उनसे पूजा की सामग्री गयी। सबको 'पंचलैट' आने की प्रसन्नता थी। इस खुशी में कीर्तन का आयोजन किया गया। थोड़ी देर में टोली के सभी लोग 'पंचलैट' देखने के लिए एकत्र हो गये। सरदार ने 'पंचलैट' खरीदने का पूरा किस्सा लोगों को सुनाया। टोली के लोगों ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी नजरों से देखा। लेकिन प्रश्न यह पैदा हुआ कि 'पंचलैट' को जलायेगा कौन? खरीदने से पहले किसी के मस्तिष्क में यह बात नहीं आयी थी। यह निर्णय हुआ कि दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से 'पंचलैट' नही जलाया जायगा, चाहे वह बिना जले ही पडा़ रहे। आज किसी ने अपने घर में ढिबरी (डिबिया) भी नहीं जलायी थी। 'पंचलैट' के न जलने से पंचों के चेहरे उतर गये। राजपूत टोली के लोग उनका मजाक बनाने लगे, लेकिन सबने धैर्यपूर्वक उस मजाक को सहन किया। गुत्री काकी की बेटी मुनरी वहीं पर बैठी थी उसे पता था कि गोधन पंचलैट जलाना जानता है, लेकिन पंचायत ने गोधन का हुक्का-पानी बन्द कर रखा था। मुनरी गोधन से प्रेम करती थी। उसने अपनी बात अपनी सहेली कनेली को बतायी कमेली ने यह सूचना सरदार तक पहुंचा दी कि गोधन 'पंचलैट' जलाना जानता है। सभी पंच सोच-विचार में पड़ गये कि गोधन को बुलाया जाय अथवा नहीं। अन्त में उसे बुलाने का निर्णय लिया गया।


सरदार ने छड़ीदार को भेजा। लेकिन छड़ीदार के कहने से गोधन 'पंचलैट' जलाने के लिए नहीं आया। बाद में गुलरी काकी गोधन के पास गयी और उसे मनाकर ले आयी। गोधन ने पूछा कि 'स्प्रिंट' कहाँ है। "स्पिट' का नाम सुनकर सभी लोग उदास हो नये, लेकिन गोधन ने अपनी होशियारी से गरी के तेल की सहायता से ही 'पंचलैट' जला दिया।


पंचलैट के जलने पर सभी लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। पंच गोधन की पुनः जाति में ले लेते हैं। लोगों ने एक स्वर में महावीर स्वामी की जयध्वनि की कीर्तन शुरू हो गया। गोधन ने सबका दिल जीत लिया। मुनरी ने भी प्रेम-दृष्टि से गोधन की ओर देखा। सरदार ने गोधन से कहा-


"तुम्हारा सात खून माफ खूब गाओ सलीमा का गाना।" अन्त में, गुलरी काकी ने गोधन को रात के खाने पर बुलाया।

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