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सोहत ओढ़ै पीतु पटु, स्याम सलौने गात। मनौ नीलमनि सैल पर, आतपु परयौ प्रभात।।

 सोहत ओढ़ै पीतु पटु, स्याम सलौने गात।

मनौ नीलमनि सैल पर, आतपु परयौ प्रभात।।


संदर्भ:-

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के भक्ति शीर्षक से उद्धृत है। यह बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सतसई से लिया गया है।


 प्रसंग :-

प्रस्तुत दोहे में पीले वस्त्र पहने हुए श्री कृष्ण के सौंदर्य का चित्रण किया गया है।


 व्याख्या :-

बिहारी जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के सांवले–सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र ऐसे लग रहे हैं मानो नीलमणि के पर्वत पर सुबह सुबह सूर्य की पीली किरणें पड़ रही हों अर्थात श्री कृष्ण ने जो पीले रंग के वस्त्र अपने शरीर पर धारण किऐ हैं, वे नीलमणि के पर्वत पर पड़ रही सूर्य की पीली किरणों के समान लग रही हैं। उनका यह सौंदर्य अवर्णनीय है।


 काव्यगत सौंदर्य 

भाषा - ब्रज। शैली - मुक्तक 

गुण - माधुर्य। रस - श्रृंगार

 छंद - दोहा।        

 अलंकार - अनुप्रास अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार।



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