पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेंमी–माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृ–भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
संदर्भ –
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक काव्य खण्ड के पुष्प की अभिलाषा शीर्षक से उद्धृत है।यह कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित युगचरण से ली गई है।
प्रसंग –
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पुष्प के माध्यम से(up board classes) देश पर बलिदान होने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या-
कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला में पिरोया जाऊँ और प्रेमिका के मन को आकर्षित करूं। हे प्रभु! न ही मेरी यह इच्छा है कि मैं बड़े-बड़े राजाओं के शवों पर चढ़कर सम्मान प्राप्त करूं। मेरी यह कामना भी (upboardclasses.in) हीं है कि मैं देवताओं के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर अभिमान करूं। भाव यह है कि इस प्रकार के किसी भी सम्मान को पुष्प अपने लिए निरर्थक समझता है।
पुष्प उपवन के माली से प्रार्थना करता है कि हे माली ! तुम मुझे तोड़कर उस मार्ग में डाल देना, जिस मार्ग से होकर अनेक राष्ट्र-भक्त वीर, मातृभूमि पर अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए जा रहे हों। फूल उन वीरों की चरण-रज का स्पर्श पाकर भी अपने को धन्य मानेगा; क्योंकि उनके चरणों पर चढ़ना ही देश के बलिदानी वीरों के लिए उसकी सच्ची श्रद्धांजलि है।
काव्य गत सौन्दर्य:-
भाषा - सरल खड़ी बोली।
शैली - प्रतीकात्मक,आत्मपरक तथा भावात्मक।
गुण -ओज।
रस - वीर।
छन्द - तुकांत -मुक्त।
शब्द शक्ति - अभिधा एवं लक्षणा।
अलंकार - अनुप्रास अलंकार।
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suii
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