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देखि देखी रघुबीर तन, सुर मानव धरि धीर। भरे विलोचन प्रेम जल, पुलकावली सरीर ।।

 देखि देखी रघुबीर तन, सुर मानव धरि धीर।

भरे विलोचन प्रेम जल, पुलकावली सरीर ।।

संदर्भ:–


 प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।

प्रसंग:–

 प्रस्तुत पद्यांश में सीता जी बार-बार श्रीराम को देख रही है तथा अपने मन को धैर्य बंधा रही हैं। श्रीराम के प्रति उनके सात्विक प्रेम का वर्णन किया गया है।


 व्याख्या:–

 श्री राम धनुष तोड़ने के लिए मंच पर खड़े हुए हैं, सीता जी उन्हें बार-बार देख रही है अर्थात उनके शरीर को निहार रही है और धैर्य धारण कर देवताओं को मनोवांछित वर प्रदान करने के लिए मना रही हैं ।उनके नेत्रों में प्रेम रूपी आंसू भरे हैं तथा शरीर में रोमांच भर गया है।


 काव्य गत सौंदर्य

 भाषा– अवधी।         शैली –प्रबंध और वर्णनात्मक

 गुण–माधुर्य।            रस –श्रृंगार

 छंद  –दोहा।       अलंकार –अनुप्रास अलंकार

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