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चरण कमल बंदों हरि राइ। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कुछ दरसाइ।।


    चरण कमल बंदों हरि राइ

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कुछ दरसाइ।।
 बहीरो सुने, गूंग पुनि बोलै, रंग चलै सिर छत्र धराइ। 
सूरदास स्वामी करुणामय, बार-बार बंदौ तिही पाइ।।

संदर्भ :–
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के पद शीर्षक से उद्धृत है यह सूरदास द्वारा रचित सूरसागर महाकाव्य से ली गई है।
प्रसंग:–
प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने भगवान श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए उनके चरणों की वंदना की है।


व्याख्या:–


श्रीकृष्ण के परम भक्त सूरदास जी श्री कृष्ण के कमल रूपी चरणों की महिमा का चित्रण करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! मैं आपके चरणों की वंदना करता हूं, जो कमल के समान कोमल है। इनकी महिमा अपरंपार है, जिनकी कृपा से लगड़ा व्यक्ति पर्वतों को लग जाता है, अंधे व्यक्ति को दिखाई देने लगता है, बहरे को सुनाई देने लगता है, गूंगा फिर से बोलने लगता है, और गरीब व्यक्ति राजा बनकर अपने सिर पर राज छात्र धारण कर लेता है। सूरदास जी कहते हैं—हे प्रभु! आपकी कृपा से असंभव असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। अतः ऐसे दयालु श्री कृष्ण के चरणों की में बार बार वंदना करता हूं।

काव्यगत सौंदर्य:–
भाषा                साहित्यिक ब्रज
शैली                  मुक्तक
गुण                   प्रसाद
रस                   भक्ति
छंद                   गेयात्मक
शब्द शक्ति          लक्षणा
अलंकार             पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार, अनुप्रास                                           अलंकार ,रूपक अलंकार







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