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उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग। विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।।

 उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।

विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।।


 संदर्भ:–

 प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।


 प्रसंग:–

 प्रस्तुत दोहे में उस समय का मनोहारी चित्रण किया गया है तब गुरू वविश्वमित्र की आज्ञा से श्री राम धनुष–भंग के लिए मंच से उठ खड़े होते हैं उस समय उनकी जो शोभा थी, उसका वर्णन वर्णन यहां किया गया है।


 व्याख्या:–

 तुलसीदास जी कहते हैं कि जब श्री राम जी स्वयंवर सभा में गुरु विश्वामित्र की आज्ञा प्राप्त करके धनुष–भंग के लिए मंच से उठते हैं, तो उनकी शोभा ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे मंच रूपी उदयाचल पर श्री राम रूपी बाल सूर्य का उदय हो गया हो, जिसे देखकर संत रूपी कमल पुष्प खिल उठे हो और उनके नेत्र रूपी भौरे प्रसन्न हो गए हो अर्थात जब श्रीराम मंच से खड़े हुए तो उस समय स्वयंबर सभा में उपस्थित सभी जन हर्षित हो उठे।

 काव्यगत सौंदर्य :–

भाषा –अवधि ।     शैली –प्रबंध और चित्रात्मक 

गुण –माधुर्य ।          रस –श्रृंगार 

छंद –दोहा ।      अलंकार –अनुप्रास अलंकार








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