रदरफोर्ड प्रकीर्णन प्रयोग या रदरफोर्ड का अल्फा (α) प्रकीर्णन प्रयोग
परिचय:
थॉमसन के परमाणु मॉडल के बाद वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने परमाणु की संरचना को और बेहतर समझने के लिए एक ऐतिहासिक प्रयोग किया जिसे रदरफोर्ड का अल्फा प्रकीर्णन प्रयोग
रदरफोर्ड का प्रयोग:
रदरफोर्ड ने एक बहुत पतली सोने की पन्नी (लगभग 5 × 10-7 मीटर मोटी) पर अल्फा कणों की बौछार की। अल्फा कणों के लिए उन्होंने रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे पोलोनियम या यूरेनियम का उपयोग किया।
प्रेक्षण (Observations):
- अधिकांश अल्फा कण सीधे पन्नी में से निकल गए।
- कुछ अल्फा कण थोड़े कोणों पर विक्षेपित हो गए।
- प्रत्येक 10,000 अल्फा कणों में से लगभग एक कण 90 डिग्री पर मुड़ गया।
- बहुत ही कम कण ऐसे थे जो 180 डिग्री पर लौट आए यानी जिस दिशा से आए थे उसी में लौट गए।
निष्कर्ष (Conclusion):
- परमाणु का अधिकांश भाग खोखला होता है क्योंकि अधिकतर कण बिना किसी रुकावट के निकल गए।
- परमाणु के केंद्र में धनात्मक आवेश से युक्त एक बहुत छोटा क्षेत्र होता है जिसे नाभिक कहते हैं।
- जो कण नाभिक के , क्योंकि अल्फा कण भी धनावेशित होते हैं और समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
- कुछ अल्फा कणों का 180 डिग्री पर वापस लौटना यह दर्शाता है कि नाभिक अत्यंत छोटा लेकिन अत्यधिक घनत्व वाला होता है।
महत्व:
- रदरफोर्ड का यह प्रयोग थॉमसन के "प्लम पुडिंग मॉडल" को अस्वीकार करता है।
- इस प्रयोग से परमाणु में नाभिक की उपस्थिति का पहला स्पष्ट प्रमाण मिला।
- इसी प्रयोग के आधार पर रदरफोर्ड ने अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया।
रदरफोर्ड प्रकीर्णन प्रयोग का आरेख (यदि आप जोड़ना चाहें):
📌 यदि चाहें तो एक सरल चित्र जैसे — सोने की पन्नी, अल्फा कण, विचलित कण, नाभिक — आदि को स्केच के रूप में जोड़ा जा सकता है।
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