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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय (Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay) :-


महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में होली के दिन सन् 1907 (सं. 1964) में हुआ था। इनके पिताजी गोविन्द सहाय वर्मा इन्दौर के एक कॉलेज में अध्यापक थे और माता हेमरानी धर्मपरायण महिला थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। बी. ए. और एम. ए. की परीक्षाएँ प्रयाग विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की 9 वर्ष की अल्पायु में स्वरूप नारायण वर्मा के साथ इनका विवाह हुआ किन्तु इनका विवाहित जीवन सुखी नहीं रहा ! इनके ससुर स्त्री शिक्षा के विरोधी थे। इस कारण विवाह होने से इनका अध्ययन क्रम टूट गया। माता की धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण घर में इन्हें रामायण और महाभारत की कथाएँ सुनने का पर्याप्त अवसर मिला। 

परिणामस्वरूप बचपन से ही इनके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो गया था और बचपन से ही काव्य रचना करने लगी थी तत्पश्चात प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य नियुक्त हुईं और बहुत समय तक इस पद पर कार्य करती रहीं। कुछ वर्षों तक यह उत्तर प्रदेश विधानसभा की मनोनीत सदस्य भी रह चुकी हैं। इनकी साहित्यिक रचनाआ से प्रभावित होकर भारत सरकार ने इनको 'पद्म भूषण अलंकार से अलंकृत किया। इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। जीवन के अन्तिम समय तक पाहित्य - साधना में लीन रहते हुए 11 सितम्बर, 1987 को इनका देहावसान हो गया।

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महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय :-


महादेवी वर्मा छायावाद और रहस्यवाद की प्रमुख कवयित्री हैं। छायावाद के चार महान कवियों के बृहद चतुष्ट्य में इनकी गणना की जाती है। महादेवी वर्मा का काव्य पीड़ा का काव्य है।


इसलिए उन्हें आधुनिक युग की 'मीरा' कहा जाता है। साहित्य और संगीत का अपूर्व संयोग करके 'गीत' विधा को विकास की चरम सीमा पर पहुँचा देने का श्रेय महादेवी वर्मा को ही है। महादेवी वर्मा मूलतः कवि हैं किन्तु उनका गद्य भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उनके गद्य में भी काव्य जैसा आनन्द आता है। इस प्रकार हिन्दी साहित्य जगत में महादेवी वर्मा का उच्चतम स्थान है।


महादेवी वर्मा की रचनाएँ :- 


श्रीमती महादेवी वर्मा मूलत: कवयित्री हैं। 

साथ में उच्चकोटि की गद्य लेखिका भी हैं। 'नीहार' , 'रश्मी' , 'नीरजा' , 'यामा' , 'सान्ध्य गीत' , 'दीपशिखा' आपकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं। 'यामा' और 'दीपशिखा' पर आपको पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। 'अतीत के चलचित्र' , 'शृंखला की कड़ियाँ' , 'स्मृति की रेखाएँ' इनके गद्यात्मक संस्मरण हैं। इन संस्मरणों में काव्य का सा आनन्द ही आता है।

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