सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय ( sumitra nandan pant ka jivan Parichay) :-
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, 1900 ई० (संवत् 1957 वि०) को प्रकृति की सुरम्य क्रीड़ास्थली कूर्मांचल प्रदेश के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम गंगादत्त पन्त तथा माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था। ये अपने माता-पिता की सबसे छोटी सन्तान थे। पन्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में हुई। इसके पश्चात् ये अल्मोड़ा गवर्नमेण्ट हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए।
तत्पश्चात् काशी के जयनारायण हाईस्कूल से इन्होंने स्कूल लीविंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1916 ई० में आपने प्रयाग के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से एफ० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद ये स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करने लगे। इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी तथा बँगला का गम्भीर अध्ययन किया उपनिषद् , दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य की ओर भी इनकी रुचि रही। संगीत से इन्हें पर्याप्त प्रेम था।
सन् 1950 ई० में ये ऑल इण्डिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और सन् 1957 ई० तक इससे सम्बद्ध रहे। इन्हें 'कला और बूढ़ा चाँद' नामक काव्य-ग्रन्थ पर 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' , 'लोकायतन' पर 'सोवियत भूमि पुरस्कार' और 'चिदम्बरा' पर 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला। भारत सरकार ने पन्त जी को 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। पन्त जी 28 दिसम्बर, 1977 ई० (संवत् 2034 वि०) को परलोकवासी हो गये।
सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक सेवाएँ :-
पन्त जी गम्भीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के प्रति आस्थावान एक ऐसे सहज कुशल शिल्पी थे, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय के नवस्वप्नों की सर्जना की। इन्होंने सौन्दर्य को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया है, इसीलिए इन्हें सौन्दर्य का कवि भी कहा जाता है।
सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय :-
पन्त जी का बाल्यकाल कौसानी के सुरम्य वातावरण में व्यतीत हुआ। इस कारण प्रकृति ही उनकी जीवन सहचरी के रूप में रही और काव्य-साधना भी प्रकृति के बीच रहकर ही की। अतः प्रकृति वर्णन, सौन्दर्य प्रेम और सुकुमार कल्पनाएँ उनके काव्य में प्रमुख रूप से पायी जाती हैं।
प्रकृति-वर्णन की दृष्टि से पन्त जी हिन्दी के वर्ड्सवर्थ माने जाते हैं। पन्त जी के साहित्य पर कवीन्द्र रवीन्द्र, स्वामी विवेकानन्द और अरविन्द दर्शन का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ा है इसलिए उनकी बाद की रचनाओं में अध्यात्मवाद और मानवतावाद के दर्शन होते हैं।
अन्त में पन्त जी प्रगतिवादी काव्यधारा की ओर उन्मुख होकर दलितों और शोषितों की लोक क्रान्ति के अग्रदूत पन्त जी छायावादी काव्यधारा के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक हैं। उनकी कल्पना ऊँची, भावना कोमल और अभिव्यक्ति प्रभावपूर्ण है। ये काव्य जगत में कोमल भावनाओं और सुकुमार कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। इस दृष्टि से पन्त जी का हिन्दी साहित्य में सर्वोपरि स्थान है।
सुमित्रानन्दन पन्त की प्रमुख रचनाएँ :-
पन्त जी ने अनेक काव्यग्रन्थ लिखे हैं। कविताओं के अतिरिक्त इन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं, किन्तु कवि रूप में ये अधिक प्रसिद्ध हैं। पन्त जी के कवि रूप के विकास के तीन सोपान हैं—
(1) छायावाद और मानवतावाद
(2) प्रगतिवाद या मार्क्सवाद
(3) नवचेतनावाद
0 Comments