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रदरफोर्ड का अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग

 रदरफोर्ड का अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग :–


नर्नेस्ट रदरफोर्ड ने 1919 में परमाणु की संरचना ज्ञात करने के लिए सोने की पतली पन्नी पर ) अल्फा कणों की बमबारी की और देखा कि अधिकांश: कण धातु की पन्नी पार करके सीधी रेखा में चले जाते हैं कुछ पन्नी से बाहर निकलते समय अपने मार्ग से विक्षेपित हो जाते हैं और बहुत ही थोड़े कण पन्नी से प्रतिकर्षित होकर लौट गऐ।





α कण प्रकीर्णन से निष्कर्ष :–


(i) अधिकांशत α- कण स्वर्ण पत्र से बिना विक्षेपित हुए सीधे पार निकल जाते हैं, अतः रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु का अधिकांश भाग अंदर से खोखला होता है।


(ii) α- कण धन आवेशित होता है अतः कुछ α- कण छोटे-छोटे कोण बनाते हुए विक्षेपित हो जाते हैं अतः ये किसी धनावेशित वस्तु से विक्षेपित हो सकते हैं।


(iii) कुछ α-कण 90° के अधिक कोण पर प्रकीर्णीत होकर वापस लौट जाते हैं इससे यह स्पष्ट है कि जब α-कण स्वर्ण पत्र के परमाणु में से गुजरते हैं तो किसी संघट्टय से तीव्र गामी α- कण पुनः अपने पथ पर लौट आते हैं इससे रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु का समस्त धनावेश एक अतिसुक्ष्म स्थान पर केंद्रित होता है इसे नाभिक कहते हैं तथा नाभिक की त्रिज्या लगभग 10-¹⁵ मी की कोटि की होती है जो परमाणु की तुलना में बहुत छोटा होता है।


नाभिक के आकार का अवकलन :–


रदरफोर्ड के प्रयोग में α- कणों के प्रकीर्णन से नाभिक के आकार का पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है जो α- कण नाभिक की ओर सीधे जाता है वह नाभिक के सबसे निकट पहुंचता है। जैसे-2 कण नाभिक की ओर बढ़ता है प्रतिकर्षण बल का मान बढ़ जाता है।


 माना नाभिक के निकट r दूरी पहुंचने तक α-कण की गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं ।


माना नाभिक पर +Ze आवेश कूलाम है तथा α-कण पर +2e आवेश है।









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