सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur Dioxide) बनाने की प्रयोगशाला विधि:–
सल्फर डाइऑक्साइड का अणुसूत्र SO२ तथा अणुभार 64 है।
सर्वप्रथम प्रीस्टले ने सन् 1774 में पारे या मर्करी (Hg) तथा सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H२SO4 ) को एक साथ गर्म करके सल्फर डाइऑक्साइड गैस (SO२) को बनाया। इसके पश्चात् सन् 1777 में लेवोशिए ने (गन्धक) सल्फर को वायु में जलाकर इसे प्राप्त किया तथा इसे सल्फर डाइऑक्साइड नाम दिया।
सल्फर डाइऑक्साइड की प्राप्ति के निम्नलिखित स्रोत हैं
(i) ज्वालामुखी विस्फोट में विभिन्न प्रकार की गैसें उत्सर्जित होती हैं, इन गैसों में SO2 गैस आधिक्य में पाई जाती है।
(ii) इसकी अल्पमात्रा हवा में तथा बारूद तथा दियासलाई के धुएँ में भी उपस्थित होती है।
(iii) यह औद्योगिक प्रक्रमों; जैसे-भर्जन से भी उत्सर्जित होती है।
(iv) गन्धक, पेट्रोलियम तथा कोयले को जलाने पर भी सल्फर डाइआक्साइड का उत्सर्जन होता है।
निर्माण की प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method of Preparation):–
प्रयोगशाला में ताँबे की छीलन (Cu) को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H२SO4) के साथ में गर्म करने पर सल्फर डाइऑक्साइड गैस (SO२) का निर्माण होता है।
आवश्यक सामग्री (Material Required):-
गोल पेंदी के दो फ्लास्क, थिसिल कीप, बर्नर, निकास नली, गैस जार, दो बार समकोण पर मुड़ी काँच की नली, ताँबे की छीलन (Cu), सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल, आदि।
विधि (Method):–
एक गोल पेंदी के फ्लास्क में कुछ मात्रा में ताँबे की छीलन लेकर इसके मुख पर दो छिद्र वाला कॉर्क लगा देते हैं। फ्लास्क पर लगे कॉर्क के एक छिद्र में दो जगह से समकोण पर मुड़ी हुई निकास नली तथा दूसरे छिद्र में थिसिल कीप लगाकर स्टैण्ड पर कस देते हैं। एक अन्य फ्लास्क में सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल लेकर इसके मुख पर भी दो छिद्र वाला कॉर्क लगा देते हैं तथा पहले फ्लास्क में लगी निकास नली को अम्ल से भरे इस फ्लास्क में डुबो देते हैं। कॉर्क के दूसरे छिद्र में एक दूसरी समकोण में मुड़ी हुई निकास नली लगा देते हैं तथा इसका दूसरा सिरा गैस जार में लगा देते हैं।
थिसिल कीप के माध्यम से इतना सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल फ्लास्क में डालते हैं, कि थिसिल कीप का निचला सिरा अम्ल में डूब जाए। फ्लास्क को बर्नर द्वारा गर्म करने पर सल्फर डाइऑक्साइड गैस का निर्माण होता है। निर्मित गैस को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से भरे फ्लास्क में पहुँचाया जाता है जहाँ इसकी नमी अवशोषित हो जाती है एवं शुष्क गैस को वायु के ऊर्ध्व विस्थापन (Upward displacement) द्वारा गैस जार में एकत्रित कर लिया जाता है। गैस से भरे जार में सल्फर डाइऑक्साइड (SO२) की उपस्थिति की जाँच नीले लिटमस पत्र द्वारा की जाती है। गैस जार के मुँह पर नीले लिटमस पत्र को ले जाने पर यह लाल हो जाता है अर्थात् गैस जार में सल्फर डाइऑक्साइड उपस्थित है।
सावधानियाँ (Precautions):–
सल्फर डाइऑक्साइड (SO२) के निर्माण के समय निम्नलिखित सावधानियाँ ध्यान में रखनी चाहिए
(i) गैस जार शुष्क होना चाहिए।
(ii) उपकरण वायुरोधक होना चाहिए।
(iii) फ्लास्क को धीरे-धीरे गर्म करना चाहिए।
(iv) थिसिल कीप का निचला सिरा अम्ल में डूबा रहना चाहिए।
(v) सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल को थिसिल कीप के द्वारा डालना चाहिए।
सल्फर डाइऑक्साइड के निर्माण की अन्य विधियाँ (Other Methods of Preparation of Sulphur Dioxide ):–
सल्फर डाइऑक्साइड गैस बनाने की अन्य विधियाँ इस प्रकार हैं
(i) सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से (From Concentrated Sulphuric Acid) कार्बन (C), सल्फर (S) (गन्धक), मर्करी (Hg), सिल्वर (Ag) को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H,SO) के साथ गर्म करके सल्फर डाइऑक्साइड निर्मित की जाती है।
(ii) सल्फर से (From Sulphur) सल्फर को वायु की उपस्थिति में जलाने पर सल्फर डाइऑक्साइड गैस बनती है।
(iii) कैल्सियम सल्फाइट से (From Calcium Sulphite) कैल्सियम सल्फाइट (CaSO३) पर तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) की अभिक्रिया से सल्फर डाइऑक्साइड बनती है।
भौतिक गुण (Physical Properties):–
सल्फर डाइऑक्साइड के भौतिक गुण निम्नलिखित हैं
(i) यह तीक्ष्ण गन्ध वाली तथा रंगहीन गैस है।
(ii) इसकी गन्ध जलते हुए गन्धक के समान होती है। (iii) यह जल में अत्यधिक विलेय होती है।
(iv) यह वायु की तुलना में 2.3 गुना भारी होती है तथा इसका वाष्प घनत्व 32 होता है।
(v) 15°C ताप पर यह जल में विलेयता दर्शाती है तथा 1 आयतन जल में 45 आयतन गैस घुलनशील है।
(vi) हिम मिश्रण के माध्यम से इसे ठण्डा करने पर यह रंगहीन द्रव में परिवर्तित हो जाती है, इस द्रव का क्वथनांक - 10°C होता है। इसे और अधिक ठण्डा करने पर यह सफेद रंग के ठोस में रूपान्तरित हो जाती है, जिसका क्वथनांक - 76°C होता है।
रासायनिक गुण (Chemical Properties):–
सल्फर डाइऑक्साइड के रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं
(i) जल से क्रिया (Reaction with Water) यह जल (H२O) में विलेय होकर सल्फ्यूरस अम्ल (H२SO4) का निर्माण करती है। निर्मित जलीय विलयन अम्लीय प्रकृति का होता है तथा यह नीले लिटमस को लाल कर देता है।
नोट: सल्फर डाइऑक्साइड (SO२) वायुमण्डल में उपस्थित नमी / जल (H२O) से क्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल (H२SO4 ) का निर्माण करती है, जो अम्लीय वर्षा का प्रमुख कारक है। इस प्रकार दिनों दिन बढ़ते प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा (Acid rain) की सम्भावनाएँ बढ़ती जा रही हैं।
(ii) दहन (Combustion) सल्फर डाइऑक्साइड गैस न तो स्वयं जलती है और न ही जलने में सहायक होती है परन्तु जलता हुआ पोटैशियम (K) या मैग्नीशियम (Mg) इसमें जलता रहता है।
(iii) अपघटन (Decomposition) सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति या 1200°C ताप पर इसके अपघटन से सल्फर (S) एवं सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO३) गैस निर्मित होती है।
(iv) क्लोरीन से अभिक्रिया (Reaction with Chlorine) यह सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरीन (cl२) से क्रिया करके सल्फ्यूरिल क्लोराइड (SO२CI२) बनाती है।
(v) ऑक्सीजन से अभिक्रिया (Reaction with Oxygen) सल्फर डाइऑक्साइड (SO२) तथा ऑक्सीजन (O२) प्लेटिनम युक्त ऐस्बेस्टॉस उत्प्रेरक (Asbestos catalyst) की उपस्थिति में क्रिया करके सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO३) का निर्माण करती हैं।
उपयोग (Uses):–
सल्फर डाइऑक्साइड के उपयोग निम्नलिखित हैं
(i) कीटाणुनाशक के रूप में।
(ii) सल्फ्यूरिक अम्ल (H२SO4) के निर्माण में।
(ii) चीनी (C१२H२२O११ ) के शुद्धिकरण में।
(iv) बर्फ बनाने में प्रशीतक (Refrigerant) के रूप में।
(v) माँस, आदि को सड़ने से बचाने में।
(vi) क्लोरीन (Cl२) के प्रभाव को नष्ट करने में अर्थात् प्रतिक्लोर (Antichlor) के रूप में।
(vii) ऑक्सीकारक तथा अपचायक के रूप में।
(viii) बाल, रेशम, ऊन, आदि के रंग को उड़ाने में अर्थात् विरंजक के रूप में।
परीक्षण (Tests):–
सल्फर डाइऑक्साइड का परीक्षण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है
(i) इसकी गन्ध तीव्र जलते हुए गन्धक जैसी तथा गला घोटने वाली होती है।
(ii) यह नीले लिटमस को लाल कर देती है।
(iii) यह अम्लीय पोटैशियम डाइक्रोमेट (K२Cr२O7) के विलयन को हरा कर देती है।
(iv) यह अम्लीय पोटैशियम परमँगनेट (KMnO4) का बैंगनी रंग उड़ाकर उसे रंगहीन कर देती है।
(v) यह के पानी से क्रिया कर इसे दूधिया (Milky) कर देती है।
(vi) इसका जलीय विलयन रंगीन फूलों का रंग उड़ा देता है।
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