वृत्ताकार धारावाही कुण्डली के कारण चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic Field due to Current-Carrying Circular Coil):–
ताँबे के एक मोठे तार को मोड़कर एक वृत्ताकार कुण्डली बनाकर, कुण्डली को एक गने के ऊपर चिपके सफेद कागज पर समायोजित कर देते हैं। जब परिपथ में कुंजी लगाकर धारा प्रवाहित करते हैं, तो कुण्डली के समीप रखी कम्पास सुई विक्षेपित हो जाती है।
कम्पास सुई की सहायता से गते पर चिपके सफेद कागज पर धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाओं को खींचते जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त चुम्बकीय क्षेत्र को बल रेखाओं में निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं
(i) कुण्डली के तार के किनारों के समीप बल रेखाएँ वृत्ताकार होती हैं तथा धारावाही कुण्डली के तार से दूरी बढ़ने पर चुम्बकीय बल रेखाओं की वक्रता कम होती जाती है।
(ii) कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय बल रेखाएँ समान्तर तथा कुण्डली के तल के लम्बवत् प्राप्त होती है, जो यह सिद्ध करती हैं कि कुण्डली के केन्द्र पर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है तथा उसकी दिशा कुण्डली के तल के लम्बवत् होती है।
(iii) चुम्बकीय बल-रेखाएँ कुण्डली के एक तल से अन्दर की ओर जाती हैं, वह तल दक्षिणी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है तथा दूसरे तल से बाहर निकलती हैं, वह तल उत्तरी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
(iv) कुण्डली के तल को सामने से देखने पर, यदि प्रवाहित धारा की दिशा दक्षिणावर्त (Clockwise) होती है, तो कुण्डली का सामने का तल दक्षिणी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है और यदि कुण्डली में धारा की दिशा वामावर्त (Anti-clockwise) होती है, तो कुण्डली का सामने का तल उत्तरी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
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