22(c)श्वसन तन्त्र (Respiratory System):–
श्वसन एक जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है, जिसमें विशेष मानव अंग वातावरण से ऑक्सीजन (O२) को ग्रहण करके उसे शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचाते हैं, जहाँ इस O२ द्वारा पचे हुए सरल भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। यह ऊर्जा मानव शरीर की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं (Metabolic activities) द्वारा उपयोग में लाई जाती है।
इस प्रक्रिया में ऊर्जा के साथ कार्बन डाइऑक्साइड (CO२) भी उत्पन्न होती है, जोकि मानव शरीर के लिए प्रत्यक्ष रूप से अनुपयोगी होती है। इस CO2 का शरीर से निस्तारण भी विशेष अंगों द्वारा ही होता है। इन विशेष अंगों को श्वसन अंग (Respiratory organs) कहते हैं तथा श्वसनांगों का यह सम्पूर्ण तन्त्र श्वसन तन्त्र (Respiratory system) कहलाता है।
मानव श्वसन तन्त्र के विभिन्न अंग (Various Organs of Human Respiratory System):–
मानव के प्रमुख श्वसनांग फेफड़े होते हैं, जो कक्षगुहा में कशेरुकदण्ड तथा पसलियों द्वारा बने एक अस्थि पंजर (Ribcage) से घिरे होते हैं। फेफड़े श्वास अथवा वायुनाल (Wind pipe) एवं नासामार्ग (Nasal passage) द्वारा बाह्य वातावरण से सम्बद्ध रहते हैं। इनके अतिरिक्त सभी श्वसनांग सहायक श्वसनांगों को श्रेणी में आते हैं।
मानव श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग निम्नलिखित हैं
1 नासिका एवं नासामार्ग (Nose and Nasal Passage):–
श्वसन अंगों का प्रथम भाग नासिका कहलाता है, यह दो बाह्य नासाछिद्रों (External nares or nostrils) के द्वारा बाहर खुलता है। नासिका के मध्य एक नासा पट (Nasal septum) पाया जाता है, जिसके कारण नासागुहा (Nasal cavity) या नासावेश्म दो भागों (दाएँ व बाएं) में विभक्त हो जाते हैं। इसे आन्तर नासा पट (Internal nasal septum) कहते हैं। नासिका के प्रारम्भ में छोटे-छोटे बाल होते हैं, जो धूल, आदि के कणों को वायु के साथ अन्दर जाने से रोकते हैं।
इस पट के कारण प्रत्येक नासा रन्ध्र अपनी ओर के नासामार्ग में खुलता है। नासामार्ग की गुहा अर्थात् नासागुहा उपास्थि एवं अस्थियों के कारण अत्यन्त ही टेढ़े-मेढ़े एवं घुमावदार मार्ग के रूप में प्रतीत होती है। नासागुहा के अन्दर श्लेष्म कला या श्लेष्मक झिल्ली (Mucous membrane) उपस्थित होती है, जो नासामार्ग में पतला तथा चिकना तरल श्लेष्म स्त्रावित करती है।
श्लेष्म कला पर असंख्य बाल जैसे अत्यन्त महीन रोमाभ (Cilia) होते हैं। ये श्लेष्म या कफ (Cough) को भीतर की ओर ग्रसनी में या बाहर की ओर नाक में लगातार भेजते रहते हैं। श्लेष्म नासिका द्वारा अन्दर आने वाली वायु को शरीर के ताप पर लाने तथा नम बनाने में भी सहायक होता है।
2. ग्रसनी (Pharynx):–
नासामार्ग ग्रसनी में खुलता है। ग्रसनी का अग्रभाग नासाग्रसनी (Nasopharynx) कहलाता है। इसका निचला भाग मुखग्रसनी (Oropharynx) तथा पिछला भाग कण्ठग्रसनी (Laryngopharynx) कहलाता है। इसमें श्वासनली तथा दोनों खुलते हैं।
3. वायुनाल (Wind Pipe):–
वायुनाल को निम्न दो भागों में बाँटा जाता है
(i) स्वरयन्त्र या कण्ठ द्वार (Larynx) यह ग्रसनी में पीछे किन्तु निगल द्वार से पहले एक छिद्र होता है। यह श्वास वायु को प्रसनी से घाँटीद्वार (Glottis) की सहायता से श्वासनाल में पहुँचाता है। इसके ऊपर उपास्थि (Cartilage) का बना ढक्कन होता है, जिसे घाँटीढापन (Epiglottis) कहते हैं, जो भोजन निगलते समय घाँटी द्वार को बन्द कर देता है। स्वरयन्त्र एक छोटे बक्से के समान होता है, ये पुरुषों में गले के सामने बाहर की ओर उभरा दिखाई देता है, जिसे टेंटुआ या आदम एप्पल (Adam's apple) के नाम से जाना जाता है। यह कई उपास्थियों से मिलकर बनी संरचना है, जो भीतर से श्लेष्मक झिल्ली द्वारा स्वरित रहता है। इसकी गुहा में उपस्थित दो मजबूत लचीले स्वर रज्जु (Vocal cords) कम्पन होने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
(ii) श्वासनली (Trachea ) यह लगभग 10-12 सेमी लम्बी तथा लगभग 1.5-2.5 सेमी व्यास की नली है, जो कण्ठ से लेकर पूर्ण ग्रीवा (Neck) में विद्यमान होती है। यह वक्ष में पहुँचकर दो छोटे शाखाओं में विभाजित हो जाती है, जिन्हें श्वसनियाँ (Bronchi) कहते हैं।
प्रत्येक श्वसनी अपनी तरफ के फेफड़े में प्रवेश कर जाती है, जहाँ पहुँचकर यह अनेक शाखाओं (Bronchi) तथा उपशाखाओं (Bronchioles) में विभाजित होकर अन्ततः वायुकोष्ठकों या वायुकोषों (Alveoli) में प्रवेश कर समाप्त हो जाती है। श्वासनली में 'C' आकृति के उपास्थि के अधूरे छल्ले होते हैं, जो इसमें वायु न होने पर इसकी दीवारों को चिपकने से रोकते हैं, जिसके फलस्वरूप वायु की अनुपस्थिति में यह नली पिचकने से बच जाती है। ये छल्ले वायुकोषों में अनुपस्थित होते हैं।
Related questions:–
1. श्वसन तन्त्र के अन्तर्गत कौन-कौन से अंग आते हैं ?
2. मनुष्य के श्वसन तन्त्र का मुख्य अंग कौन-सा है ?
3. भोजन निगलते समय अगर घाँटीद्वार बन्द न हो, तो क्या होगा ?
4. नासिका में रोमाभ का कार्य बताइए।
5. वायुनाल के दोनों भागों के नाम लिखिए।
4. फेफड़े (Lungs):–
फेफड़े मनुष्य के प्रमुख श्वसन अंग हैं। ये संख्या में दो हल्के गुलाबी रंग के कोमल तथा लचीले अंग हैं, जो वक्ष गुहा में हृदय को घेरे हुए उपस्थित होते हैं। प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर पतली तथा दोहरी झिल्ली चढ़ी होती है, जिसे फुफ्फुसावरण (Pleural membrane) कहते हैं। फेफड़े जिस गुहा में पाए जाते हैं, उसे फुफ्फुस गुहा (Pleural cavity) कहते हैं।
फुफ्फुस गुहा में एक लसदार तरल पदार्थ अर्थात् फुफ्फुसीय तरल (Pleural fluid) भरा होता है, जो फेफड़ों की सुरक्षा करते हैं। यह तरल फुफ्फुसावरण को नम तथा चिकना भी बनाता है, इसके कारण फुफ्फुसावरण में घर्षण नहीं हो पाता है। दोनों फफ्फुस गुहाओं के मध्य के संकरे स्थान में श्वासनाल, श्वसनियाँ, ग्रासनली, हृदय, आदि अंग उपस्थित होते हैं। इस स्थान को मध्यावकाश (Mediastainum) कहते हैं।
दाहिना फेफड़ा, बाएँ फेफड़े से कुछ बड़ा तथा चौड़ा, परन्तु लम्बाई में छोटा होता है। फेफड़े तन्तुपट या डायाफ्राम (Diaphragm) के उभरे हिस्से पर चिपके रहते हैं, इसे फेफड़े का आधार कहते हैं तथा शंक्वाकार छोर का शीर्ष (Apex) कहते हैं। फेफड़े में जाने वाली प्राथमिक श्वसनी के प्रवेश स्थान को नाभिका (Hilus) कहते हैं। यह खाँचों द्वारा तीन पिण्डों में बँटा रहता है, जबकि बायाँ फेफड़ा दो पिण्डों में बँटा होता है।
फेफड़ों की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Lungs):–
फेफड़ों की बाह्य सतह चिकनी व सपाट होती है, परन्तु आन्तरिक संरचना में मधुमक्खी के छत्ते की भाँति अनेक वायुकोष्ठ (Alveoli) पाए जाते हैं, जोकि गैसीय विनिमय से सम्बद्ध मुख्य संरचनाएँ हैं। प्रत्येक वायुकोष्ठ एक श्वसनी (Bronchus) से निम्न प्रकार से सम्बन्धित होता है।
प्रत्येक श्वसनी श्वासनली के दो भागों में बँटने से बनती है तथा यह फेफड़ों में प्रवेश कर अनेक उपशाखाओं (Bronchioles) में बंट जाती है। इसकी अन्तिम महीन उपशाखाएँ कूपिका नलिकाएँ (Alveolar ducts) कहलाती हैं।
इन नलिकाओं के सिरे फूलकर कूपिका (Atrium) का निर्माण करते हैं। प्रत्येक कूपिका पर अंगूर के गुच्छे के समान कई वायुकोष (Alveoli or Alveolus) लगे रहते हैं। प्रत्येक वायुकोष शल्की उपकला (Epithelium) की चपटी पतली कोशिकाओं से बनता है। इनकी कम मोटाई गैसीय विनिमय में विशेष योगदान देता है। उपरोक्त सभी संरचनाओं को चित्र 22(c).3 में दर्शाया गया है
एक वयस्क मानव के प्रत्येक फेफड़े में वायुकोष्ठों (Alveolus) की संख्या लगभग 15 करोड़ तथा नवजात शिशु में लगभग 2 करोड़ होती है।
वायुकोष्ठक की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Alveoli):–
वायुकोष्ठक या वायुकोषों की बाह्य सतह पर रुधिर केशिकाओं (Blood capillaries) का जाल फैला रहता है, जो फुफ्फुस धमनी (Pulmonary vein) के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है। इन केशिकाओं में शरीर से ऑक्सीजनरहित रुधिर आता है, इसमें CO२ की मात्रा अधिक होती है। वायुकोष्ठों में CO२ बाहर विसरित होकर 0२ रुधिर केशिकाओं से रुधिर में विसरित हो जाती है। वायुकोष्ठों की 0२ युक्त रुधिर केशिकाएँ आपस में मिलकर रुधिर वाहिनी का निर्माण करती हैं। ये अपेक्षाकृत मोटी होती हैं, जो फूस्फुस शिरा (Pulmonary vein) में खुलती हैं।
वायुकोष्ठक का यही विस्तृत रूप फेफड़ों के भीतर गैसीय विनिमय के लिए उत्तरदाई होता है।
Thanks for watching.........
Share and comment kare.....
।।
0 Comments