श्वसन(Respiration):–
श्वसन वह क्रिया है, जिससे कोशिका (Cell) में कार्बनिक यौगिकों (प्रायः ग्लूकोस) का ऑक्सीकरण (Oxidation) होता है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड (CO) तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा को विशेष ATP अणुओं में विभवीय ऊर्जा (Potential energy) के रूप में संचित किया जाता है।
अतः हम श्वसन को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं
"श्वसन जीवित कोशिकाओं में होने वाली उन सभी एन्जाइमी अभिक्रियाओं (Enzymatic reactions) को कहते हैं, जिनमें ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है।"
इसे निम्नलिखित सामान्य समीकरण द्वारा समझा जा सकता है।
भोज्य पदार्थ + ऑक्सीजन ------› कार्बन डाइऑक्साइड + जल + ऊर्जा
जन्तुओं व मनुष्यों में श्वसन के लिए विशेष अंग पाए जाते हैं, परन्तु पादपों में श्वसन के लिए कोई विशेष अंग नहीं पाए जाते हैं। इनमें रन्ध्रों (Stomata) द्वारा शुद्ध वायु (ऑक्सीजन युक्त) प्रवेश करती है, जो पादपों के सभी भागों में पहुँचकर भोजन के ऑक्सीकरण अर्थात् कोशिकीय श्वसन (Cellular respiration) में भाग लेती है। श्वसन क्रिया की तुलना दहन (Combustion) की क्रिया से की जा सकती है, क्योंकि दोनों ही प्रक्रियाओं में कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण होकर CO, व HO बनते हैं तथा ऊष्मा (ऊर्जा) मुक्त इतनी है।
इतनी समानता के बावजूद इन दोनों ही प्रक्रियाओं में निम्न महत्त्वपूर्ण अन्तर भी हैं
श्वसन एवं दहन में अन्तर:–
श्वसन | दहन |
---|---|
यह जैविक नियन्त्रण में होने वाली जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण किया है। | यह अनियन्त्रित रासायनिक ऑक्सिकरण की क्रिया है। |
यह सामान्य ताप 25-45°C) पर होती है। | यह क्रिया उच्च ताप पर होती है। |
यह क्रिया एन्जाइम्स की सहायता से होती है। | इस क्रिया में एन्जाइम्स की आवश्यकता नहीं होती। |
इसमें निष्काषित होने वाली ऊर्जा को गतिज ऊर्जा के रूप में विशेष पदार्थ एडीनोसीन डाइफॉस्फेट (ADP) में अनुबन्धित किया जाता है। | इसमें सम्पूर्ण नियुक्ति ऊर्जा,उष्मा और प्रकाश के रूप में एक साथ मुक्त हो जाती है। |
श्वसन के प्रकार (Types of Respiration):–
ऑक्सीजन की आवश्यकता के अनुसार, श्वसन दो प्रकार का होता है
वायवीय या ऑक्सी श्वसन (Aerobic Respiration):–
यह आण्विक ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। ऑक्सीजन भोजन (ग्लूकोस अणु) को पूर्णतया ऑक्सीकृत करके CO2 और जल में बदल देती है। इसमें काफी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। इसे निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जाता है।
C6H12O6 + 60२ -------› 6CO२ + 6H2O जल + 673 किलो कैलोरी ऊर्जा
अवायवीय या अनॉक्सी श्वसन (Anaerobic Respiration):–
यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। इस क्रिया को किण्वन (Fermentation) भी कहते हैं। इस प्रकार के श्वसन में भोज्य पदार्थ केवल आंशिक रूप से ऑक्सीकृत होता है। अतः इसमें भोज्य पदार्थ का 5% भाग ही उर्जा के रूप में प्राप्त होता है। इसे निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जाता है
C6H12O6 + 6O२ → 2C२H5 OH + 2CO२+ 27 किलो कैलोरी ऊर्जा
ऑक्सी एवं अनॉक्सी श्वसन में अन्तर:–
अन्तर का आधार | ऑक्सी श्वसन | अनॉक्सी श्वसन |
---|---|---|
ऑक्सीजन | ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। | ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। |
अन्तिम उत्पाद | CO2, जल एवं ऊर्जा होती है। | प्रायः एथिल एल्कोहॉल, CO2 एवं ऊर्जा होती है। |
ग्लूकोस का ऑक्सीकरण | पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। | आंशिक ऑक्सीकरण होता है। |
निर्गत ऊर्जा | 38 ATP 37 (673 कि. कैलोरी)। | 2 ATP (27 कि. कैलोरी)। |
उदाहरण | सभी स्वपोषी पौधों तथा अधिकतर जन्तुओं में। | अनेक कवक; जैसे-यीस्ट, अनेक जीवाणु तथा मनुष्य में अधिक कार्य करते समय पेशियों में। |
मानव में श्वसन की क्रियाविधि(Mechanism of Respiration in Humans):–
मानव में श्वसन प्रक्रिया को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
I. बाह्य श्वसन
II. आन्तरिक श्वसन
बाह्य श्वसन (External Respiration):–
बाह्य श्वसन के लिए सभी कशेरुकी जन्तुओं (सरीसृप, पक्षी एवं स्तनी) में बाह्य श्वसनांग (Respiratory organs); जैसे-मेंढक में त्वचा (Skin), मछलियों में गलफड़े (Gills), मनुष्य में फेफड़े (Lungs), आदि होते हैं।
बाह्य श्वसन को अध्ययन की सुगमता के लिए निम्नलिखित पदों में विभक्त किया जा सकता है
(i) श्वासोच्छ्वास (Breathing) वायुमण्डल से श्वसनांगों द्वारा शुद्ध वायु (O) को ग्रहण करना तथा अशुद्ध वायु (CO) को बाहर निकालना अर्थात् बर्हिगमन (Discharge) की प्रक्रिया को श्वासोच्छ्वास कहते हैं।
मनुष्य में श्वासोच्छ्वास की क्रियाविधि (Mechanism of Breathing in Human):–
श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती हैं
चरण 1 अन्तःश्वसन (Inspiration) इस क्रिया में शुद्ध वायु (O2) श्वसनांगों द्वारा फेफड़ों में पहुँचती है। इस प्रक्रिया में डायाफ्राम एवं आन्तरिक अन्तरापर्शुक (Internal incostols) पेशियाँ संकुचित हो जाती हैं एवं डायाफ्राम समतल (Flattened) हो जाता है। निचली पसलियाँ बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती हैं तथा छाती फूल जाती है, जिसके फलस्वरूप वक्ष गुहा (Thoracic cavity) का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़ों में वायु का दाब कम हो जाता है। अन्ततः रूप वायु नासारन्ध्र (Nostrils), कण्ठद्वार (Larynx) तथा श्वासनली (Trachea) में होते हुए फेफड़ों में भर जाती है।
चरण 2 निःश्वसन (Expiration) इस क्रिया में वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है। इसमें केवल बाह्य अन्तरापर्शुक (External intercostals) पेशियों तथा डायाफ्राम में शिथिलन से ही पसलियाँ, स्टर्नम और डायाफ्राम अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है, जिससे वक्ष गुहा (Thoracic cavity) का आयतन कम हो जाता है तथा फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और वायु नासामार्ग व वायुनाल द्वारा बाहर निकल जाती है।
नोट: श्वसन दर पर ऊँचाई का प्रभाव (Effects of Height on Respiratory Rate) जैसे-जैसे हम समुद्र की सतह से ऊपर जाते हैं, वायु का घनत्व (Density of air) कम होता जाता है। अतः पहाड़ी पर चढ़ते समय वातावरणीय ऑक्सीजन (O2) की मात्रा कम होती जाती हैं, जिसके फलस्वरूप प्रत्येक श्वास में शरीर के लिए उपलब्ध O2 कम हो जाती है। अतः शरीर में ऑक्सीजन की कमी पूर्ति के लिए श्वास दर बढ़ जाती है और हम कहते हैं, कि श्वास फूलने लगी है।
श्वसन एवं श्वासोच्छ्वास में अन्तर:–
श्वसन | श्वासोच्छ्वास |
---|---|
श्वसन एक अपचयी क्रिया (Catabolic activity) है, जिसमें ग्लूकोस का ऑक्सीकरण होता है, जिससे CO2 और ऊर्जा उत्पन्न होती है। | यह एक भौतिक प्रक्रिया (Physical activity) है, जिसमें शरीर ऑक्सीजन का अन्तर्ग्रहण करता है। और CO2 का बहिःक्षेपण करता है। |
यह क्रिया कोशिकाओं के अन्दर होती है। | यह क्रिया कोशिकाओं के बाहर होती है। |
इस क्रिया में एन्जाइम्स की आवश्यकता होती है। | इसमें एन्जाइम्स की आवश्यकता नहीं होती। |
इस क्रिया में ऊर्जा उत्पन्न होती है। | इसमें ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती। |
इस क्रिया में बाह्य श्वसनांगों की आवश्यकता हो भी सकती है नहीं भी। | इसमें बाह्य श्वसनांगों की आवश्यकता होती है। |
(ii) फेफड़ों में गैसीय विनिमय (Gaseous Exchange in Lungs) :–
फेफड़ों में गैसीय विनिमय सामान्य विसरण (Diffusion) द्वारा होता है। वायु कोषों (Alveoli) में उपस्थित वायु से ऑक्सीजन रुधिर कोशिकाओं में तथा रुधिर कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड वायु कोषों में विसरित हो जाती है।
(iii) ऑक्सीजन परिवहन (Oxygen Transport):–
फेफड़ों में ऑक्सीजन विनिमय के दौरान, विसरित ऑक्सीजन रुधिर में उपस्थित श्वसन रंगा (हीमोग्लोबिन) के साथ लगातार अभिक्रिया कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन नामक उत्पाद बनाती रहती है। विसरित ऑक्सीजन का इसी रूप में पूरे मानव शरीर में परिवहन होता है।
हीमोग्लोबिन( Haemoglobin):–
यह एक जटिल प्रोटीन है। इसका निर्माण लौहयुक्त वर्णक हीम तथा ग्लोबिन प्रोटीन से होता है। सभी कशेरुकीय प्राणियों में यह लाल रुधिराणुओं (RBCs) पाया जाता है। केचुएँ तथा अकशेरुकीय प्राणियों में यह रुधिर प्लाज्मा में घुला रहता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर अस्थाई यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन (Oxyhaemoglobin) बनाता है। कोशिकाओं तथा ऊतकों में पहुँचकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन विखण्डित होकर ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है और पुनः अपने वास्तविक रूप में आ जाता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। अतः हीमोग्लोबिन श्वसन के अन्तर्गत ऑक्सीजन संवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(iv) ऊतक स्तर पर गैसीय विनिमय (Exchange of Gases on Tissue Level) :–
ऊतक स्तर पर फेफड़ों की तरह ही परन्तु स्वभाव में विपरीत गैसीय विनिमय होता है अर्थात् रुधिर से 02 ऊतकों में मुक्त होती है तथा COg ऊतकों से रुधिर में विसरित होकर आ जाती है।
(v) कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन (Transportation of CO२):–
कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप उत्पादित CO२ निम्न रूपों में फेफड़ों तक पहुँचता है
(a) कार्बोनिक अम्ल के रूप में (In the form of Carbonic Acid) लगभग 5-7% CO२ रुधिर प्लाज्मा में घुलकर कार्बोनिक अम्ल (H२ CO3) बनाती है। कार्बनिक अम्ल का बनना निम्न अभिक्रिया द्वारा समझा जा सकता है
H२O + CO२ ‹=====› H2CO3
(b) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में (In the form of Carboxyhaemoglobin ) लगभग 10-23% CO2 हीमोग्लोबिन से क्रिया करके कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन भी ऑक्सीहीमोग्लोबिन की तरह का ही अस्थाई यौगिक है। फेफड़ों में पहुंचकर यह विखण्डित होकर CO२ मुक्त कर देता है।
(c) बाइकार्बोनेट्स के रूप में (In the form of Bicarbonates) लगभग 70-85% CO२, सोडियम तथा पोटैशियम बाइकार्बोनेट के रूप में रुधिर द्वारा परिवाहित होती है। ये बाइकार्बोनिक कार्बोनिक अम्ल (H२CO३) की रुधिर में उपस्थित विभिन्न Na व K लवणों के साथ अभिक्रिया के उपरान्त बनते हैं।
बाइकार्बोनेट ऋणात्मक लवण होते हैं। अतः ऊतक स्तर पर इनका बनना फिर ऊतक स्तर से इनका फेफड़ों में पहुँचना तथा फेफड़ों के स्तर पर इनका विखण्डित होना एक विशेष प्रक्रिया की सहायता से सम्भव हो पाता है। इस प्रक्रिया को क्लोराइड शिफ्ट कहते हैं। उपरोक्त से यह स्पष्ट है, कि मानव शरीर में CO२ का परिवहन मुख्यतया बाइकार्बोनेट आयनों द्वारा होता है। अतः इन आयनों को CO२ का वाहक कहते हैं।
नोट:
• श्वसन एक अपचयी (Catabolic), ऊर्जाविमोची (Exergonic) और ऑक्सीकारी (Oxidative) क्रिया है।
• आराम की अवस्था में मानव में 14-18 बार प्रति मिनट श्वासोच्छ्वास क्रिया होती है, परन्तु शिशुओं में यह अधिक बार होती है।
• उच्च श्रेणी के कशेरुकियों के (स्तनधारी) फेफड़े ऋणात्मक दाब के कहे जाते हैं अर्थात् इनके अन्दर O, (अन्तःश्वसन) स्वतः ही इनमें उपस्थित ऋणात्मक दाब के कारण पहुँचती है, इसी कारण ये जन्तु एक ही समय पर भोजन और श्वासोच्छ्वास दोनों प्रक्रियाएँ कर सकते हैं।
फेफड़ों की सामर्थ्य (capacity of Lungs):–
फेफड़े कभी रिक्त नहीं रहते हैं। इनमें लगभग 2500 मिली हवा या वायु हमेशा भरी रहती है। यह वायु कार्यात्मक अवशेष वायु (Functional residual air) कहलाती है। सामान्य रुप से प्रत्येक श्वास में लगभग 500 मिली वायु हम फेफड़ों में भरते व निकालते हैं। ये प्रवाही वायु (Tidal air) कहलाती है। लम्बी श्वास लेकर हम प्रवाही वायु को 3500 मिली तक ले सकते हैं अर्थात् सामान्य से 3 लीटर अधिक। यह सामर्थ्य ( Inspiratory capacity) कहलाती है। प्रश्वसन सामर्थ्य तथा कार्यात्मक अवशेष वायु का आयतन संयुक्त रूप से लगभग 6000 मिली हो जाता है। यह फेफड़ों का मूल सामर्थ्य (Total lung capacity) कहलाती है।
मनुष्य प्रश्वसन सामर्थ्य द्वारा वायु से फेफड़ों को पूरी तरह से भरकर एक निःश्वसन में प्रवाही वायु के अतिरिक्त लगभग 4000 मिली वायु और बाहर निकाल सकते हैं। दूसरे शब्दों में कुल 4500 मिली वायु बाहर निकाल सकते है। यह फेफड़ों की सजीव सामर्थ्य (Vital capacity) कहलाती है।
सजीव सामर्थ्य प्रश्वसन सामर्थ्य से करीब 1000 मिली अधिक होती है। फिर भी फेफड़ों में लगभग 1500 मिली वायु रह जाती है, जो अवशेष वायु (Residual air) कहलाती है। ग्रहण की गई 500 मिली वायु में से 150 मिली वायु श्वासनाल तथा श्वसनी (Bronchioles) में बची रह जाती है। यह मात्रा गैसीय विनिमय में भाग नहीं लेती हैं। यह मृत स्थान वायु (Dead space air) कहलाती है।
आन्तरिक या कोशिकीय श्वसन (Internal or Cellular Respiration):–
कोशिका के भीतर ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होना तथा CO, का आन्तरिक या कोशिकीय श्वसन कहलाता है। कोशिकीय श्वसन सभी जोवित कोशिकाओं में होता है।
इस क्रिया को निम्नलिखित तीन पदों में विभाजित किया गया है।
(i) ग्लाइकोलाइसिस या ईएमपी पथ (Glycolysis or Embden-Meyerhof Parnas Pathway- 'EMP') यह प्रक्रिया कोशिका के कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में होती है। इस प्रक्रिया में समन्यवित अभिक्रियाओं की श्रृंखला के परिणामस्वरूप ग्लूकोस का एक अणु विघटित होकर पाइरुविक अम्ल (Pyruvic acid) के दो अणुओं का निर्माण करता है।
इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। अतः ये ऑक्सी और अनॉक्सी श्वसन में समान रूप से उपस्थित होती है। इसमें प्रयुक्त अभिक्रियाओं में 2 ATP अणु ऊर्जा उपयोग में आती हैं और 4 ATP ऊर्जा अणुओं का निर्माण होता है। अतः 2 ATP अणुओं की उपलब्धि होती है तथा दो स्वतन्त्र H' आयन भी प्राप्त होते हैं, जो NAD अथवा NADP से क्रिया करके क्रमश: NADH२ अथवा NADPH२ बनाते हैं।
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को हम निम्न समीकरण द्वारा समझ सकते हैं
C6H12O6 + 2ATP + 4ADP + 3H३PO4 + 2NAD ----------› 2CH३COCOOH + 4ATP + 2ADP + 2NADH२ + 2H२O
प्रत्येक NADH2, इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र में जाकर 3 ATP का निर्माण करता है। अतः ग्लाइकोलाइसिस में ATP की कुल उपलब्धि 8 अणु की होती है।
(ii) क्रेब्स चक्र (Krebs' Cycle) इस चक्र के अन्तर्गत होने वाली सभी क्रियाएँ माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) की आधार द्रव्य में होती हैं। इन क्रियाओं में ग्लाइकोलाइसिस के फलस्वरूप बने पाइरुविक अम्ल के अणुओं का ऑक्सीजन की उपस्थिति में एक-एक करके पूर्ण ऑक्सीकरण होता है।
पाइरुविक अम्ल के दोनों अणुओं से क्रेब्स चक्र में प्रवेश करने से पहले पाइरुविक अम्ल, एसीटिल कोएन्जाइम - A में परिवर्तित हो जाता है तथा फिर इसी रूप में क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है। इस प्रक्रिया में 6 ATP ऊर्जा प्राप्त होती है।
पाइरुविक अम्ल के क्रेव्स चक्र में प्रवेश करने के बाद प्रत्येक अणु से 12 ATP (कुल 24 ATP दोनों अणुओं से) ऊर्जा मुक्त होती है और 3 CO२ के अणु बनते हैं। इस प्रकार ग्लूकोस के एक अणु से 38 ATP ऊर्जा प्राप्त होती है और 6 CO२ के अणु बनते हैं।
(iii) इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (Electron Transport System or ETS) यह तन्त्र आन्तरिक श्वसन का सबसे महत्त्वपूर्ण पद है तथा इसका निर्माण विभिन्न इलेक्ट्रॉन ग्राही प्रोटीन अणुओं द्वारा माइटोकॉण्ड्रिया में होता है, जब इलेक्ट्रॉन इन अणुओं से गुजरते हैं, तो ऊर्जा मुक्त होती है, जिसे ADP अणु ग्रहण करते हैं और स्वयं ATP अणुओं में परिवर्तित हो जाते है। इस तन्त्र में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉन, ग्लाइकोलाइसिस एवं क्रेब्स चक्र में अपचयित हाइड्रोजन आयन अथवा प्रोटॉन ग्राही (Hydrogen ion or Proton acceptor) अणुओं द्वारा दिए जाते है।
कोशिकीय श्वसन में उपयोगित उपरोक्त प्रोटॉन ग्राही अणु निम्न हैं
(a) NAD or NADP (ग्लाइकोलाइसिस एवं क्रेन्स चक्र दोनों में उपयोगित)
(b) FAD (सिर्फ क्रेन्स चक्र में उपयोगित)
ये पदार्थ ग्लाइकोलाइसिस एवं क्रेब्स चक्र में मुक्त H* से अपचयन के पश्चात् NADH, एवं FADH, के रूप में इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र में प्रवेश करते हैं तथा तन्त्र में आपेक्षित इलेक्ट्रॉन देकर स्वयं ऑक्सीकृत हो जाते हैं। इनके द्वारा इलेक्ट्रॉन मुक्त करने के फलस्वरूप इस तन्त्र में ATP का उत्पादन होता है। इनमें से प्रत्येक NADH, अणु से 3 ATP तथा प्रत्येक FADH, अणु से 2 ATP का निर्माण होता है।
ATP की उत्पत्ति (Generation of ATP) :–
श्वसन प्रक्रिया में ग्लूकोस के एक अणु से कुल 38 ATP अणु निम्नलिखित चक्रों के अन्तर्गत प्राप्त होते हैं
(a) ग्लाइकोलाइसिस के अन्तर्गत 10 ATP अणुओं की प्राप्ति होती है और 2 ATP अणु खर्च हो जाते हैं। अत: 8 ATP अणु प्राप्त होते हैं।
(b) एसीटिल कोएन्जाइम - A के निर्माण के समय 6 ATP अणु प्राप्त होते हैं।
(c) क्रेब्स चक्र में 24 ATP अणु प्राप्त होते हैं।
एटीपी: मानव शरीर की ऊर्जा मुद्रा(ATP: Energy Currency of Human Body):–
भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण के पश्चात् उत्पन्न ऊर्जा ATP (Adenosine Triphosphate) के रूप में संचित होती है। कोशिका में जहाँ ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ATP टूटकर ADP (Adenosine Diphosphate) में बदल जाता है और जो ऊर्जा मुक्त होती है, वह विभिन्न क्रियाओं में उपयोग होती है (चित्र 23(b).3 देखिए)।
इस प्रक्रिया में ADP के अणुओं में ऊर्जा को विशिष्ट उच्च ऊर्जा बन्धों के में अनुबन्धित करके ATP प्राप्त किया जाता है। ATP के अणु में तीन फॉस्फेट मूलक (PO. ) उपस्थित होते हैं। एक फॉस्फेट मूलक के निकलने पर ADP का तथा दो फॉस्फेट मूलक के निकलने पर AMP (एडीनोसीन मोनोफॉस्फेट) का निर्माण होता है। ADP कोशिका के माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) में पहुँचते रहते हैं तथा एक फॉस्फेट मूलक (PO) से क्रिया करके ATP में बदल जाते हैं।
एक अणु ADP से ATP निर्माण के लिए 12 किलो कैलोरी ऊर्जा आवश्यक होती है। इसका तात्पर्य है, कि 38 ATP अणुओं में कुल 456 कि. कैलोरी ऊर्जा ही अनुबन्धित होती है। शेष ऊर्जा (- 673 कि. कैलोरी) ऊष्मा के रूप में विमुक्त हो जाती है।
अत: ATP को कोशिका का ऊर्जा सिक्का (Energy coin) अथवा ऊर्जा मुद्रा (Energy currency) कहा जाता है।
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