प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis):-
प्रत्येक हरा पादप सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सहायता से स्वयं अपने भोजन का निर्माण करता है। पादपों द्वारा यह अपना भोजन बनाने की क्रिया ही प्रकाश-संश्लेषण कहलाती है। पादपों का हरा रंग पर्णहरिम (Chlorophyll) की उपस्थिति के कारण होता है और पर्णहरिम की उपस्थिति के कारण ही पादप सूर्य की प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में बदलकर कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं। अतः प्रकाश-संश्लेषण को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है
“प्रकाश-संश्लेषण वह जैव-रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अकार्बनिक सरल यौगिकों, कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को प्रकाशीय ऊर्जा (सूर्य का प्रकाश) तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) के रूप में बदल दिया जाता है।”
इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
6CO२ + 12H२O --------> C6H12O16 + 6H२O + 60२ ↑
इस क्रिया में ऑक्सीजन सह-उत्पाद के रूप में बाहर निकलती है।
प्रकाश-संश्लेषण की क्रियाविधि (Mechanism of Photosynthesis):-
प्रकाश-संश्लेषण एक जटिल अन्तःशोषी (Endothermal) उपचयी प्रक्रिया है, जोकि निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती है
1. प्रकाशिक या हिल अभिक्रिया (Light or Hill Reaction):-
इस अभिक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम रॉबर्ट हिल (Robert Hill) नामक वैज्ञानिक ने किया था। इसलिए इसे हिल अभिक्रिया (Hill reaction) भी कहते हैं। यह अभिक्रिया हरितलवकों (Chloroplasts) के ग्रेना (Grana) में पर्णहरिम की सहायता से प्रकाश उपस्थिति में सम्पन्न होती है।
अध्ययन की सुगमता के लिए इस अभिक्रिया की विभिन्न घटनाओं को निम्नलिखित पदों में विभक्त कर सकते हैं
(i) सूर्य का प्रकाश अवशोषित कर हरितलवकों के ग्रेनम में उपस्थित पर्णहरिम सक्रिय हो जाते हैं और ADP (एडीनोसन डाइफॉस्फेट) से ATP (एडीनोसीन ट्राइफॉस्फेट) का निर्माण होता है।
(ii) सक्रिय पर्णहरि जल (H२O) का प्रकाश अपघटन (Photolysis) करके उन्हें H+ आपनो तथा OH- आयनों में तोड़ देते हैं।
4H२O -----------› + 4(H+) + 4(OH-)
(iii) जल के प्रकाश अपघटन से उत्पन्न OH- आयन परस्पर मिलकर जल और ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। ऑक्सीजन गैस के रूप में मुक्त होकर रन्ध्र (Stomata) द्वारा बाहर निकल जाती है।
4(OH-) ------------------› 2H२O + O२
(iv) जल के प्रकाश अपघटन से मुक्त H+ आयन प्रोटॉन ग्राही NADP को NADPH२ में अपचयित कर देता है। इस अपचयित NADPH२ से उत्तेजित इलेक्ट्रॉन्स निकलते हैं, जो इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण प्रणाली के द्वारा ऊर्जा मुक्त करते हैं। इस मुक्त ऊर्जा को ADP के अणुओं में एक उच्च ऊर्जा फॉस्फेट समूह बन्ध के रूप में जोड़कर ATP के रूप में संचित कर लिया जाता है।
4(H+) + 2NADP ------------› 2NADPH२
ADP + ~ P ----------------› ATP
प्रकाश की उपस्थिति में ADP से ATP निर्माण की इस प्रक्रिया को फोटोफॉस्फोरिलेशन (Photophosphorylation) कहते हैं।
इस प्रकार प्रकाशिक अभिक्रिया में निम्न तीन मुख्य घटनाएँ घटित होती हैं
(a) जल का अपघटन
(b) ऑक्सीजन का निर्माण
(c) NADPH२ की मदद से ATP का निर्माण
2. अप्रकाशिक अभिक्रिया या केल्विन चक्र (Dark Reaction or Calvin Cycle):-
इस अभिक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम ब्लैकमैन (Blackman ) नामक वैज्ञानिक ने किया था। इसलिए इसे ब्लैकमैन अभिक्रिया (Blackman reaction) भी कहते हैं। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा (Stroma) में होती है। इन क्रियाओं के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। इसे C3 चक्र (C3 cycle) भी कहते हैं, क्योंकि इस चक्र में बनने वाला प्रथम स्थाई यौगिक (फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल) में 3 कार्बन अणु होते हैं।
इस चक्र की अभिक्रियाओं को हम निम्नलिखित पदों के द्वारा समझ सकते हैं
(i) वातावरण से प्राप्त CO१ का कुछ विशेष पदार्थों की उपस्थिति में प्रकाशीय क्रियाओं से प्राप्त NADP•H२ के H+ से अवकरण होता है और PGAL (फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड) नामक पदार्थ बनता है।
इस क्रिया में निम्नलिखित अभिक्रियाएँ सम्मिलित हैं
(a) सर्वप्रथम 5 कार्बन वाले यौगिक RuBP (रिबुलोस 1, 5 बाइफॉस्फेट) के साथ CO2 के अणु मिलकर 6 कार्बन अणु वाले एक अस्थाई यौगिक का निर्माण करते हैं।
6RuBP + 6CO२ --------› 6C6
(b) यह कार्बन यौगिक शीघ्र ही अपचयित होकर 3 कार्बन अणु वाला PGA (फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल) बना लेता है, जो बाद में अपचयित होकर PGAL (फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड) का निर्माण करते हैं।
6C6 यौगिक --------›12 (3PGA) --------› 12 PGAL
(ii) अपचयन के फलस्वरूप बने PGAL के दो अणु आपस में मिलकर पहले ग्लूकोस का निर्माण करते हैं फिर ग्लूकोस से ही अन्य सभी खाद्य-पदार्थों; जैसे-मण्ड (Starch), आदि का निर्माण पादप के अन्दर ही हो जाता है।
2C3H5O3 + 2(H) ) --------› C6H12O6
(iii) अन्त में PGAL और RuBP का पुनर्जनन हो जाता है और यह पदार्थ अभिक्रियाओं को चलाने के लिए पुनः उपलब्ध हो जाते हैं। इस चक्र का रेखीय चित्रण निम्न है
प्रकाशिक एवं अप्रकाशिक अभिक्रिया में अन्तर:-
लक्षण | प्रकाशिक अभिक्रिया | अप्रकाशिक अभिक्रिया |
---|---|---|
अभिक्रिया का नाम | हिल अभिक्रिया | केल्विन अभिक्रिया या चक्र |
अभिक्रिया का स्थान | हरितलवक के ग्रेना भाग में | हरितलवक के स्ट्रोमा में |
प्रकाश की आवश्यकता | इसके लिए प्रकाश आवश्यक है। | इसके लिए प्रकाश आवश्यक नही है। |
ऊर्जा का स्रोत | सूर्य का प्रकाश (फोटॉन्स) | प्रकाश अभिक्रिया में निर्मित ATP |
कुल अभिक्रिया | प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में बदल जाती है। ATP, O२ और NADPH२ उत्पन्न होते हैं। शर्करा नहीं बनती। | CO२ के स्थिरीकरण के लिए ATP और NADPH२ प्रयुक्त होते हैं। शर्करा बनती है। |
नोट:
• सौर ऊर्जा (Solar energy) का रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) में परिवर्तन प्रकाश-संश्लेषण द्वारा होता है।
• प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में अनिवार्य भूमिका निभाने वाले पर्णहरिम को प्रकाश-संश्लेषण की इकाई कहते हैं तथा हरितलवक को प्रकाश-संश्लेषी अंगक कहते हैं।
• तीव्र प्रकाश में पर्णहरिम का नष्ट होना सोलेराइजेशन (Solarisation) कहलाता है।
प्रकाश-संश्लेषण के अन्तिम उत्पाद और उनका दैनिक जीवन में उपयोग(End Products of Photosynthesis and Their Uses in Daily Life):-
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के अन्त में ग्लूकोस और ऑक्सीजन का निर्माण होता है, जो बाद में पादपों की कोशिकाओं में मण्ड (Starch) के रूप में परिवर्तित होकर पादपों के विशेष संचय केन्द्रों में एकत्रित कर लिया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में उत्पादित ऑक्सीजन पादपों सहित सभी जीवों के श्वसन के लिए आवश्यक है। पादप कुछ अन्य रासायनिक क्रियाओं (Chemical reactions) द्वारा अन्य खाद्य-पदार्थों; जैसे- वसा, प्रोटीन, आदि का भी निर्माण करते हैं। इस प्रकार सभी प्रकार के खाद्य-पदार्थ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जीवों को हरे पादपों अर्थात् उत्पादकों (Producers) से मिलते हैं।
इनमें से कार्बोहाइड्रेट और वसा शरीर में ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोगी हैं, जबकि प्रोटीन शरीर की वृद्धि और मरम्मत में उपयोगी हैं। इस क्रिया द्वारा प्रकृति में CO, का उपयोग होने से वातावरण में CO2 और O2 का सन्तुलन बना रहता है।
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Photosynthesis ):-
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होती है
1. बाह्य कारक (External Factors):-
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक निम्नलिखित हैं
(i) प्रकाश (Light) प्रकाश-संश्लेषण की दर दृश्य प्रकाश की उपस्थिति में अधिकतम होती है। प्रकाश-संश्लेषण की दर लाल तरंगदैर्ध्य में सबसे अधिक नीले तरंगदैर्ध्य में उससे कम तथा हरे तरंगदैर्ध्य में सबसे कम होती है।
ठीक इसी प्रकार प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया बहुत कम तीव्रता वाले प्रकाश पर आरम्भ हो सकती है और प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने के साथ बढ़ती है, परन्तु यह देखा गया है, कि तीव्रता बहुत अधिक बढ़ाने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर अचानक कम हो जाती है, क्योंकि अधिक तीव्रता पर पर्णहरिम का सोलेराइजेशन हो जाता है।
(ii) कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) CO, प्रकाश-संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल है। अतः वायुमण्डल में CO२ की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ जाती है।
(iii) जल(water) जल भी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में एक कच्चे माल (Raw material) की तरह प्रयुक्त होता है। इससे प्राप्त हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन करती है। अतः जल की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।
(iv) तापमान (Temperature) पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की दर 10-35°C तापमान तक बढ़ती है। इससे कम अथवा अधिक तापक्रम पर एन्जाइम का विकृतीकरण (Degradation) हो जाता है, जिससे प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।
(v) खनिज लवण (Minerals) खनिज लवणों; जैसे-Mg, Mn, Fe, M, S की कमी से भी प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।
2. आन्तरिक कारक( Internal Factors):-
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले आन्तरिक कारक निम्नलिखित हैं
(i) पर्णहरिम (Chlorophyll) वे पत्तियाँ, जिनमें पर्णहरिम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, उनमें अधिक मात्रा में प्रकाश-संश्लेषण होता है।
(ii) भोज्य पदार्थों का संचय (Accumulation of Food Products) पादपों की पत्तियाँ प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया करती हैं। इस क्रिया से निर्मित भोजन पत्तियों की कोशिकाओं से अन्य भागों को स्थानान्तरित होता रहता है। इसके विपरीत दशा में अर्थात् पत्तियों की कोशिकाओं में भोजन के संचित होने से, प्रकाश संश्लेषण की दर प्रभावित हो जाती है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं (Mesophyll cells) में भोजन संचय से प्रकाश-संश्लेषण की दर घट जाती है।
(iii) पत्ती की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Leaf) प्रकाश-संश्लेषण की दर रन्ध्रों (Stomata) की क्रियाविधि (बन्द और खुलना) तथा इनकी संख्याओं पर निर्भर करती है। पत्ती में रन्ध्रों की अधिक संख्या और इनका देर तक खुला रहना अधिक CO2 के प्रसारण को बढ़ाता है। अत: इस परिस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण ज्यादा होता है।
(iv) जीवद्रव्य (Protoplasm) इसकी सक्रियता प्रकाश-संश्लेषण की दर को प्रभावित करती है। जीवद्रव्य में एन्जाइम होते हैं, जो प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में भाग लेते हैं। नवनिर्मित पत्तियों में जीवद्रव्य अधिक सक्रिय होता है, जिसके फलस्वरूप एन्जाइम अधिक सक्रिय होते हैं। अतः प्रकाश-संश्लेषण की दर अधिक होती है। इसके विपरीत पुरानी पत्तियों में जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, जिसके कारण इन पत्तियों के एन्जाइम अधिक सक्रिय नहीं होते। परिणामस्वरूप प्रकाश-संश्लेषण की दर घट जाती है।
प्रकाश संश्लेषण का महत्त्व(Importance of Photosynthesis ):-
प्रकाश-संश्लेषण के निम्नलिखित महत्त्व हैं
(i) भोज्य-पदार्थों का उत्पादन (Production of Food Products) सम्पूर्ण पृथ्वी पर समस्त जीवन इसी प्रक्रिया पर सर्वाधिक निर्भर हैं। इस क्रिया में ही सूर्य की विकिरण ऊर्जा (Radiation energy), रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) के रूप में भोज्य पदार्थों में एकत्रित हो जाती है, जो प्रत्येक जीव के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
(ii) ऊर्जा का स्रोत (Source of Energy) सभी जीवों के लिए पादपों द्वारा निर्मित भोजन ही ऊर्जा का एक मात्र स्रोत है। शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा भोजन से ही मिलती है। कोयला, तेल, पेट्रोल, डीजल, आदि ईंधन भी पुरातन काल में भू-गर्भ में संचित स्रोत है, जो पादपों द्वारा प्रतिपादित इसी क्रिया में बने थे।
(iii) वायुमण्डल का नियन्त्रण, शुद्धिकरण और जैव-सन्तुलन (Control, Purification and Biotic Balance of Atmosphere) वायुमण्डल में CO, और O, गैसों का अनुपात प्रकाश-संश्लेषण द्वारा नियन्त्रित रहता है। समस्त जीव श्वसन के लिए ऑक्सीजन उपयोग में लेते हैं और CO2 वायुमण्डल में निकालते हैं। दोनों प्रक्रियाओं से वायुमण्डल में गैसीय अनुपात प्रभावित होता है। प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा वातावरण में CO2 की मात्रा कम और O2 की मात्रा अधिक हो जाती है, जिससे जैवीय सन्तुलन बना रहता है। अतः हम कह सकते हैं, कि पादपों में प्रकाश-संश्लेषण वायुमण्डल में गैसीय अनुपात को सन्तुलित करने वाली प्रक्रिया है।
(iv) अन्तरिक्ष यात्रा में (In Space Travel) आज के परिपेक्षण में अन्तरिक्ष यात्रा के लिए ऑक्सीजन और भोजन दोनों की उपलब्धि प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रकाश-संश्लेषण से सम्बन्धित कुछ प्रयोग(Some Experiments of Photosynthesis):-
प्रकाश-संश्लेषण से सम्बन्धित कुछ प्रयोग निम्नलिखित हैं
प्रयोग1 प्रकाश-संश्लेषण में ऑक्सीजन की विमुक्ति का प्रदर्शन(To Show that Oxygen is Evolved in Photosynthesis)
सर्वप्रथम एक बड़ा बीकर लेकर उसमें गर्दन तक जल भर लेते हैं तथा उसमें कोई जलीय पादप; जैसे-हाइड्रिला (Hydrilla) रखते हैं। अब इस पर एक काँच की कीप (Funnel) को उल्टा करके ढ़क दिया जाता है। बीकर के पानी में कुछ ग्राम सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाते हैं, ताकि पादप को CO, मिलती रहे। अब जल से भरी एक परखनली (Test tube) को कीप की नली पर उल्टा रख दिया जाता है और सम्पूर्ण उपकरण को सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाता है।
कुछ समय पश्चात् हाइड्रिला के पादप से सतत रूप में एक गैस के बुलबुले परखनली में इकट्ठा होना शुरु हो जाते हैं। गैस के परीक्षण के लिए परखनली के मुँह पर अँगूठा लगाकर उसे कीप से हटा लेते हैं। अब इसे उलटकर एवं अँगूठा हटाकर जलती हुई तीली को इसके सम्पर्क में लाते हैं, हमें दिखाई देता है, कि तीली तेजी से जलने लगती है। तीली का तेजी से जलना परखनली में की O२ उपस्थिति को दर्शाता है।
निष्कर्ष (conclusion) उपरोक्त प्रयोग से सिद्ध होता है, कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में O२ मुक्त होती है।
प्रयोग 2 प्रकाश संश्लेषण में प्रकाश की आवश्यकता का प्रदर्शन(To Show that Light is Essential for Photosynthesis)
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में अन्तिम उत्पाद के रूप में ग्लूकोस अणु व मण्ड का निर्माण होता है। यदि एक गमले में लगे पादप को 48-72 घण्टे तक अन्धेरे में रखा जाए, तो इसकी पत्तियाँ लगभग मण्डरहित हो जाती हैं। अब इस मण्डरहित पत्तियों वाले पादप का प्रयोग हम प्रकाश संश्लेषण में प्रकाश की आवश्यकता दिखाने के लिए करते हैं। प्रयोगशाला में प्रयोग करते समय इस पादप की एक पत्ती में बीच में दोनों ओर काला कागज लगाकर क्लिप से कस देते हैं।
अब इस गमले को धूप में रख देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पत्तियों में मण्ड बनना आरम्भ हो जाता है। कुछ समय पश्चात् उस पत्ती को तोड़कर मण्ड परीक्षण करते हैं, तो परिणाम यह होता है, कि जिस स्थान पर काला कागज लगाया था वहीं पर मण्ड नहीं बना शेष पत्ती में सामान्य रूप से मण्ड बनता है।
निष्कर्ष (conclusion) अतः स्पष्ट है, कि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है।
प्रयोग 3 प्रकाश-संश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की आवश्यकता का प्रदर्शन(To Show that CO2 is Essential for Photosynthesis)
एक बड़े एवं चौड़े मुँह की बोतल (कॉर्क के साथ) में पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH) का घोल लेते हैं। एक मण्डरहित पादप की पत्ती को चौड़े मुँह की बोतल के अन्दर इस प्रकार लगाते हैं, कि उसका आधा भाग बोतल में तथा आधा बोतल के बाहर रहता है। इस उपकरण को 3-4 घण्टे तक धूप में रखकर आयोडीन परीक्षण करने पर पत्ती का वह भाग, जो बोतल के बाहर था रंगीन (नीला) हो जाता है, परन्तु बोतल के अन्दर के भाग पर आयोडीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इसका कारण यह है, कि बोतल के अन्दर वाले भाग में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा मण्ड का निर्माण नहीं हुआ, क्योंकि बोतल में CO, उपलब्ध नहीं थी। इस बोतल की कार्बन डाइऑक्साइड KOH द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इस प्रयोग को मोल का आधी पत्ती का प्रयोग (Molls half leaf experiment) भी कहते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion) उपरोक्त प्रयोग से सिद्ध होता है, कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए CO२ आवश्यक है।
प्रयोग 4 प्रकाश-संश्लेषण में पर्णहरिम की आवश्यकता का प्रदर्शन (To Show that Chlorophyll is Essential for Photosynthesis)
इस प्रयोग के लिए कोई चित्तीदार पादप; जैसे-क्रोटॉन (Croton), कोलियस (Coleus), आदि लेते हैं, जिनकी पत्तियों पर हरे रंग के धब्बे पाए जाते हैं अर्थात् केवल इन्हीं स्थानों के अन्दर पर्णहरिम होता है।
इसे लगभग 48-72 घण्टे अन्धेरे में रखकर मण्डरहित कर लेते हैं। कुछ समय बाद (लगभग 4-5 घण्टे) सूर्य के प्रकाश में रखने के बाद यदि पादप की एक पत्ती का मण्ड परीक्षण करते हैं, तो केवल उन्हीं स्थानों पर मण्ड मिलेगा, जिन स्थानों पर हरा रंग होता है। इस प्रक्रिया में पर्णहरिम स्थानों को मण्ड परीक्षण से पूर्व ही चिन्हित करना आवश्यक होता है।
निष्कर्ष (Conclusion) उपरोक्त प्रयोग से सिद्ध होता है, कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए पर्णहरिम आवश्यक है।
प्रयोग 5 प्रकाश-संश्लेषण में उत्पन्न मण्ड का परीक्षण(Test for Formation of Starch in Photosynthesis)
मण्ड पानी में अघुलनशील होता है। इसकी अभिक्रिया आयोडीन विलयन के साथ कराने पर इसके कण नीले से काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं, परन्तु यह अभिक्रिया उन पत्तियों के साथ नहीं होती, जिनमें प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा मण्ड का निर्माण होता है, क्योंकि उन पत्तियों में मण्ड मुक्त अवस्था में नहीं होता । अतः वे आयोडीन से नीला रंग प्रदर्शित नहीं कर पाती। इसीलिए हरी पत्तियों में मण्ड परीक्षण के लिए निम्नलिखित पदों का उपयोग करते हैं
(i) सर्वप्रथम एक परखनली में एल्कोहॉल भर लेते हैं। अब इसमें उस पत्ती को रखते हैं, जिसमें मण्ड का परीक्षण करना है।
(ii) अब इस परखनली को पानी से भरे बीकर में रखते हैं तथा बीकर को स्प्रिट लेम्प की सहायता से गर्म करते हैं। ऐसा करने पर पत्ती का पर्णहरिम निकल जाता है और पत्ती रंगहीन हो जाती है।
(iii) पत्ती को पानी में धोकर आयोडीन के तनु विलयन में रखने पर यदि पत्ती का रंग नीला अथवा काला हो जाता है, तो पत्ती में मण्ड उपस्थित है, अन्यथा पत्ती यदि रंगहीन रहती है, तो वह मण्डरहित है।
निष्कर्ष (Conclusion) उपरोक्त प्रक्रिया द्वारा पत्तियों में मण्ड की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाया जा सकता है।
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