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पादपों में आन्तरिक परिवहन(Internal Transportation in Plants)

 पादपों में आन्तरिक परिवहन(Internal Transportation in Plants):-


पादपों में जल तथा खनिज पदार्थों का मृदा से अवशोषण विसरण (Diffusion) द्वारा सम्पन्न होता है तथा इन पदार्थों के आन्तरिक परिवहन हेतु संवहन ऊतक (Vascular tissues) पाए जाते हैं। ये संवहन ऊतक जल तथा खनिज लवणों के साथ ही खाद्य पदार्थों का परिवहन भी करते हैं। पादपों में पाए जाने वाले संवहन ऊतक निम्न दो प्रकार के होते हैं:—


1. दारु या जाइलम (Xylem)

2. पोषवाह या फ्लोएम ( Phloem)


इनमें से जाइलम मृदा से प्राप्त जल एवं खनिज को जड़ से पत्तियों तक पहुँचाता है, जबकि फ्लोएम पत्तियों द्वारा बनाए गए खाद्य पदार्थों को पादप के सभी भागों तक पहुँचाता है। इन संवहन ऊतकों की कार्यविधि के अध्ययन से पहले पादप शरीर से सम्बन्धित उन प्रक्रमों/विधियों का अध्ययन अतिमहत्त्वपूर्ण है, जो इस परिवहन की प्रक्रिया में मुख्य माध्यम का कार्य करते हैं।


परिवहन के माध्यम (Means of Transportation):—


परिवहन एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है, कोशिका (Cell) के अन्दर व बाहर अणुओं का परिवहन मुख्यतया निम्न दो प्रक्रमों पर आधारित होता है:—


विसरण( Diffusion):—

वह प्रक्रम या प्रक्रिया, जिसमें ठोस, द्रव तथा गैस के अणुओं का परिवहन उनकी उच्च सान्द्रता (Higher concentration) से सान्द्रता (Lower concentration) वाले स्थान की ओर होता है, विसरण कहलाता है। विभिन्न अणु विसरण के दौरान एक-दूसरे दबाव प्रेक्षित करते हैं, जिसे विसरण दाब (Diffusion pressure) कहते हैं; उदाहरण- यदि किसी कमरे के एक कोने में। (Perfume) की बोतल खोली जाए, तो कुछ समय पश्चात् इसको गन्ध सम्पूर्ण कमरे मे फैल जाती है।


परासरण (Osmosis):-


वह प्रक्रम या प्रक्रिया, जिसमें विलायक के अणुओं का परिवहन उसकी अधिक सान्द्रता से उसकी कम सान्द्रता की तरफ एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable membrane) के द्वारा होता है, परासरण कहलाता है।

उदाहरण के लिए, जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों (Solutions) को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग कर दिया जाता है,

कम सान्द्रता वाले विलयन (अर्थात् जिसमें विलायक की सान्द्रता अधिक है) से अधिक सान्द्रता वाले विलयन (अर्थात् जिसमें बिलायक की सान्द्रता कम है) की ओर जल अथवा विलायक (Solvent) के अणु गति करने करने लगते हैं।


इस प्रक्रिया में कोशिका से सम्बन्धित पुनः दो सम्भावनाएँ हो सकती है, जोकि निम्न है:—


(i) अन्तः परासरण (Endosmosis) किसी कोशिका को शुद्ध जल में रखने पर जल कोशिका में प्रवेश करने लगता है, यह प्रक्रिया अन्तः परासरण कहलाती है; उदाहरण- सिकुड़ी (Shrink) किशमिश को जल में रखने पर किशमिश का फूल (Swell) जाना।


(ii) बहि:परासरण (Exosmosis) इस प्रक्रिया में कोशिका को सान्द्र विलयन में रखने पर कोशिका के अन्दर से जल अणु बाहर सान्द्र विलयन में आ जाते हैं और कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) सिकुड़ जाता है; उदाहरण - अंगूर को शर्करा या नमक के अधिक सान्द्र विलयन में रखने पर अंगूर सिकुड़ जाता है।



उक्त दोनों प्रक्रियाओं को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं:—


अन्त: परासरण में पिचकी हुई किशमिश में अत्यधिक सान्द्रता वाला शर्करा का विलयन है अर्थात् किशमिश के भीतर जल (विलायक) की सान्द्रता काफी कम है। जब हम इस किशमिश को शुद्ध जल (विलायक सान्द्रता शत प्रतिशत) में डुबोते हैं, तो जल (विलायक) के अणु अधिक सान्द्रता (शुद्ध जल) से कम सान्द्रता (शर्करा विलयन) की ओर गति करने लगते हैं और किशमिश फूल जाती है। इस प्रक्रिया में किशमिश की देह भित्ति अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य करती है।


इसी प्रकार बहिःपरासरण में फूले हुए अंगूरों के कम सान्द्र विलयन से जल के अणु अधिक सान्द्र बाह्य विलयन की ओर गति करने लगते हैं। इस प्रक्रिया में अंगूरों की देह भित्ति अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य करती है।


पादपों में जल का अवशोषण(Absorption of Water in Plants):—


पादपों में जल के अवशोषण का अध्ययन निम्न पदों में किया जा सकता हैं:—


मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण(Absorption of Water by Root Hairs):—


मृदा से जल का अवशोषण पादपों की मूलों (जड़ों) में उपस्थित मूलरोमो द्वारा होता है। ये मूलरोम मृदा के कणों के बीच फँसे रहते हैं तथा इन कणों के चारों ओर स्थित जल की पतली पर्त के सम्पर्क में रहते हैं। इस जल पर्त को केशिका जल (Capillary water) कहते हैं। प्रत्येक मूलरोम के मध्य में एक बड़ी धानी होती है, जिसके कोशिका रस में खनिज लवण, शर्कराएँ व कार्बनिक अम्ल घुले रहते हैं।

इन पदार्थों के घुले होने के फलस्वरूप मूलरोमों के कोशिकाद्रव्य की सान्द्रता बढ़ जाती है अर्थात् कोशिकाद्रव्य का परासरण दाब (Osmotic pressure) मृदा के जल के परासरण दाब से अधिक हो जाता है। अतः जल इस उच्च दाब के कारण अर्द्धपारगम्य प्लाज्मा झिल्ली में से होकर मूलरोम कोशिका में प्रवेश कर जाता है।


जड़ में जल का संवहन( Conduction of Water in Roots):—

जल का मूलरोम कोशिका में जैसे-जैसे प्रवेश होता है, इसके कारण वहाँ स्फीति दाब (Turgor pressure) बढ़ने लग जाता है परिणामस्वरूप जल वल्कुट (Cortex) की कोशिकाओं में पहुँचने लगता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में वल्कुट की कोशिकाएँ पूर्णतया स्फीत (Turgid) हो जाती हैं और इनकी लचीली भित्तियाँ कोशिकाओं के अन्तः द्रव्य पर दबाव डालती है।

इस दबाव के कारण जल जाइलम वाहिकाओं में चला जाता है तथा वल्कुट की कोशिकाएँ बाह्य जल विहीन (शिथिल) हो जाती हैं। ये कोशिकाएँ बाह्य जल प्राप्त करके पुनः स्फीत हो जाती हैं और जल को लगातार जाइलम वाहिकाओं में धकेलना प्रारम्भ कर देती है।

उपरोक्त प्रक्रियाओं से कोशिकाओं में विसरण दाब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit-DPD) उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण जल अन्त: त्वचा (Endodermis) की मार्ग कोशिकाओं में से होकर जाइलम वाहिकाओं में लगातार पहुँचता रहता है, इस प्रकार के दाब न्यूनता को मूलदाब (Root ,  pressure) कहते हैं। इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप जल तने में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है और यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में जल के परिवहन के मार्ग को नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है।



जल अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Water Absorption):—


जल अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं:—


(i) मृदा का तापमान (Temperature of Soil) :—

मृदा के तापमान में एक सीमा तक वृद्धि (20-35°C) होने पर अवशोषण की दर बढ़ती है। कम ताप पर जल श्यान (गाढ़ा) हो जाता है, जीवद्रव्य की पारगम्यता कम हो जाती है तथा मूल (जड़) की वृद्धि भी रुक जाती है, इसलिए जल अवशोषण की दर घट जाती है।


(ii) मृदा में वायु (Aeration in Soil):—

 मूल की वृद्धि एवं उपापचयी अभिक्रियाएं निम्न वातन (Low air) की परिस्थितियों में रुक जाती हैं। मृदा में जल निकास की सुविधा न होने से पादप मुरझा जाते हैं। मृदा में Os की कमी से यह CO, एवं अन्य अम्लों से संतृप्त हो जाती है, जिससे जीवद्रव्य श्यान तथा कम पारगम्य हो जाता है।


(iii) मृदा विलयन की सान्द्रता (Concentration of Soil Solution) :—

यदि मृदा के जल में अधिक मात्रा में लवण व खनिज घुले हों, तो इसकी सान्द्रता अधिक हो जाती है तथा इसका परासरण दाब कोशिका रस के परासरण दाब से अधिक हो जाता है, परिणामस्वरूप मूल द्वारा जल अवशोषण रुक जाता है। इसी कारण से ऐसी मृदा को भौतिक रूप से शुष्क मृदा (Physically dry soil) कहते हैं।


मूलदाब Root Pressure:—


हमने अभी जाना कि मूलरोम कोशिकाएँ मृदा से जल का अवशोषण विसरण दाब न्यूनता (DPD) के कारण करती हैं। व्यावहारिक पैमाने पर यह न्यूनता मूलदाब । के रूप में परिभाषित की जाती हैं। अतः मूलदाब वह दाव है, जो मूलों की वल्कुट कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीति अवस्था में उत्पन्न होता है तथा जिसके फलस्वरूप मृदा का जल जाइलम में होता हुआ पादप के तने में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है। सामान्य परिस्थितियों में यह लगभग दो वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric pressure) के बराबर होता है। इसे मैनोमीटर (Manometer) नामक उपकरण से मापा जाता है।


मूलदाब का प्रयोग द्वारा प्रदर्शन(Demonstration of Root Pressure by Experiment):—


मूलदाब के प्रदर्शन के लिए गमले में लगा हुआ एक स्वस्थ व शाकीय (Herbaceous) पादप लेते हैं (जिसे काफी मात्रा में जल दिया जा चुका हो)। पादप के तने को गमले की मृदा से कुछ सेण्टीमीटर ऊपर चाकू की सहायता से काट देते हैं, तने के कटे हुए सिरे को रबड़ की नली की सहायता से एक 'U' आकार के शीशे के मैनोमीटर से जोड़ देते हैं (चित्र 23(1).4 में देखें)। इसकी नली में कुछ पानी डालकर उसमें पारा भर देते हैं।



अब पारे का प्रारम्भिक तल चिन्हित कर लेते हैं। कुछ समय पश्चात् मैनोमीटर की नली में पारे का तल ऊपर चढ़ता दिखाई देता है। मैनोमीटर की नली में पारे के तल का ऊपर चढ़ना मूलदाब के कारण होता है। इसी दाब के कारण मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल जाइलम वाहिकाओं से होता हुआ ऊपर तक पहुँचा दिया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion) पादप के तने के कटे हुए भाग से पानी का बलपूर्वक निकलना मूलदाब के कारण ही होता है।


खनिज लवणों का अवशोषण(Absorption of Minerals):—


पादप के मूलरोम मृदा से जल के साथ-साथ खनिज लवणों का भी अवशोषण करते हैं। इन खनिज लवणों का अवशोषण आयनों के रूप में होता है। पादपों के लिए आवश्यक खनिज लवण (पोटैशियम, कैल्शियम, आदि) मृदा में क्लोराइड, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट के रूप में पाए जाते हैं।

मृदा में उपस्थित जल में घुलने पर ये (K +,Mg2+, PO-4, CI -, NO 3–,Ca 2+)आदि आयनों में विघटित हो जाते हैं और जटिल (Complex) आयन बनाते हैं। 

यह जटिल आयन एक वाहक की सहायता से प्लाज्मा कला में से होता हुआ कोशिकाद्रव्य में पहुँचता है, जहाँ पर यह विखण्डित होकर अपने अवयव आयनो को मुक्त कर देता है तथा वाहक पुनः प्लाज्मा झिल्ली में लौट जाता है। आयनों की इस परिवहन क्रिया को सक्रिय परिवहन (Active transportation) कहते हैं, क्योंकि इसमें वाहक के आवागमन में ए.टी.पी. (ATP) की ऊर्जा व्यय होती है।


पादपों में जल तथा खनिज लवणों का स्थानान्तरण (परिवहन) या रसारोहण(Translocation of Water and Minerals in Plants or Ascent of Sap):—


पादपों की मूल से उनके शीर्ष तक रस के गमन को रसारोहण (Ascent of sap) कहते हैं। इस रस में लवण तथा खनिज, जल में घुले रहते हैं तथा यह मूल द्वारा अवशोषित किया जाता है अर्थात् पादपों में मृदा से जल तथा खनिज लवण मूल द्वारा अवशोषित होकर जाइलम ऊतक की सहायता से तने में होते हुए पत्तियों तक पहुँचते हैं, इस क्रिया को रसारोहण कहते हैं। रसारोहण जाइलम नलिकाओं द्वारा होता है।


इसे निम्न प्रयोग द्वारा स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं:—


प्रयोग द्वारा पादपों में रसारोहण के मार्ग का प्रदर्शन:—

 

इसे निम्नलिखित दो प्रयोगों द्वारा समझ सकते हैं।


(i) यदि किसी पादप की शाखा को इओसिन या सेफ्रेनिन अभिरंजक के पतले घोल में रखा जाए, तो कुछ समय (कुछ घण्टे) पश्चात् उसके तने और पत्ती में रंगीन धारियाँ दिखाई देने लगती हैं। अब यदि इस तने और पत्ती की 'अनुप्रस्थ काट को देखेंगे तो केवल जाइलम वाहिनियाँ ही रंगीन दिखाई पड़ेगी, जो इस बात का प्रमाण है कि रसारोहण जाइलम वाहिनियों द्वारा ही होता है।


(ii) इसके अतिरिक्त वलयन प्रयोग द्वारा जाइलम और फ्लोएम के बीच तुलनात्मक अध्ययन से भी रसारोहण में जाइलम वाहिकाओं की उपयोगिता प्रमाणित होती है। उपरोक्त वलय प्रयोग को निम्न चित्रों द्वारा समझ सकते हैं



रसारोहण की क्रियाविधि (Mechanism of Ascent of Sap):—

 डिक्सन तथा जौली (Dixon and Jolly; 1895) ने रसारोहण की क्रियाविधि समझाने हेतु वाष्पोत्सर्जन संसंजन तनाववाद (Transpiration cohesion tension theory) प्रस्तुत किया।


वाष्पोत्सर्जन संसंजन तनाववाद(Transpiration Cohesion Tension Theory):—

 यह वाद निम्न तीन सिद्धान्तों पर निर्भर है


(i) जल के अणुओं के मध्य संसंजन बल (Cohesion force) तथा जल एवं जाइलम वाहिकाओं के मध्य आंसजन बल (Adhesion force) लगता है। 

(ii) उपरोक्त बलों के कारण जाइलम वाहिकाओं में जल के अटूट जल स्तम्भ (Water columns) होते हैं। 

(iii) वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (Transpiration pull) के कारण जल स्तम्भ पर तनाव बना रहता है।


सिद्धान्तों का स्पष्टीकरण:—


जल के अणुओं में आपस में आकर्षण होता है अर्थात् इनके मध्य संसंजक बल (Cohesion force) काम करता है। इस बल के कारण जाइलम वाहिकाओं में जल का स्तम्भ बना रहता है, यह स्तम्भ एक अखण्ड स्तम्भ के रूप में पादपों की मूल से लेकर पत्ती तक आरोहण करता है। साथ की जाइलम वाहिकाओं तथा जल स्तम्भ के मध्य लगने वाला आसंजन बल भी जल स्तम्भ को खण्डित नहीं होने देता है।

वाष्पोत्सर्जन के कारण, जो जल वास्पित होता है यह पर्णमध्योतक (Mevophyll) कोशिकाओं पर दाब बनाता है, जिसके कारण एक कोशिका से दूसरी कोशिका का जल परासरण दाब के कारण गतिशील हो जाता है, परिणामस्वरूप जाइलम में उपस्थित जल का स्तम्भ जल को मूल से खींचता तथा रसारोहण की क्रिया सम्पन्न होती है।

सरल शब्दों में इस क्रिया में पर्णमध्योतक से जलवा के वायुमण्डल में उत्सर्जित होने के कारण इनमें उत्पन्न हुई जानकी माँग को जाइलम वाहिकाएँ पूरा करती हैं।

इससे जाइलम चाहिकाओं में जल की कमी होती है और एक प्रकार का खिचाव उत्पन्न होता है, जिसका मुख्य कारण होता है। एक सिरे से जल का बाष्पोत्सर्जन होता है तथा दूसरे सिरे से जल मृदा से अन्दर की ओर खिचता है। यह जाइलम वाहिकाओं में उपस्थित जल स्तम्भ को ऊपर की ओर खींचता है, जिसे वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (Transpiration pull) कहते हैं। इस बाद के निष्कर्षस्वरूप हम यह कह सकते है. कि वाप्पोत्सर्जनाकर्षण ही पादपों में मृदा से जल के निष्क्रिय अवशोषण का मुख्य कारण है। रसारोहण के अतिरिक्त पादपों में खाद्य पदार्थों का परिवहन भी होता है, जोकि दूसरे संवहन तक फ्लोएम द्वारा होता है।


पादपों में कार्बनिक खाद्य-पदार्थों का परिवहन(Transportation of Organic Food Materials in Plants):—


पादप प्रकाश संश्लेषण के फलस्वरूप कार्बनिक खाद्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। इन संश्लेषित खाद्य-पदार्थों का स्थानान्तरण पत्तियों से तरल अवस्था में मूल (जड़) की ओर होता है। इसके अतिरिक्त मज्जा रश्मियो (Pith rays) द्वारा कुछ खाद्य पदार्थ पाश्र्वय दिशा में भी वितरित कर दिया जाता है। इन खाद्य-पदार्थों (शर्करा) का स्थानान्तरण फ्लोएम की मुख्यतया चालनी नलिकाओं (Sieve tubes) तथा सहकोशिकाओं (Companion cells) के माध्यम से होता है। इसे निम्न प्रयोग द्वारा स्पष्ट किया गया है


प्रयोग द्वारा पादपों में खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण का प्रदर्शन :—


इस प्रयोग में हम एक काष्ठीय तने वाला पादप लेते हैं, जिसके काष्ठीय भाग में 2-3 सेमी भाग से जाइलम के बाहर का सम्पूर्ण ऊतक वलय के रूप में निकाल लेते हैं (पादप का कटा भाग नम होना चाहिए। कुछ दिनों पश्चात् हम देखते हैं कि वलय के ठीक ऊपर वाला भाग कुछ फूल जाता है, जबकि वलय के नीचे वाला भाग सूखने लगता है। कुछ समय पश्चात् फूले हुए भाग से मूल भी निकलने लगती है।



इसका कारण यह है, कि निचले भाग में संचित खाद्य-पदार्थ जैविक क्रियाओं में काम आ जाते हैं, साथ ही फ्लोएम की अनुपस्थिति में पत्तियों द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थ नीचे न पहुँचने के कारण यह भाग सूख जाता है तथा अन्त में पतला हो जाता है। अतः इससे सिद्ध होता है, कि खाद्य-पदार्थों का स्थानान्तरण फ्लोएम द्वारा होता है।


फ्लोएम द्वारा खाद्य स्थानान्तरण की मुन्च मात्रात्मक प्रवाह परिकल्पना (Munch Mass Flow Hypothesis for Translocation of Food by Phloem):—


मुन्च परिकल्पना पादपों में खाद्य-पदार्थों के स्थानान्तरण से सम्बन्धित एवं सर्वमान्य है। इस परिकल्पना को निम्न रेखाचित्र से समझ सकते हैं



मुन्च (Munch; 1930) के अनुसार, खाद्य-पदार्थों का स्थानान्तरण खाद्य-पदार्थों की अधिक सान्द्रता वाले स्थान से उनकी कम सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं (Mesophyll cells) में निरन्तर खाद्य पदार्थों के बनते रहने के कारण उनकी सान्द्रता एवं परासरण दाब अधिक बना रहता है।

मूल अथवा भोजन संचय करने वाले भागों द्वारा शर्करा (घुलनशील भोज्य पदार्थ) के निरन्तर उपयोग के कारण अथवा खाद्य-पदार्थों के अघुलनशील अवस्था में बदलकर संचित हो जाने के कारण वहाँ उपस्थित कोशिकाओं का परासरणी दाब कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य-पदार्थ अविरल रूप से फ्लोएम द्वारा मूल की ओर प्रवाहित होते रहते हैं

मुन्च परिकल्पना को निम्न प्रयोग द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

दो परासरणदर्शी (Osmoscope) 'A' और 'B' लेते हैं जैसा चित्र 23. (f).8 में है। परासरणदर्शी बनाने के लिए किसी नली के एक सिरे पर अण्डे की झिल्ली या कोई अन्य अर्द्धपारगम्य झिल्ली बाँध देते हैं। दोनों परासरणदर्शियों को एक नली 'C' द्वारा जोड़ते हैं। परासरणदर्शी 'A' में सान्द्र शर्करा विलयन है तथा 'B' में सादा जल। दोनों परासरणदर्शी को जल से भरे पात्र में रखते हैं। दोनों पात्र भी एक छोटी नली 'D' द्वारा जुड़े रहते हैं।

‘A’ में अत्यधिक परासरण दाब के कारण अधिक स्फीति दाब पैदा होता है। जिसके कारण ‘A’ का विलयन अविरल धारा (Mass flow) के रूप में 'B' की ओर प्रवाहित होता है। यह प्रवाह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि दोनों ओर शर्करा सान्द्रता बराबर नहीं हो जाती है। इसके साथ ही उपरोक्त उपकरण में जल का प्रवाह भी देखने को मिलगा चूँकि विलयन का प्रवाह लगातार B की तरफ हो रहा है अत: B सन्तुलन बनाए रखने के लिए B से जल सदैव पात्र में जाता रहेगा। ठीक इसी प्रकार चूँकि A में विलयन की मात्रा सदैव कम हो रही है। अतः जल सदैव पात्र से A में प्रवेश करता रहेगा।

यदि 'A' में निरन्तर शर्करा को कम न होने दें तथा 'B' में आई हुई शर्करा को हटाया जाता रहे, तो यह क्रिया सतत व तेज गति से होगी।


अब यदि ‘A’को पत्तियों की पर्णमध्योत्तक कोशिकाएँ मान लें, जहाँ शर्करा निर्मित 'होती हैं व परासरण दाब निरन्तर बना रहता है तथा 'B' को मूल व अन्य भाग की कोशिका मानें, जहाँ इस शर्करा का उपयोग अथवा संचयन होता है, तो 'C' फ्लोएम की चालनी नलिका तथा पात्र एंव 'D' जाइलम समान होंगे।




अतः हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं, कि मुन्च की परिकल्पना के अनुसार, जल में घुले भोज्य पदार्थों की एक अविरल मात्रात्मक धारा या दाब, प्रवाह के रूप में फ्लोएम में प्रवाहित होती है।


नोट :—

1) रसारोहण द्वारा सर्वाधिक लम्बे पौधे में भी लवण तथा जल मूल द्वारा अवशोषित होकर शीर्ष तक पहुँच जाते हैं।


2)फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण सुक्रोस के रूप में होता है।

3) मुन्च की परिकल्पना विभिन्न दिशाओं में एक साथ खाद्य-पदार्थों के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में कुछ स्पष्ट नहीं करती।

4) जाइलम जल एवं खनिज लवणों तथा फ्लोएम खाद्य-पदार्थों का संवहन करते हैं। जाइलम तथा फ्लोएम को बन्द कर देने से जल, खनिज लवणों - तथा खाद्य-पदार्थों का संवहन बन्द हो जाएगा।







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