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अध्याय 9 विद्युत ऊर्जा का ऊष्मीय प्रभाव ( Heating effect of electric current):-

 अध्याय 9
विद्युत ऊर्जा का ऊष्मीय प्रभाव ( Heating effect of electric current):-


विद्युत ऊर्जा (Electric Energy):-

किसी चालाक में विद्युत आवेश प्रवाहित होने से जो उर्जा व्यय होती है, उसे विद्युत ऊर्जा कहते हैं।

W = V × q ........................(i)


विद्युत ऊर्जा का मात्रक जूल (joule) होता है।


अतः यदि चालाक के सिरों के बीच विभवान्तर 1 volt हो तथा चालाक में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित किया जाए, तो 1 जूल ऊर्जा व्यय होगी।


विभवान्तर व धारा के पदों में विद्युत ऊर्जा यदि किसी चालक के सिरों के बीच विभवान्तर V वोल्ट है तथा इसमें । ऐम्पियर की धारा t सेकण्ड के लिए प्रवाहित की जाती है, तो चालक में प्रावहित आवेश 


q = I x t कूलॉम ...............(ii)


समी (ii) का मान समी (i) में रखने पर,


चालक में t सेकण्ड में व्यय हुई विद्युत ऊर्जा 


W = VIt जूल .................(iii)


धारा व प्रतिरोध के पदों में विद्युत ऊर्जा यदि चालक का प्रतिरोध R ओम हो, तो ओम के नियम द्वारा,


विभवान्तर(V) = IR ..............(iv)


समी (iv) का मान समी (i) में रखने पर,


W=I²Rt जूल ..................(v)


विभवान्तर व प्रतिरोध के पदों में विद्युत ऊर्जा पुनः ओम के नियम द्वारा,


विद्युतभारा (I) = V / R ................(vi)


समी (vi) का मान समी (v) में रखने पर,


W = (V /R)² x Rt = V² t/ R


W = V²t / R = जूल ................(vii)


समी (iii), (v) व (vii) से, हम कह सकते हैं कि 


व्यय विद्युत ऊर्जा W =VIt = I²Rt = V²t / R जूल


इलेक्ट्रॉन वोल्ट (Electron Volt):–


यदि दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट है, तो इलेक्ट्रॉन को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य 1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट कहलाता है। यह कार्य व ऊर्जा का सबसे छोटा मात्रक है।

यदि दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर V है, तो एक इलेक्ट्रॉन को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य

W=eV

जहाँ

e = इलेक्ट्रॉन का आवेश = 16 x 10-19 कूलॉम

यदि V = 1 वोल्ट हो, तब

W = e = 1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट


अर्थात् 

1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट = 1.6 x 10 -19 जूल


विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव (Heating Effect of Electric Current):-


विद्युत धारा के प्रवाह के कारण किसी चालक के ताप में वृद्धि की घटना को विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहते हैं।

जब किसी चालक में इलेक्ट्रॉन गति करते हैं, तो ये चालक में उपस्थि परमाणुओं से बार-बार टकराते हैं। इस प्रक्रिया में गतिशील इलेक्ट्रॉन अपने गतिज ऊर्जा का कुछ भाग परमाणुओं को स्थानान्तरित कर देते हैं। ऊर्जा के स्थानान्तरण से चालक के परमाणुओं की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है जिससे सम्पूर्ण चालक का ताप बढ़ जाता है अर्थात् विद्युत धारा के प्रवाह से पदार्थों में ऊष्मा उत्पन्न होती है।


चालक में उत्पन्न ऊष्मा की माप (Measurement of Heat Produced in a Conductor):–


माना किसी चालक का प्रतिरोध R ओम है तथा इसके सिरों के बीच विभवान्त V वोल्ट है। यदि चालक में I ऐम्पियर की धारा 1 सेकण्ड के लिए प्रवाहित की जाती है, तो चालक में व्यय विद्युत ऊर्जा


W = VIt जूल


यह ऊर्जा ही ऊष्मा के रूप में उत्पन्न होती है तथा ऊष्मा की माप कैलोरी में की जाती है। अतः


1 कैलोरी = 4.2 जूल 

या

1 जूल = 1/4.2 कैलोरी 

W जूल = W/4.2 कैलोरी 


चूंकि चालक में t सेकण्ड में उत्पन्न ऊष्मा


H = W / 4.2 कैलोरी ...............(viii)


विभवान्तर व धारा के पदों में ऊष्मा समी (viii) में सभी (iii) का मान रखने पर,


H = VIt / 4.2 कैलोरी ...............(ix)


विभवान्तर व प्रतिरोध के पदों में ऊष्मा समी (viii) में सभी (vii) का रखने पर, 

H = V²t / 4.2R कैलोरी ...............(x)


विद्युत धारा व प्रतिरोध के पदों में ऊष्मा समी (viii) में समी (v) का मार रखने पर,

H = I²Rt / 4.2 कैलोरी ...............(xi)


उपरोक्त सूत्र से स्पष्ट है कि चालक में उत्पन्न ऊष्मा 

(i) विद्युत धारा के वर्ग (I²) के अनुक्रमानुपाती होती है, यदि R व t स्थिर है। 

(ii) प्रतिरोध R के अनुक्रमानुपाती होती है, यदि I व t स्थिर हैं। 

(iii) समय t के अनुक्रमानुपाती होती है, यदि I व R स्थिर हैं। 


उपरोक्त तीनों नियमों को जूल के ऊष्मीय उत्पादन के नियम कहते हैं।


विद्युत सामर्थ्य अथवा विद्युत शक्ति (Electric Power):–


किसी विद्युत परिपथ में विद्युत ऊर्जा के व्यय होने की दर को विद्युत सामर्थ्य अथवा विद्युत शक्ति कहते हैं। इसे P से प्रदर्शित करते हैं।


अतः


विद्युत सामर्थ्य = विद्युत ऊर्जा / समय


यदि किसी विद्युत परिपथ में सेकण्ड में W जूल ऊर्जा व्यय होती है, तो परिपथ की विद्युत सामर्थ्य


P = W / t ..................(i)


इसका मात्रक जूल सेकण्ड या वाट होता है। 

यदि किसी परिपथ में 1 जूल प्रति सेकण्ड की दर से ऊर्जा व्यय होती है, तो परिपथ की विद्युत शक्ति 1 वाट होगी।


विभवान्तर व धारा के पदों में विद्युत सामर्थ्यं यदि किसी परिपथ में V वोल्ट के विभवान्तर पर I ऐम्पियर की धारा सेकण्ड के लिए प्रवाहित होती है, तो व्यय ऊर्जा

W = Vit जूल। ................(ii)


समी (ii) का मान सभी (i) में रखने पर


P= Vit /t

P = VI ..................(iii)


धारा व प्रतिरोध के पदों में विद्युत सामर्थ्य यदि परिपथ का प्रतिरोध R ओम है, तो ओम के नियम द्वारा

V = IR ....................(iv)


सभी (iv) का मान सभी (iii) में रखने पर,


P = I²R ......................(v)


विभवान्तर प्रतिरोध के विद्युत सामर्थ्य 

पुनः ओम के नियम के द्वारा

I = V/R ..................(vi)


समी (iv) का मान समी (v) मे रखने पर,

P = V² / R


वाट विद्युत सामर्थ्य का बहुत छोटा मात्रक है। इसके बड़े मात्रक किलोवाट, मेगावाट, व अश्व शक्ति होते हैं।

1किलोवाट = 10³ वाट 

1 मेगावाट = 10⁶ वाट 

 1अश्व शक्ति = 746 वाट


उदाहरण 1. यदि किसी परिपथ में प्रवाहित पारा 10 एम्पीयर है तथा परिपथ का प्रतिरोध 10 ओम है, तो परिपथ की विद्युत शक्ति की गणना कीजिए 

हल दिया है, 

परिपथ में प्रवाहित धारा (I) = 10 एम्पीयर

परिपथ का प्रतिरोध (R) = 10 ओम

परिपथ की विद्युत शक्ति (P) = I²R

                                         = (10)² × 10

                                         = 1000 वाट



विद्युत ऊर्जा के व्यावहारिक मात्रक (Practical Units of Electric Energy):–


जूल विद्युत ऊर्जा का सबसे छोटा मात्रक है इसलिए घरेलू औद्योगिक कार्यों के लिए प्रयुक्त विद्युत उर्जा के मापन हेतु किलोवाट अथवा बोर्ड ऑफ ट्रेड यूनिट (BTU) का प्रयोग किया जाता है जिसे सामान्य भाषा में यूनिट कहा जाता हैं।


1 किलोवाट घण्टा या 1यूनिट विद्युत ऊर्जा की वह मात्रा होती है जो 1 किलोवाट शक्ति वाले परिपथ में घण्टे में व्यय होती है।


किलोवाट घण्टो अथवा यूनिटों की संख्या 

= वाट × घंटे/1000


= वोट × ऐम्पियर× घण्टे / 1000


यदि दिनों की संख्या भी दी गई हो,तो 

किलोवाट घण्टा अथवा यूनिटो की संख्या 

= वाट × घंटे × दिन/1000




1 किलोवाट घण्टा = 3.6 × 10⁶ जूल


नोट:

• विद्युत उत्पादन केन्द्र (Power houses) में उत्पादित ऊर्जा को मेगावाट - घण्टा में व्यक्त करते हैं।


1 मेगावाट - घण्टा = 1000 किलोवाट- घण्टा



विद्युत धारा ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित उपकरण(Apparatus based on Heating Effect of Electric Current):–


1. विद्युत बल्ब (Electric Bulb):–


विद्युत बल्ब, विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित एक उपकरण है। जब विद्युत बल्ब के तन्तु में धारा प्रवाहित की जाती है, तो तन्तु का प्रतिरोध अत्यधिक होने के कारण इसका तापमान 1500°C से 2500°C तक बढ़ जाता है जिस कारण यह चमकने लगता है।


संरचना एवं कार्यविधि:–

विद्युत बल्ब कांच का एक खोखला गोला होता है जिसके अन्दर से वायु निकाल कर निर्वात रखते हैं। बल्ब के उपरी भाग पर एक एल्युमिनियम की टोपी लगी होती हैं जिसके दोनों ओर दो पिने लगी होती हैं।

टोपी के मुंह को चपड़ा या लाख से बंद कर दिया जाता है। चपड़े के ऊपर जस्ते के दो टांके लगे होते हैं जिनका संबंध दो मोटे तारो से होता है। ये तार एक कांच की नली में से होकर बल्ब के अंदर इस प्रकार लाए जाते है कि ये एक - दुसरे से स्पर्श न करे । 



इनके आन्तरिक सिरों के बीच टंगस्टन का एक बारीक तार जुड़ा होता है कि तन्तु (Filament) कहते हैं। टंगस्टन का गलनांक अतिउच्च ( 3400°c) होता है।


जब तन्तु में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह श्वेत तप्त (White box) होकर श्वेत प्रकाश देने लगता है।


बल्ब में निष्क्रिय गैसों का भरना(Filling of Inert Gases inside the Bulb):–


सामान्यतः कम सामर्थ्य वाले बल्बों के अन्दर निर्वात उपस्थित होता है जबि उच्च सामर्थ्य के बल्बों में निष्क्रिय गैसें (जैसे-नाइट्रोजन एवं आर्गन) भरी होत है क्योंकि निष्क्रिय गैसों द्वारा तन्तु का ऑक्सीकरण एवं वाष्पीकरण नहीं हो पात तथा बल्ब की दक्षता व आयु बढ़ जाती है। यदि बल्ब में वायु होगी, तो बल्ब क तन्तु गर्म होकर वायु की ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकृत हो जाएगा।


नोट: विद्युत बल्ब की सामर्थ्य अथवा शक्ति अलग-अलग वोल्टेज पर अलग- अलग होती है। इसलिए सभी विद्युत बल्बों पर वाट के साथ-साथ वोल्टेज भी लिखा रहता है। जैसे - 100 W-230 V वाले बल्ब का अर्थ है कि यदि बल्ब को 230 वोल्ट पर जलाएं, तो इसकी शक्ति 100 वाट होगी। सप्लाई वोल्टेज कम होने पर बल्ब की शक्ति भी कम हो जाती है जिससे प्रकाश धीमा हो जाता है।


दोष( Defect):–

यदि बल्ब में ताप 2100°C से अधिक होता है, तो टंगस्टन का वाष्पीकरण होने लगता है तथा यह बल्ब की दीवारों पर जमने लगता है जिससे बल्ब से बाहर आने वाला प्रकाश धुंधला होने लगता है।



2. विद्युत इस्त्री( Electric Press):–


यह भी विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित एक उपकरण है जिसमें नाइक्रोम (80% निकिल + 20% क्रोमियम) के तापक तार का उपयोग किया जाता है।


संरचना एवं कार्यविधि (Construction and Working):–

 विद्युत इस्त्री के मुख्य अवयव निम्नलिखित होते हैं



(i) आधार प्लेट (Base Plate) विद्युत इस्त्री की आधार प्लेट लोहे की बनी होती है जिसकी बाहरी सतह को क्रोमियम की पॉलिश करके चिकना बनाया जाता है, जिस कारण ऊष्मा का क्षय नहीं होता।


(ii) तापक तार (Heating Wire) विद्युत इस्त्री का तापक तार नाइक्रोम से निर्मित होता है जो एक अभ्रक की पतली चादर पर सपाट रूप से लिपटा होता है। इसे अभ्रक की एक दूसरी प्लेट पर रखकर आधार प्लेट पर रखा जाता है तथा तापक तार को ऐस्बेस्टॉस (Asbestos) की मोटी चादर या परत द्वारा ढक दिया जाता है।


(iii) भार प्लेट (Weight Plate) ऐस्बेस्टॉस के ऊपर स्थित प्लेट को भार प्लेट कहते हैं जिसमें प्लग-पिन लगी होती है। इसका सम्बन्ध नाइक्रोम के तार में लगी सम्बन्धक पत्तियों A तथा B से होता है।


(iv) कुचालक हत्था (Non-conductive Handle) भार प्लेट के ऊपर लकड़ी या एबोनाइट या बैकेलाइट से बना कुचालक हत्था लगा होता है।


जब तापक तार में धारा प्रवाहित की जाती है, तो तार लाल तप्त होकर इस्त्री की आधार प्लेट को गर्म कर देता है। यह तार ऐस्बेस्टॉस से ढका हुआ होता है, जिसके ऊपर वायु होती है। ऐस्बेस्टॉस व वायु दोनों ऊष्मा के कुचालक होते हैं जिस कारण उत्पन्न ऊष्मा ऊपर नहीं जा पाती। अतः समस्त ऊष्मा इस्त्री की तली में जाती है जिससे पूरी तली समान रूप से गर्म हो जाती है और कुचालक हत्थे द्वारा पकड़कर इस्त्री का उपयोग करते हैं।


3. विद्युत ऊष्मक अथवा हीटर (Electric Heater):–


जब किसी उच्च प्रतिरोध वाले तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उस तार में उत्पन्न ऊष्मा का मान बहुत अधिक होता है जिस कारण वह लाल तप्त (Red hot) होकर ऊष्मा उत्सर्जित करने लगता है।


संरचना एवं कार्यविधि( Construction and Working):–


विद्युत ऊष्मक अथवा होटर में चीनी मिट्टी की बनी एक प्लेट होती है जिसमें खाँचे बने होते हैं। इन खाँचों में मिश्रधातु नाइक्रोम का सर्पिलाकार तापक तार लगा होता है जिसके दोनों सिरे प्लेट पर लगे दो पेचों A व B से सम्पर्कित (Connected) होते हैं।




तापक तार के रूप में नाइक्रोम के तार का उपयोग किया जाता है क्योंकि नाइक्रोम में 80% निकिल तथा 20% क्रोमियम होता है जो उच्च ताप पर गर्म करने पर पिघलता नहीं है तथा वायु से क्रिया करके शीघ्र ऑक्सीकृत नहीं होता। जब तापक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह लाल तप्त (800°C-1000°C) होकर ऊष्मा उत्सर्जित करने लगता है।


नोट:

• विद्युत ऊष्मक में चीनी मिट्टी की बनी प्लेट का प्रयोग किया जाता है क्योंकि . चीनी मिट्टी ऊष्मा प्रतिरोध तथा विद्युत की अचालक होती है।


• प्लेट को तापक तार सहित धातु के केस में रखा जाता है, ताकि ऊष्मक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में प्लेट सुरक्षित रहे तथा ऊष्मक पर बर्तन रखने पर वह तापक तार को स्पर्श न करे।


• तापक तार को सीधा न रखकर सर्पिलाकार कुण्डली के रूप में इसलिए रखते हैं, ताकि तार की अधिक लम्बाई कम स्थान में ही आ जाए व अधिक ऊष्मा प्राप्त हो सके।


घरों की वायरिंग में प्रयुक्त सामान्य युक्तियाँ(Common Devices used in Domestic Wiring ):–

घरों की वायरिंग में प्रयुक्त सामान्य युक्तियाँ निम्नलिखित हैं


1. विद्युत मीटर या वाट-घण्टा-मीटर(Electric Meter or Watt-Hour-Meter):–


इस यन्त्र का प्रयोग घरों और कारखानों में व्यय होने वाली विद्युत ऊर्जा के मापन हेतु किया जाता है। यह यन्त्र विद्युत धारा द्वारा बनाए गए चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग विद्युत ऊर्जा मापन में करता है।


वाट घण्टा-मीटर में कुल चार टर्मिनल होते हैं। प्रथम दो टर्मिनलों को जिन पर IN लिखा जाता है, मुख्य लाइन से जोड़ते हैं तथा जिन दो टर्मिनलों पर OUT लिखा होता है उनका सम्बन्ध मुख्य स्विच से किया जाता है। इस प्रकार विद्युत मीटर घर के सम्पूर्ण उपकरणों में व्यय ऊर्जा की माप सीधे यूनिट में करता है।


2. विद्युत फ्यूज (Electric Fuse):–


कभी-कभी घरों में बिजली के तार आपस में मिल जाते हैं, तो परिपथ में लघुपथन (Short circuit) हो जाता है जिस कारण उपकरणों में धारा का मान बढ़ जाता है व इतनी अधिक ऊष्मा उत्पन्न हो जाती है कि उपकरणों के जल जाने का भय रहता है।



परिपथ के इस दोष को दूर करने हेतु जिस युक्ति का प्रयोग करते हैं, उसे फ्यूज कहते हैं। यदि किसी परिपथ में लघुपथन के कारण धारा का मान बढ़ता है, तो फ्यूज पिघल जाता है जिसके कारण परिपथ का मेन लाइन से विच्छेदन (Disconnect) हो जाता है व परिपथ में लगे उपकरण सुरक्षित बच जाते हैं।


सामान्यतः फ्यूज तार मिश्रधातु (ताँबा, टिन और सीसे) से निर्मित होता है जिसे चीनी मिट्टी के बने होल्डर पर लगे दो धात्विक टर्मिनलों के मध्य लगाया जाता है। फ्यूज तार का गलनांक ताँबे की तुलना में बहुत कम होता है। फ्यूज को परिपथ के श्रेणीक्रम में संयोजित किया जाता है। मोटाई के अनुसार फ्यूज तार की एक निश्चित क्षमता होती है जिससे अधिक विद्युत धारा प्रवाहित होने पर फ्यूज तार गर्म होकर पिघल जाता है तथा विद्युत परिपथ टूट जाता है व विद्युत धारा बन्द हो जाती है।


3. स्विच (Switch):–

यह एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा विद्युत उपकरणों में धारा प्रवाहित अथवा रोकी जा सकती है। स्विच में धातु (पीतल तथा ऐल्युमिनियम) के दो टर्मिनल T1 व T2 विद्युतरोधी पदार्थ की प्लेट पर एक-दूसरे से कुछ दूरी पर लगे होते हैं। इन टर्मिनलों से एक धातु की पत्ती P, एक स्प्रिंग तथा एक विद्युतरोधी पदार्थ की घुण्डी (K) जुड़ी रहती है।



इन टर्मिनलों में से एक टर्मिनल पर मुख्य लाइन का तार तथा दूसरे टर्मिनल पर स्विच के बाहर विद्युत उपकरण जोड़ा जाता है। घुण्डी (K) को नीचे दबाने पर पत्ती P, टर्मिनल T1 व T2 के मध्य फस जाती है तथा परिपथ को पूर्ण करके उपकरण में धारा प्रवाहित करती है। यदि घुण्डी (K) को ऊपर उठाया जाता है, तो पत्ती P टर्मिनल T1 व T2 के मध्य से हटकर परिपथ को अपूर्ण कर देती है जिससे विद्युत उपकरण को धारा प्राप्त नहीं होती तथा वह बन्द हो जाता है।


4. बल्ब होल्डर (Bulb Holder):–

इसके माध्यम से विद्युत बल्ब को विद्युत लाइन से संयोजित किया जाता है। इसमें धातु की दो छोटी छड़ें A व B चीनी-मिट्टी के खाँचों में लगी होती हैं। स्प्रिंग के द्वारा छड़ों का संयोजन दो पेंचों से होता है तथा ये पेंच मुख्य लाइन से जुड़े होते हैं।

जब बल्ब को होल्डर में लगाते हैं, तो स्प्रिंग दब जाती है तथा बल्ब के का सम्बन्ध दोनों छड़ों से हो जाता है।



5. संयोजक तार (Connecting Wire):–

विभिन्न उपकरणों (जैसे-विद्युत पंखों, बल्ब) को परिपथ से जोड़ने हेतु प्रयुक्त तार को संयोजक तार कहते हैं। यह ताँबे या ऐल्युमिनियम का बना एक मोटा तार होता है जिसके ऊपर प्लास्टिक या अन्य अवरोधक पदार्थ की एक परत लगी होती है। जिससे कि इनका सम्पर्क आपस में तथा मनुष्यों से न हो सकें।


6. प्लग-पिन तथा प्लग सॉकेट(Plug-Pin and Plug-Socket):–

प्लग-पिन का उपयोग विद्युत उपकरणों को लाइन से जोड़ने के लिए किया जाता है। इनमें पीतल की दो बेलनाकार पिने (A तथा B) होती हैं जिनके सिरे बैकेलाइट की प्लेट में फँसे होते हैं।



इन सिरों पर पेंच लगे होते हैं जो बैकेलाइट प्लेट के ढक्कन द्वारा ढके होते है। विद्युत उपकरणों से आने वाली बिजली के तारों के सिरों को भीतर के पेंचों से जोड़ देते है।

प्लग सॉकेट में पीतल की बनी दो खोखली नलियाँ (A' तथा B') होती हैं। जो चीनी मिट्टी की प्लेट में बने खाँचों में फिट होती हैं। यह प्लेट बैकेलाइट फ्रेम में फिट रहती है जिसे लकड़ी के ब्लॉक की सहायता से दीवार पर लगा देते हैं। दोनों नलियाँ, दोनों पेचों से जुड़ी हुई होती हैं जिन्हें तारों द्वारा लाइन से जोड़ा जाता हैं।

जब दोनों पिनें (A तथा B) नलियों (A' तथा B') में निर्विष्ट (Insert) की जाती हैं, तो दोनों पिनों का सम्बन्ध विद्युत उपकरण से हो जाता है।


7. रेगुलेटर (Regulator):–


किसी भी विद्युत उपकरण की चाल को नियन्त्रित करने हेतु रेगुलेटर का प्रयोग किया जाता है। रेगुलेटर एक प्रकार का धारा नियन्त्रक होता है जिसके द्वारा परिपथ में परिवर्तनीय प्रतिरोध उत्पन्न किया जाता है।

रेगुलेटर की घुण्डी को घुमाने पर प्रतिरोध का मान बढ़ता या घटता है जिसके कारण प्रवाहित विद्युत धारा का मान भी बढ़ता या घटता है।


घरेलू वायरिंग (Domestic Wiring):–

घरों में पावर हाउस से विद्युत धारा दो मोटे तारों द्वारा प्रवाहित होती है जिसे सर्विस लाइन कहते हैं। इन तारों में से एक तार उच्च विभव (220 वोल्ट) का होता है जिसे गर्म तार (Live wire or Phase wire ) कहा जाता है तथा दूसरा तार शून्य विभव का होता है जिसे ठण्डा या उदासीन तार (Neutral wire) कहा जाता है।

इन तारों को वाट-घण्टा-मीटर के दो टर्मिनलों, जिन पर IN लिखा होता है, से जोड़ दिया जाता है तथा मीटर के अन्य दो टर्मिनलों, जिन पर OUT लिखा होता है, को घर के मेन स्विच से जोड़ देते हैं। मेन स्विच से आगे निकलने वाले दोनों तारों के श्रेणीक्रम में मेन फ्यूज लगा दिया जाता है। इन दोनों तारों के माध्यम से घर के अलग-अलग भागों में कई ब्रांच लाइनें समान्तर क्रम में ली जाती हैं जिनका सम्बन्ध घर के विभिन्न उपकरणों से कर दिया जाता है तथा उपकरणों में धारा प्रवाहित होने लगती है।



नोट: एक ही घर में कई ब्रांच लाइनें होने के निम्नलिखित लाभ होते हैं

(i) ब्रांच लाइन की वायरिंग हेतु पतले तार का प्रयोग कर सकते हैं जबकि एक लाइन के लिए मोटा तार लेना पड़ता है जिससे लागत में कमी आती है। 

(ii) ब्रांच लाइन के कारण यदि किसी एक कमरे में शॉर्ट सर्किट होता है, तो उस कमरे का ही फ्यूज उड़ता है शेष घर में लाइट आती रहती है।


वितरण बॉक्स (Distribution Box):–

वितरण बॉक्स का मुख्य कार्य, आवश्यकतानुसार मेन लाइन को अलग-अलग ब्रांच लाइनों में बाँटना (Distribute) है। वितरण बॉक्स में धातु की दो छड़ें (D) लगी होती हैं जो मुख्य लाइन के दोनों तारों से जुड़ी होती हैं। वितरण बॉक्स की छड़ों से कई ब्रांच लाइनें ली जाती हैं जो घर के अलग-अलग भागों में ले जाई जाती हैं। प्रत्येक ब्रांच लाइन के गर्म तार में फ्यूज लगाया जाता है।

ब्रांच लाइन में प्रयुक्त तार व फ्यूज उस लाइन से जुड़े हुए उपकरणों पर निर्भर करता है। यदि किसी ब्रांच लाइन से जुड़े कमरे में हल्के उपकरण; जैसे-पंखे, बल्ब, आदि ही हैं, तो अपेक्षाकृत कम मोटा तार तथा कम मोटा फ्यूज लगाया जाता है। इसके विपरीत यदि ब्रांच लाइन से उच्च क्षमता वाले उपकरण; जैसे-हीटर, इस्त्री, आदि जुड़े हैं, तो ब्रांच लाइन में मोटा तार व अपेक्षाकृत मोटा फ्यूज लगाया जाता है।


घरेलू विद्युत उपकरणों का भूसम्पर्कन (Earthing of Domestic Electric Devices):–

प्रायः सभी घरेलू उपकरण धातु के बने होते हैं, जिन पर विद्युतरोधी पदार्थ का आवरण चढ़ा होता है। जब यह विद्युतरोधी पदार्थ का आवरण खराब हो जाता है, तो भीतर की वायरिंग कभी-कभी आवरण के सम्पर्क में आ जाती हैं जिससे बिजली का झटका लगता है। इस दोष के निवारण हेतु उपकरण के बाह्य आवरण को ताँबे के मोटे तार द्वारा भूसम्पर्कित किया जाता है। आजकल विद्युत उपकरणों को भूसम्पर्कित करने के लिए सर्किटों में तीन टर्मिनल लगाए जाते हैं जिनमें से मोटे वाले टर्मिनल को भूसम्पर्कित किया जाता है।


विद्युत से खतरे (Electric Hazards):–


विद्युत परिपथ के दोषयुक्त हो जाने पर निम्नलिखित खतरों की संभावना होती हैं 

(i) विद्युत परिपथ तथा उससे जुड़े उपकरणों में आग लग सकती है। 

(ii) विद्युत परिपथ को स्पर्श करने पर मनुष्य को तीव्र विद्युत झटका लग सकता है।


विद्युत से खतरों के कारण(Causes of Electrical Hazards):–


विद्युत से खतरों के निम्नलिखित कारण होते हैं


(i) यदि उपकरणों से जुड़े तारों का सम्बन्ध ढीला होता है, तो तारों में आग लगने की संभावना रहती है।


(ii) यदि स्विच की संरचना में दोष हो तथा स्विच से तारों का सम्बन्ध दोषयुक्त होता है, तो स्विच में आग लग सकती है तथा विद्युत उपकरण के जलने की संभावना रहती है।


(iii) यदि विद्युत परिपथ में प्रयुक्त संयोजक तारों का विद्युतरोधन खराब होता है, तो विद्युत परिपथ में लघुपथन होने की संभावना रहती है।


(iv) यदि विद्युत परिपथ में लगे उपकरण को भूसम्पर्कित नहीं किया जाता है तथा उसके परिपथ के तार यदि आवरण से स्पर्श कर जाते हैं, तो व्यक्ति को विद्युत का झटका लगता है तथा कभी-कभी तो मनुष्य की विद्युत झटके के कारण मृत्यु भी हो जाती है।


विद्युत खतरों से बचाव एवं आवश्यक सावधानियाँ(Defence and Necessary Precautions from Danger of Electricity):–


विद्युत खतरों से बचाव एवं आवश्यक सावधानियाँ निम्नलिखित हैं


(i) विद्युत परिपथ में प्रयुक्त तार उच्च कोटि का होना चाहिए तथा उसके ऊपर विद्युतरोधी पदार्थ का आवरण ठीक प्रकार से लगा होना चाहिए।


(ii) परिपथ में जुड़े सभी अवयवों के टर्मिनलों से संयोजक तार अच्छे प्रकार से संयोजित होने चाहिए।


(iii) यदि दो तारों को आपस में जोड़ा जाता है, तो उन पर विद्युतरोधी टेष (Tape) ठीक प्रकार से लगानी चाहिए।


(iv) परिपथ में किसी भी प्रकार का दोष उत्पन्न होने पर परिपथ का मेन स्विच बन्द कर देना चाहिए।


(v) विद्युत परिपथ से जुड़े उपकरणों की मरम्मत से पूर्व उनके भूसम्पर्कन की जाँच कर लेनी चाहिए।


(vi) विद्युत परिपथ की मरम्मत करते समय मेन स्विच बन्द होना चाहिए तथा हाथों पर रबर के दस्ताने पहनने चाहिए।


(vii) विद्युत परिपथ की मरम्मत हेतु प्रयुक्त औजार ठीक प्रकार से विद्युतरोधी आवरण से ढके रहने चाहिए।


(viii) विद्युत परिपथ में प्रयुक्त फ्यूज में उपयुक्त क्षमता का तार लगाना) चाहिए। संयोजन तार के टुकड़े को फ्यूज तार के रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि संयोजन तारों की क्षमता बहुत अधिक होती है। अतः यह लघुपस्थित होने से नहीं बच पाते हैं।


(ix) प्रत्यावर्ती (Alternating) धारा परिपथ में फ्यूज तथा स्विच सदैव फेज तार (L) से संयोजित होने चाहिए।


नोट: वह धारा जिसका मान समय के साथ परिवर्तित होता रहता है, प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) कहलाती है।


(x) यदि उपरोक्त सावधानियों को ध्यान में रखते हुए भी कोई मनुष्य मेन लाइन के तार को छू जाता है, तो मेन स्विच को जल्द से जल्द बन्द करके व्यक्ति को विद्युतरोधी पदार्थ (लकड़ी, प्लास्टिक) सहायता से छुड़ाना चाहिए।
















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