अध्याय 10विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव (magnetic effect of electric current):–
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चुम्बक तथा चुम्बकत्व (Magnet and Magnetism):-
एक ऐसा पदार्थ जो लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करता है और जिसकी कोई निश्चित आकृति भी नहीं होती, चुम्बक कहलाता है। किसी चुम्बक द्वारा लोहे के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने के गुण को चुम्बकत्व कहते हैं।
चुम्बक के प्रकार (Types of Magnet):–
चुम्बक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
(i) प्राकृतिक चुम्बक (Natural Magnet) प्रकृति में स्वतन्त्र रूप से पाए जाने वाले ऐसे पत्थर या खनिज जिनमें स्वाभाविक रूप से चुम्बकीय गुण विद्यमान रहते हैं, प्राकृतिक चुम्बक कहलाते हैं। उदाहरण-मैग्नेटाइट के पत्थर (लोहे का ऑक्साइड )।
(ii) कृत्रिम चुम्बक (Artificial Magnet) वे चुम्बक जिन्हें कृत्रिम विधियों से बनाया जाता है, कृत्रिम चुम्बक कहलाते हैं। कृत्रिम चुम्बक मुख्यतः लोहे, कोबाल्ट, इस्पात, आदि धातु के बनाए जाते हैं।
उदाहरण:- छड़ चुम्बक, नाल चुम्बक, चुम्बकीय सुई, चुम्बकीय नाल, आदि। इनकी लोहे के टुकड़ों को आकर्षित करने की शक्ति, प्राकृतिक चुम्बकों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है।
चुम्बक के ध्रुव (Poles of Magnet):–
चुम्बक के दोनों सिरों के निकट वे बिन्दु जिन पर चुम्बकत्व सबसे अधिक होता है, चुम्बक के ध्रुव कहलाते हैं।
चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं
(i) उत्तरी ध्रुव (North pole)
(ii) दक्षिणी ध्रुव (South pole)
चुम्बक को क्षैतिज तल में स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाने पर उसका एक ध्रुव सदैव उत्तर की ओर तथा दूसरा ध्रुव सदैव दक्षिण की ओर ठहरता है। उत्तर की ओर ठहरने वाले ध्रुव को उत्तरी ध्रुव व दक्षिण की ओर ठहरने वाले ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव कहते हैं तथा ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा चुम्बकीय अक्ष (Magnetic axis) कहलाती है।
चुम्बक के गुण (Properties of Magnet):–
(i) चुम्बक के ध्रुवों पर चुम्बकत्व सबसे अधिक होता है तथा मध्य की ओर कम होता जाता है। चुम्बक के ठीक मध्य में चुम्बकत्व शून्य होता है।
(ii) किन्हीं दो चुम्बक के समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं तथा असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
(iii) किसी चुम्बक को बीच से तोड़ने पर इसके ध्रुव अलग नहीं होते बल्कि टूटे हुए भाग पुनः पूर्ण चुम्बक बन जाते हैं तथा प्रत्येक भाग में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाते हैं। यदि इन भागों को पुनः तोड़ दिया जाए तब भी प्रत्येक भाग एक पूर्ण चुम्बक होगा। अतः चुम्बक के ध्रुवों को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता।
चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field):–
यदि किसी कम्पास सुई को छड़ चुम्बक के समीप किसी बिन्दु पर रखें, तो सुई विक्षेपित होकर एक निश्चित दिशा में ठहर जाती है। अब यदि सुई को फिर छड़ चुम्बक के समीप ही किसी अन्य बिन्दु पर रखें तो वह घूमकर अन्य दिशा में स्थिर हो जाती है। इस प्रकार कम्पास सुई द्वारा चुम्बक के चारों ओर चुम्बक के प्रभाव का अनुभव होता है।
अतः “चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके चुम्बकीय प्रभाव (Magnetic effect) का अनुभव होता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।"
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of Magnetic Field):-
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्षेत्र के किसी बिन्दु पर रखी कम्पास सुईं के दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर खींची गई रेखा की दिशा में होती है।
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Magnetic Field):–
किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् रखे एकांक लम्बाई के तार में एकांक धारा प्रवाहित करने पर तार पर कार्यरत् बल उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कहलाती है।
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन / ऐम्पियर-मी या वेबर/मी² होता है।
यदि चुम्बकीय क्षेत्र के प्रत्येक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा की तीव्रता एवं दिशा परिमाण में समान हों, तो क्षेत्र एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है
परन्तु यदि अलग-अलग बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एवं दिशा परिमाण में असमान हों, तो क्षेत्र असमान चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।
चुम्बकीय बल रेखाएँ (Magnetic Lines of Force):–
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय बल रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को अविरत (Continuous) प्रदर्शित करती हैं तथा इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है।
चुम्बक के समीप बल रेखाएँ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण होती हैं तथा चुम्बक से दूर बल- रेखाएँ पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण होती हैं। इन बल-रेखाओं के बीच दो बिन्दु ऐसे होते हैं जहाँ से कोई भी बल-रेखा नहीं गुजरती । इन बिन्दुओं को उदासीन बिन्दु (Neutral points) कहते हैं। उदासीन बिन्दु पर चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र तथा पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र मान में बराबर व दिशा में विपरीत होते हैं। अत: उदासीन बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र शून्य होता है।
चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण (Properties of Magnetic Lines of Force):–
(i) चुम्बकीय बल रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती है तथा वक्र बनाती हुई चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुम्बक के मीटर से होती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं। इस प्रकार चुम्बक के बाहर इन बल रेखाओं की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर तथा चुम्बक के अन्दर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है।
(ii) चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में चलती हैं।
(iii) चुम्बकीय बल रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती क्योंकि एक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ सम्भव नहीं हैं।
(iv) चुम्बक के ध्रुवों के समीप जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहाँ चुम्बकीय बल-रेखाएँ पास-पास होती हैं तथा ध्रुव से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र को प्रबलता घटती जाती है, अतः वहाँ चुम्बकीय बल रेखाएँ परस्पर दूर होती जाती हैं।
(v) एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर व बराबर दूरियों पर होती हैं।
विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव(Magnetic Effect of Electric Current):–
जिस प्रकार किसी चुम्बक के कारण उसके चारों और चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर चालक के चारों और चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। विद्युत धारा के इस प्रभाव को विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते हैं।
इस तथ्य की पुष्टि ऑरस्टेड (Oerated) ने एक प्रयोग द्वारा की।
ऑरेस्टेड का प्रयोग (Oersted's Experiment):–
यदि एक चुम्बकीय सुई स्वतन्त्रतापूर्वक रखी है तो स्वतन्त्र होने के कारण वह चुम्बकीय याम्योत्तर (Magnetic meridian) की दिशा में है। सुई के ऊपर तथा समान्तर एक तांबे का तार है।
जब धारावाही चालक तार में कोई धारा (I=0) प्रवाहित नहीं होती, तो चुम्बकीय सुई चुम्बकीय याम्योत्तर में स्थिर रहती है। जैसे ही चालक में धारा प्रवाहित करते हैं, तो चुम्बकीय सुई विक्षेपित हो जाती है। यदि ताँबे के तार को सुई के ऊपर न रख कर नीचे रख दिया जाए, तो चुम्बकीय सुई विक्षेपित होती है।
यदि तांबे के तार को सुई के ऊपर न रख कर नीचे रख दिया जाए, तो चुम्बकीय सुई पूर्व विक्षेप के विपरित दिशा में विक्षेपित होती है। यदि तांबे के तार में प्रवाहित धारा की दिशा उल्टी कर दी जाए, तो चुम्बकीय सुई का विक्षेप भी उल्टी दिशा में हो जाता है। अतः चुम्बकीय सुई का घूमना यह सिद्ध करता है कि धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसके कारण चुम्बकीय सुई घूमती है।
इस चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऐम्पियर के तैरने के नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
ऐम्पियर का तैरने का नियम( Ampere's Swimming Rule):–
इस नियम के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति तार में प्रवाहित धारा की दिशा में इस प्रकार तैर रहा हो कि उसका मुँह चुम्बकीय सुई की ओर है, तो सुई का उत्तर ध्रुव उसके बाएँ हाथ की ओर घूम जाएगा।
इस नियम की सहायता से यदि विद्युत धारा की दिशा ज्ञात है, तो चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कर सकते हैं।
धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्रः बायो-सेवर्ट का नियम (Magnetic Field due to a Current-Carrying Conductor : Biot-Savart's Law):–
सर्वप्रथम ऑरस्टेड ने प्रयोगों के आधार पर यह पता लगाया कि जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके बाद बायो तथा सेवर्ट ने प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र प्राप्त किया।
माना AB एक धारावाही तार है जिसमें विद्युत धारा I प्रवाहित हो रही है। तार के एक छोटे खण्ड ∆l के मध्य बिन्दु o से r मीटर की दूरी पर धारा की दिशा से θ कोण बनाते हुए कोई बिन्दु P है। बायो तथा सेवर्ट के प्रयोगों के आधार पर, धारावाही तार के छोटे खण्ड ∆l द्वारा किसी बिन्दु P पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B निम्न बातों पर निर्भर करती है।
(i) यह चालक में प्रवाहित विद्युत धारा (I) के अनुक्रमानुपाती होती है। अर्थात्
B ∝ I
(ii) यह चालक खण्ड की लम्बाई (∆l) के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात् B ∝ ∆L
(iii) यह चालक खण्ड से बिन्दु P तक की दूरी के वर्ग (r²) के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात्
B ∝ 1/r²
(iv) यह चालक खण्ड तथा दूरी r के बीच बनने वाले कोण (θ) की ज्या (Sine) के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात् B ∝ sinθ
उपरोक्त चारों नियमों को मिलाने पर,
B ∝ iAl sin θ /r²
अतः चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
B = μ०iAl sin θ / 4πr² न्यूटन / ऐम्पियर-मी
जहाँ, μo / 4π एक नियतांक है जिसका मान 10- ⁷ न्यूटन/ऐम्पिय²' होता है।
तथा μ० को निर्वात की चुम्बकशीलता कहते हैं तथा इसका मान 4π x 10- ⁷ न्यूटन / ऐम्पियर² होता है।
उपरोक्त सूत्र ही बायो-सेवर्ट नियम कहलाता है।
अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic Field Produced due to a Current- Carrying Straight Conductor of Infinite Length):–
जब किसी सीधे धारावाही चालक में धारा प्रवाहित करते हैं, तो चालक के समीप चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
माना किसी अत्यधिक लम्बाई के सीधे तार में I एम्पियर की धारा प्रवाहित करने पर उससे दूरी r पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र B निम्न बातों पर निर्भर करता है
(i) यह चालक तार में प्रवाहित विद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती होता है
अर्थात् B∝ I
(ii) यह प्रेक्षण बिन्दु की चालक से दूरी (r) के व्युत्क्रमानुपाती होता है
अर्थात् B ∝ 1/r
उपरोक्त दोनों नियमों को मिलाने पर,
B ∝ 1/r
अतः चुम्बकीय क्षेत्र B = ki / r न्यूटन / ऐम्पियर-मी
जहाँ, k एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है जिसका मान μ०/2π = 2 × 10-⁷ न्यूटन / ऐम्पियर² होता है तथा μ० निर्वात की चुम्बकशीलता है।
अतः B = μ०i/2πr न्यूटन/ऐम्पियर- मी
या
B=2×10-⁷ × i /r न्यूटन/ऐम्पियर-मी
सीधे धारावाही चालक तार से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field due to a Current-Carrying Straight Wire):-
जब किसी सीधे तार में धारा प्रवाहित करते हैं, तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस क्षेत्र की बल रेखाओं को लोहे के बुरादे अथवा कम्पास सुई द्वारा खींच सकते हैं।
प्रयोग इसके लिए हम एक समतल गत्ता लेते हैं जिस पर एक सफेद कागज चिपका देते हैं और गत्ते के बीच में छेद करके एक चालक तार को ऊर्ध्वाधर खड़ा कर देते हैं। तार की सहायता से विद्युत परिपथ को दिखाए गए चित्रानुसार पूर्ण कर देते हैं।
गते पर लोहे का बुरादा फैला देते हैं और परिपथ में लगी कुंजी को लगाकर चालक में धारा प्रवाहित करते हैं। इससे तार के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है तथा गत्ते को अँगली से धीरे-धीरे थपथपाते हैं। ऐसा करने पर गत्ते पर पड़ा बुरादा संकेन्द्रीय वृत्तों का रूप ग्रहण कर लेता है। चुम्बकीय सुई की से चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा गत्ते पर दर्शाए गए तीर के निशान के अनुसार प्राप्त होती है।
वास्तव में, लोहे का बुरादा चुम्बकीय बल रेखाओं को प्रदर्शित करता है।
वृत्ताकार धारावाही कुण्डली के कारण चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic Field due to Current-Carrying Circular Coil):–
ताँबे के एक मोठे तार को मोड़कर एक वृत्ताकार कुण्डली बनाकर, कुण्डली को एक गने के ऊपर चिपके सफेद कागज पर समायोजित कर देते हैं। जब परिपथ में कुंजी लगाकर धारा प्रवाहित करते हैं, तो कुण्डली के समीप रखी कम्पास सुई विक्षेपित हो जाती है।
कम्पास सुई की सहायता से गते पर चिपके सफेद कागज पर धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाओं को खींचते जाते हैं।
इस प्रकार प्राप्त चुम्बकीय क्षेत्र को बल रेखाओं में निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं
(i) कुण्डली के तार के किनारों के समीप बल रेखाएँ वृत्ताकार होती हैं तथा धारावाही कुण्डली के तार से दूरी बढ़ने पर चुम्बकीय बल रेखाओं की वक्रता कम होती जाती है।
(ii) कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय बल रेखाएँ समान्तर तथा कुण्डली के तल के लम्बवत् प्राप्त होती है, जो यह सिद्ध करती हैं कि कुण्डली के केन्द्र पर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है तथा उसकी दिशा कुण्डली के तल के लम्बवत् होती है।
(iii) चुम्बकीय बल-रेखाएँ कुण्डली के एक तल से अन्दर की ओर जाती हैं, वह तल दक्षिणी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है तथा दूसरे तल से बाहर निकलती हैं, वह तल उत्तरी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
(iv) कुण्डली के तल को सामने से देखने पर, यदि प्रवाहित धारा की दिशा दक्षिणावर्त (Clockwise) होती है, तो कुण्डली का सामने का तल दक्षिणी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है और यदि कुण्डली में धारा की दिशा वामावर्त (Anti-clockwise) होती है, तो कुण्डली का सामने का तल उत्तरी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
धारावाही परिनालिका के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic Field due to a Current-Carrying Solenoid):–
किसी कुचालक बेलनाकार पाइप के ऊपर उसकी लम्बाई के अनुदिश एकसमान रूप से विद्युतरोधी ताँबे के तारों को लपेटकर बनाई गई बहुत अधिक फेरों की कुण्डली परिनालिका कहलाती है।
यदि इस कुण्डली में किसी सेल के द्वारा विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है. यह एक दण्ड चुम्बक की भांति व्यवहार करने लगती है।
अब कम्पास सुई की सहायता से यदि धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्रः रेखांकन किया जाए, तो नीचे दिए गए चित्र के अनुसार चुम्बकीय बल रेखाएं प्राप्त होती हैं।
इस प्रकार प्राप्त चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाओं में निम्न विशेषताएँ पाई जाती है।
(i) परिनालिका के अक्ष पर बल रेखाएँ अक्ष के समान्तर तथा बहुत पास-पास होती हैं। अक्ष पर बल रेखाओं का समान्तर होना यह सिद्ध करता है कि धारावाही परिनालिका के अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र एकसमान । है तथा बल रेखाओं का पास-पास होना यह सिद्ध करता है कि वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल है।
(ii) चुम्बकीय बल रेखाएँ परिनालिका के एक सिरे से अन्दर की ओर जाती हैं, वह सिरा दक्षिणी ध्रुव की भांति व्यवहार करता है तथा दूसरे सिरे से बाहर निकलती हैं, वह सिरा उत्तरी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
(iii) परिनालिका के तल को सामने से देखने पर यदि प्रवाहित धारा की दिशा दक्षिणावत होती हैं, तो परिनालिका का सामने का तल दक्षिणी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है और यदि परिनालिका में धारा की दिशा वामावर्त होती है, तो परिनालिका का सामने का तल उत्तरी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता:–
परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती हैं
(i) परिनालिका की प्रति एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या पर परिनालिका के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उसकी प्रति एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या बढ़ने से बढ़ता है।
(ii) धारा की प्रबलता पर यदि परिनालिका में धारा बढ़ा दी जाए, तो उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र भी बढ़ जाता है।
(ii) क्रोड के पदार्थ पर परिनालिका के भीतर यदि चुम्बकीय पदार्थ (जैसे-लोहा) की छड़ रख दी जाए, तो परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र काफी बढ़ जाता है। इस छड़ को परिनालिका की क्रोड कहते हैं। अत: परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उसके क्रोड के पदार्थ पर निर्भर करती है।
नोट: परिनालिका का उपयोग विद्युत चुम्बक बनाने में किया जाता है। एक विद्युत चुम्बक किसी कुण्डली में धारा प्रवाहित करने पर बना अस्थायी चुम्बक है तथा इसका चुम्बकत्व तभी तक रहता है। जब तक इसमें धारा प्रवाहित होती रहती है।
चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा ज्ञात करने के नियम(Rules to Determine the Direction of Magnetic Lines of Force):–
1. मैक्सवेल का दक्षिणावर्ती पेंच का नियम(Maxwell's Right Hand Screw Rule):–
इस नियम के अनुसार, यदि पेंच कसते समय पेंचकस को दाएँ हाथ में पकड़कर इस प्रकार घुमाया जाए कि पेंच की नोक धारा की दिशा में आगे बढ़े, तो पेंच को घुमाने की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा को प्रदर्शित करेगी।
2. दाएं हाथ के अंगूठे का नियम (right hand thumb rule):–
इस नियम के अनुसार यदि दाएं हाथ में एक सीधे धारावाहिक चालक को इस प्रकार पकड़े कि अंगुलियों तार पर लिपटी हों व अंगूठा धारा की दिशा में हो, तो लिपटी अँगुलियों की दिशा की बल रेखाओं की दिशा को प्रदर्शित करेगी।
धारावाही चालक पर बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव(Effect of External Magnetic Field on the Current-Carrying Conductor):–
यदि किसी धारावाही चालक को एक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रख दिया जाए तो धारावाही चालक पर बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के कारण एक बल कार्य करने लगता है। इस बल की दिशा बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र तथा चालक में प्रवाहित धारा के लंबवत होती है।
प्रयोग उपरोक्त तथ्य को निम्न प्रयोग द्वारा प्रमाणित करते हैं। एक धारावाही पहले लचीले चालक तार AB को NS चुम्बक के ध्रुवों के मध्य इस प्रकार ढीला बांध देते हैं कि तार AB चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत हों। अब यदि तार में बैटरों की सहायता से धारा प्रवाहित की जाए तो तार ऊपर की और तन जाता है जिससे यह स्पष्ट होता है कि धारावाही तार पर एक बाल ऊपर की ओर लग रहा है।
यदि तार में प्रवाहित धारा की दिशा उलट दी जाए, तो तार नीचे की ओर तन जाता है अर्थात् अब तार पर बल नीचे की और लगता है।
अतः उपरोक्त प्रयोग यह सिद्ध करता है कि किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखे धारावाही पर एक बल लगता है। इस अल की दिशा फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम तथा दाएँ हाथ की हथेली के नियम द्वारा ज्ञात की जा सकती है।
फ्लेमिंग का बाएँ हाथ का नियम(Fleming's Left Hand Rule ):–
इस नियम के अनुसार, यदि बाएं हाथ के अंगूठे तथा उसके पास वाली दोनों अँगुलियों को इस प्रकार फैलाया जाए कि तीनों एक-दूसरे के लम्बवत् रहें तब इस स्थिति में यदि प्रथम अँगुली चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा को तथा बीच वाली अंगुली प्रवाहित धारा (i) की दिशा को प्रदर्शित करे, तो अंगूठा चालक पर लगने वाले बल (F) की दिशा को प्रदर्शित करेगा।
दाएँ हाथ की हथेली का नियम(Right Hand Palm Rule):–
इस नियम के अनुसार, यदि दाएँ हाथ को इस प्रकार फैलाया जाए कि फैली हुई अँगुलियाँ बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा को, अँगूठा धारा (I) की दिशा को प्रदर्शित करे, तो धारावाही चालक पर लगने वाला बल (F) हथेली के लम्बवत् ऊपर की ओर कार्य करेगा।
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर बल(Force on a Current-Carrying Conductor Placed in a Uniform Magnetic Field):–
माना l लम्बाई का एक धारावाही चालक तार, एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र (B) में स्थित है। चालक तार में धारा i प्रवाहित करने पर तार पर बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के एक बल F लगता है। फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार, तार पर लगने वाले बल की दिशा, धारा तथा चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् होगी ।
यदि धारा की दिशा, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से कोण बनाती है, तब धारावाही चालक पर कार्यरत् बल (F) का मान
(i) धारावाही चालक में प्रवाहित धारा (I) के अनुक्रमानुपाती होता है।
अर्थात्। F ∝ I ya i
(ii) बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र (B) की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होता है।
F ∝ B
(iii) धारावाही चालक के तार की लम्बाई (l) के अनुक्रमानुपाती होता है।
अर्थात् f ∝ l
(iv) धारावाही चालक के तार तथा चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बने कोण की ज्या (sine) के अनुक्रमानुपाती होता है।
अर्थात् F ∝ sin θ
उपरोक्त चारों नियमों को मिलाने पर
F ∝ iIB sin θ
अतः धारावाही चालक पर लगने वाला बल
F = kiIB sin θ
जहाँ, k एक समानुपाती नियतांक है। k का मान चुम्बकीय क्षेत्र (B) पर निर्भर करता है तथा B का मात्रक इस प्रकार लिया जाता है कि k का मान 1 हो। अतः
F = iIB sinθ
यह किसी एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का व्यापक सूत्र है।
(a) यदि चालक में प्रवाहित विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर अथवा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो, तो 0=0° होगा। अतः चालक पर लगने वाला बल
F = iBl sin 0°
F = 0
इस स्थिति में चालक पर लगने वाले बल का मान शून्य होगा अर्थात् धारावाही चालक पर कोई बल नहीं लगता।
(b) यदि चालक में प्रवाहित विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् हो, तो θ= 90° होगा। अतः चालक पर लगने वाला बल
F = iBl sin 90°
F = iBI
[
sin 90° = 1]
इस स्थिति में चालक पर लगने वाला बल अधिकतम होता है। इस बल की दिशा फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जाता है।
चुम्बकीय क्षेत्र (B) का मात्रक:–
F = iBI से,
B= F / il
अतः चुम्बकीय क्षेत्र (B) का मात्रक न्यूटन/ऐम्पियर-मी है।
यदि i = 1 ऐम्पियर, l = 1 मी तथा F = 1 न्यूटन हो
तब , B = 1 न्यूटन / ऐम्पियर- मी
अर्थात् यदि किसी एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लम्बवत् रखे 1 मी लम्बे धारावाही चालक में 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करने पर चालक पर 1 न्यूटन का बल कार्यरत् हो, तो चुम्बकीय क्षेत्र (B) का मान 1 न्यूटन/ऐम्पियर-मी होता है।
चुम्बकीय क्षेत्र (B) का मात्रक वेबर/मी² भी लिखा जाता है तथा इसका अन्य मात्रक गॉस (Gauss) होता है।
1 गॉस = 10-⁴ न्यूटन / ऐम्पियर-मी
= 10 वेबर/मी²
विद्युत मोटर( Electric Motor ):–
विद्युत मीटर एक उपकरण है जिसके द्वारा विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
सिद्धान्त(principle):–
जब किसी कुण्डली को क्षेत्र में रखकर धारा प्रवाहित की जाती है तो पर धारा के कारण एक बलयुग्म कार्य करने लगता है जिसको दिशा फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम द्वारा निर्धारित की जाती है। यह बलयुग्म कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में लगातार घुमाता रहता है।
संरचना (construction):–
विद्युत मोटर के चार मुख्य भाग होते है
(i) क्षेत्र चुम्बक (Field Magnet) यह एक शक्तिशाली स्थाई चुम्बक होता है, जिसके ध्रुव-खण्ड N व S है।
(ii) आर्मेचर (Armature) यह बहुत अधिक फेरों वाली आयताकार कुण्डली होती है जिसे तांबे के पृथक्ति (Insulated) तारों की सहायता से कच्चे लोहे के फ्रोड पर लपेटकर बनाया जाता है। यह चुम्बक के ध्रुवों के बीच घूमती रहती है।
(iii) विभक्त वलय (Split Rings) में दो अर्द्धवृत्ताकार खण्डों में विभक्त एक वलय के रूप में होते हैं। आर्मेचर के सिरे चित्रानुसार इन दो अलग-अलग क्लबों में जुड़े रहते हैं।
(iv) बुश (Brush) ये कार्बन धातु की बनी दो पत्तियों होता है जिन्हें विभक्त वलय स्पर्श करते है। इस चुशी का सम्बन्ध दो संयोजक पेंचों से करके इनके बीच एक चैट लगा देते हैं। एक ब्रश से विद्युत धारा कुण्डली में प्रवेश करती है तथा दूसरे ख़ुश से बाहर निकलती हैं।
क्रियाविधि (Procedure):–
जब बैटरी से कुण्डली में धारा प्रवाहित करते हैं, तो फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियमानुसार कुण्डली की भुजाओं पर बराबर परन्तु विपरीत दिशा में दो बल कार्य करते हैं। ये दोनों बल एक बलयुग्म बनाते हैं जिसके कारण कुण्डली वामावर्त दिशा में घूमने लगती है। साथ ही इसमें लगे विभक्त वलय भी घूमने लगते हैं। इन विभक्त वलय की सहायता से कुण्डली का घूर्णन एक ही दिशा में रखा जाता है।
उपयोग (Uses):–
विद्युत मोटर का उपयोग बिजली के उपकरण, जल पम्प, आटा चक्की, बड़ी-बड़ी मशीनें, विद्युत पंखे, आदि को चलाने में किया जाता है।
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर बल: लॉरेन्ज बल (Force on Charged Particle Moving in a Magnetic Field: Lorentz Force):–
जब कोई आवेशित कण किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता है, तो कण पर एक बल आरोपित होता है। इस बल को लरिन्ज बल (Lorentz force) कहते हैं। इस बल की दिशा, चुम्बकीय क्षेत्र तथा कण की गति की दिशा दोनों के लम्बवत् होती है।
माना एक कण जिस पर +q आवेश है, चुम्बकीय क्षेत्र B में क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् वेग से गतिशील है, तो इस कण पर लॉरेन्ज बल
F = qvB
बल (F) की दिशा आवेश (q) तथा वेग (v) की दिशा दोनों के लम्बवत है जो फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम द्वारा निर्धारित की जाती है। यदि कण पर आवेश ऋणात्मक हो, तो बल F' की दिशा चित्र (a) में प्रदर्शित दिशा के विपरीत होगी।
यदि आवेशित कण की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा के लम्बवत् न होकर उससे θ कोण बना रही हो, तो कण पर कार्यरत् बल
F = qvB sinθ
अर्थात् यह बल किसी कण पर आवेश, कण के वेग, चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एवं गति की दिशा के बीच बनने वाले कोण पर निर्भर करता है।
(i) यदि θ = 0° हो, तो बल
F = qvB sin 0°
F = 0
[: sin 0° = 0]
अर्थात् यदि कोई आवेशित कण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के समान्तर गति करता है, तो उस पर कोई बल कार्य नहीं करता।
(ii) यदि θ = 90° हो, तो बल
F = qvB sin 90°
F = qvB
[: sin 90° = 1]
F = q x 0 × Bsin O
अर्थात् यदि कोई आवेशित कण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् गति करता है, तो उस पर लगने वाला बल अधिकतम होता है।
(iii) यदि v = 0 हो, तो बल
F = q ×0 × B sinθ
F = 0
अर्थात् यदि कोई आवेशित कण चुम्बकीय क्षेत्र में स्थिर है, तो उस पर कोई बल कार्य नहीं करता।
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