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अध्याय 8 विद्युत धारा और प्रतिरोध (electric current and resonance):-

अध्याय 8

विद्युत धारा और प्रतिरोध (electric current and resonance):-


विद्युत आवेश (Electric Charge):-

प्रत्येक पदार्थ (Matter) परमाणुओं (प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन) से मिलकर बना होता है जब किसी पदार्थ में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में कमी या वृद्धि हो जाती है, तो उस पदार्थ एक विशेष प्रकार का गुण उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण उसमें विद्युत तथा चुम्बकीय प्रभा उत्पन्न हो जाते हैं। पदार्थ का यह गुण विद्युत आवेश कहलाता है।


अतः “किसी पदार्थ का वह गुण, जिसके कारण उसमें विद्युत तथा चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न हो हैं, विद्युत आवेश कहलाता है।" इसे q से प्रदर्शित करते हैं। यह एक अदिश राशि है। इसका मात्रक कूलॉम (C) होता है।


अतः

q=ne


जहाँ, n = पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों की संख्या

e = इलेक्ट्रॉन पर आवेश, जिसका मान 1.6×10-19 कूलॉम होता है।


1कूलॉम आवेश, उस विद्युत आवेश के तुल्य है जो लगभग 1.6× 10-¹⁹ इलेक्ट्रॉनों में उपस्थित होता है 


नोट :  

• चूंकि परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है व यह विद्युतीय उदासीन होता है, अतः प्रोटॉन का आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर होता है।


• किसी विद्युत आवेश के चारों ओर का यह क्षेत्र जिसमें प्राप्य किया जा सकता है (Electric field) कहलाता है।


विद्युत आवेश निम्नलिखित दो प्रकार का होता है


(i) धनावेश (Positive Charge) किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रॉनों को कमी के कारण उत्पन्न आवेश को धनावेश कहते हैं।

 उदाहरण-- यदि एक काँच की छड़ को रेशम के कपड़े पर रगड़ा जाता है, तो कांच को छड़ पर इलेक्ट्रॉनों को कमी हो जाती है। जिस कारण कांच की छड़ धनावेशित हो जाती है।


(ii) ऋणावेश (Charge) किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रॉनों को अधिकता के कारण उत्पन्न आवेश को ऋणावेश कहते है। 

उदाहरण- यदि ऐबोनाइट की छड़ को फर (Fur) से रगड़ा जाता है तो ऐबोनाइट की उड़ पर इलेक्ट्रॉन को अधिकता हो जाती है। जिस कारण ऐबोनाइट की छड़ ऋणावेशित हो जाती है।


समान आवेशित वस्तुएँ एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती है तथा विपरीत आवेशित वस्तुएँ एक-दूसरे को आकर्षित करती है।


विद्युत धारा (Electric Current):–


किसी चालक में विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। 

इसे I से प्रदर्शित करते हैं। यदि किसी चालक में t समय में आवेश प्रवाहित हो, तो चालक में प्रवाहित विद्युत धारा,

I = q/t


 विद्युत धारा के मापन हेतु अमीटर (Ammeter) का प्रयोग किया जाता है तथा विद्युत धारा का मात्रक कूलॉम/सेकण्ड अथवा ऐम्पियर (A) होता है। 


विद्युत धारा के छोटे मात्रक मिलीऐम्पियर (mA) तथा माइक्रोऐम्पियर (A) होते हैं।


1 मिलीऐम्पियर = 10-³ ऐम्पियर

1 माइक्रोऐम्पियर = 10- ⁶ ऐम्पियर 


यदि किसी परिपथ में 1 सेकण्ड में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित हो, तो उस परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा 1 ऐम्पियर होती है।


नोट: किसी चालक में विद्युत धारा की दिशा, उसमें प्रवाहित होने वाले धन आवेश की दिशा में होती है। धातुओं में विद्युत धारा मुक्त इलेक्ट्रॉनों अर्थात् ऋण आवेश के प्रवाह से उत्पन्न होती है। अतः विद्युत धारा की दिशा मुक्त इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की दिशा के विपरीत होती है।


पदार्थों के प्रकार (Types of Materials):- 

आवेश के प्रवाह की दृष्टि से पदार्थ निम्नलिखित प्रकार के होते हैं


(1) चालक (Conductors) वे पदार्थ जिनमें आवेश का प्रवाह सुगमता से होता है, चालक अथवा सुचालक कहलाते हैं। 

उदाहरण- धातुएँ, अम्लीय जल, लवण, आदि।


(ii) अचालक (Non-conductors) वे पदार्थ जिनमें आवेश का प्रवाह नहीं होता, अचालक या कुचालक कहलाते हैं।

 उदाहरण-सूखी लकड़ी, काँच, रबर, आदि।


(iii) अर्द्धचालक (Semiconductors) वे पदार्थ जो सामान्य अवस्था में आवेश का प्रवाह नहीं करते लेकिन पदार्थ का ताप बढ़ाने पर आवेश का प्रवाह करते हैं, अर्द्धचालक कहलाते हैं। 

उदाहरण-सिलिकॉन (Si), जर्मेनियम (Ge), आदि।


विद्युत विभव( Electric Potentia):–

एकांक धनावेश को अनन्त से विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिन्दु तक लाने में किए गए कार्य को उस बिन्दु का विद्युत विभव कहते हैं। इसे V से प्रदर्शित करते हैं। 


यदि कूलॉम आवेश को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य W जूल हो, तो उस बिन्दु पर कार्यरत् विद्युत विभव,


V = W / q 


विद्युत विभव का मात्रक जूल/कूलॉम या वोल्ट होता है।


विद्युत विभवान्तर (Potential Difference):-


किसी धारावाही विद्युत परिपथ में दो बिन्दुओं के बीच विद्युत विभवान्तर वह कार्य है जो एकांक आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक लाने में किया जाता है। इसे V से प्रदर्शित करते हैं। 


यदि किसी चालक में कूलॉम आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक से जाने में किया गया कार्य W हो, तो उन बिन्दुओं के बीच विभवान्तर


∆V = W / q 


विभवान्तर के मापन हेतु वोल्टमीटर (Voltmeter) का प्रयोग किया जाता है। तथा विभवान्तर का मात्रक जूल/कूलॉम या वोल्ट होता है। 


यदि किसी परिपथ में 1 कूलॉम आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य 1 जूल हो, तो उन दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट होगा।


वोल्ट से छोटे मात्रक मिलीवोल्ट व माइक्रोवोल्ट हैं तथा वोल्ट से बड़े मात्रक किलोवोल्ट व मेगावोल्ट हैं।

1 मिलीवोल्ट - 10-³ वोल्ट, 

1 किलोवोल्ट - 10³ वोल्ट,

1 माइक्रोवोल्ट - 10-⁶ वोल्ट,

1 मेगावोल्ट - 10-⁶ वोल्ट



विद्युत ऊर्जा (Electric Energy):–


किसी चालक में विद्युत आवेश प्रवाहित होने के कारण जो ऊर्जा व्यय होती है, उसे विद्युत ऊर्जा कहते हैं।


विद्युत ऊर्जा के स्रोत (Sources of Electric Energy):-


 विद्युत ऊर्जा के मुख्य स्रोत निम्नलिखित है


(i) सौर ऊर्जा (Solar Energy) सौर ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है। सौर सेल अथवा सौर बैटरी के माध्यम से सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है। अन्तरिक्ष में उपस्थित उपग्रहों को विद्युत ऊर्जा, सौर बैटरी के द्वारा दी जाती है।


(ii) पवन ऊर्जा (Wind Energy) जब वायु चलती है, तो वायु गतिज ऊर्जा होती है। जब से वायु पवन चक्की (Windmill) के ब्लेडों से टकराती हैं, तो पवन चक्की की ब्लेड़ें गति करना प्रारम्भ कर देती है जिससे वायु की गतिज ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।


(iii) जल ऊर्जा (Water Energy) नदियों का जल जब प्रवाहित होता है, तो उसमें गतिज ऊर्जा होती है तथा जब जल को बाँध बनाकर रोक लिया जाता है, तो जल में स्थितिज ऊर्जा आ जाती है। यदि इस रोके हुए जल को टरबाइन (Turbine) पर गिराया जाता है, तो उससे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया में जल की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।


(iv) ऊष्मीय ऊर्जा (Heat Energy) जब दो भिन्न-भिन्न धातुओं के तारों को संयोजित करके एक बन्द परिपथ बनाते हैं तथा इस परिपथ की दोनों सन्धियों (Joints) का ताप भिन्न-भिन्न रखते हैं, तो परिपथ में विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है तथा धारा प्रवाहित होने लगती है। इस प्रक्रिया में ऊष्मीय ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।


विद्युत परिपथ आरेख (Electrical Circuit Diagram):-


विद्युत धारा के प्रवाह के बन्द मार्ग को विद्युत परिपथ कहते हैं। प्रत्येक विद्युत परिपथ में विभिन्न अवयव; जैसे-विद्युत उपकरण, स्विच तार, आदि लगे होते हैं। किसी विद्युत परिपथ का ऐसा आरेख जो उसमें लगे उपकरणों व धारा स्रोत के विभिन्न सम्बन्धों को चिन्हों द्वारा प्रदर्शित करता है, विद्युत परिपथ आरेख कहलाता है।


ओम का नियम (Ohm's Law):–

ओम के नियम के अनुसार, किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (I), उस तार के सिरों के मध्य उत्पन्न विद्युत विभवान्तर (V) के अनुक्रमानुपाती होती है जबकि तार का ताप निश्चित हो। 

दूसरे शब्दों में, जब किसी चालक का ताप तथा अन्य भौतिक अवस्थाएँ (जैसे-लम्बाई, क्षेत्रफल, आदि) नहीं बदलती, तो उसके सिरों पर लगाए गए विभवान्तर व उसमें बहने वाली धारा का अनुपात नियत रहता है।


V ∝ I 


V / I = R (नियतांक)


अथवा


V = IR


जहाँ,


V = विद्युत विभवान्तर, 

I= तार में प्रवाहित विद्युत धारा

R = अनुक्रमानुपाती नियतांक


R को चालक का विद्युत प्रतिरोध कहते हैं जिसका मान चालक के पदार्थ, ताप, क्षेत्रफल, आदि पर निर्भर करता है।


ओम के नियम का सत्यापन(Verification of Ohm's Law):-


ओम का नियम केवल धात्विक चालकों और मिश्र धातु के चालकों के लिए ही लागू होता है। यदि परिपथ में लगाए गए विभवान्तर (V) व धारा (I) के मध्य एक ग्राफ खींचे, तो एक सरल रेखा प्राप्त होनी चाहिए।



इसको सत्यापित करने हेतु एक बैटरी, अमीटर, धारा नियन्त्रक तथा प्रतिरोध तार को परिपथ आरेख के अनुसार श्रेणीक्रम में जोड़ते हैं तथा प्रतिरोध तार के सिरों के मध्य एक वोल्टमीटर लगाते हैं।


परिपथ में कुंजी (K) लगाते ही धारा प्रवाहित होती है। धारा (I) का मान अमीटर (A) से तथा प्रतिरोध के सिरों का विभवान्तर (V) वोल्टमीटर से पढ़ते हैं। यदि धारा नियन्त्रक द्वारा धारा के मान को बढ़ाया जाता है, तो वोल्टमीटर का पाठ्यांक भी बढ़ जाता है। धारा के प्रत्येक मान के लिए वोल्टमीटर के पाठ्यांकको ग्राफ मे निरूपित करने पर एक सीधी रेखा प्राप्त होती हैं अर्थात् V तथा I का अनुपात प्रत्येक बार समान आता है।





विद्युत प्रतिरोध (Electric Resistance):-


किसी चालक का वह गुण, जिसके कारण वह उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है, चालक का विद्युत प्रतिरोध कहलाता है। 

इसे R से प्रदर्शित करते हैं। 

यदि किसी चालक के सिरों के बीच विभवान्तर V वोल्ट हो तथा चालक में प्रवाहित धारा I ऐम्पियर हो, तो चालक का प्रतिरोध

R = V / I


 यह एक अदिश राशि है। इसका मात्रक वोल्ट/ऐम्पियर अथवा ओम होता है। 

यदि किसी चालक में 1 ऐम्पियर विद्युत धारा प्रवाहित हो तथा चालक के दोन सिरों के बीच विद्युत विभवान्तर 1 वोल्ट हो तब उसका विद्युत प्रतिरोध 1 ओम होता है।


बहुत बड़े प्रतिरोध को मेगाओम (Mega ohm) में तथा बहुत छोटे प्रतिरोध को माइक्रोओ (Micro-ohm) में व्यक्त किया जाता है।

1 मेगाओम = 10⁶ ओम

1 माइक्रोओम = 10-⁶ ओम



प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Resistance):–


एक निश्चित ताप पर किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है


(i) लम्बाई (Length) किसी भी चालक तार का प्रतिरोध (R), चालक के लम्बाई (l) के अनुक्रमानुपाती होता है अर्थात् 

R ∝ l 

अतः हम कह सकते हैं कि किसी चालक की लम्बाई में वृद्धि होने प चालक के प्रतिरोध में भी वृद्धि होती है।


(ii) क्षेत्रफल (Area) किसी भी चालक तार का विद्युत प्रतिरोध (R), चालक के अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात्


R ∝ 1 / A


अतः हम कह सकते हैं कि किसी चालक के अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल से (A) में वृद्धि होने पर चालक का प्रतिरोध (R) कम होता है। यहीं कारण है कि मोटे तार का प्रतिरोध कम व पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है।


(iii) पदार्थ की प्रकृति (Nature of Material) यदि समान लम्बाई व समान अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल के तारों को भिन्न-भिन्न पदार्थों द्वारा निर्मित किया जाता है, तो दोनों चालक तारों का प्रतिरोध भी भिन्न-भिन्न होता है।


(iv) ताप (Temperature) किसी भी चालक तार का प्रतिरोध, ताप के अनुक्रमानुपाती होता है अर्थात् किसी चालक का ताप बढ़ाने पर प्रतिरोध में वृद्धि होती है।


विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistance):–


किसी चालक तार का प्रतिरोध, तार की लम्बाई (l) के अनुक्रमानुपाती तथा अनुप्रस्थ- काट के क्षेत्रफल (4) के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात्


R ∝ l / A अथवा R = p l / A



जहाँ p (Rho, रो) एक नियतांक है जिसे विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता (Specific resistance or resistivity) कहते हैं।


p = RA / l


विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम- मीटर होता है।


यदि A = 1 वर्ग मीटर व 1= 1 मी हो, 

तो p= R


अतः विशिष्ट प्रतिरोध को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है 


"किसी पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध वह प्रतिरोध है जो उस पदार्थ के 1 मी लम्बे व 1 वर्ग मी अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल के तार द्वारा उत्पन्न किया जाता है।


विशिष्ट प्रतिरोध पदार्थ का गुण है, अतः यह लम्बाई व क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता।


नोट: एक धातु के अलग-अलग लम्बाई के दो टुकड़े करने पर उनकी प्रतिरोधकता का मान समान रहता है परन्तु प्रतिरोधों का मान भिन्न-भिन्न हो जाता है।


सेल का आन्तरिक प्रतिरोध(Internal Resistance of Cell):–


किसी सेल में उपस्थित विद्युत अपघट्य द्वारा विद्युत धारा के मार्ग में उत्पन्न अवरोध को सेल का आन्तरिक प्रतिरोध कहते हैं। 


किसी भी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध निम्नलिखित दो तथ्यों पर निर्भर करता है


(i) सेल की दोनों प्लेटों के बीच की दूरी बढ़ाने पर सेल का आन्तरिक प्रतिरोध बढ़ जाता है।


(ii) विद्युत अपघट्य की सान्द्रता बढ़ाने पर सेल का आन्तरिक प्रतिरोध बढ़ जाता है।


माना किसी सेल का विद्युत वाहक बल E तथा आन्तरिक प्रतिरोध है। यदि सेल के सिरों को एक प्रतिरोध तार R से जोड़ा जाता है, तो सेल से परिपथ में प्रवाहित धारा


I = E / R+r



प्रतिरोधों का संयोजन(Combination of Resistances):–



1. श्रेणीक्रम संयोजन (Series Combination):– श्रेणीक्रम संयोजन में प्रतिरोधों को जोड़ा जाता है कि प्रतिरोध का दूसरा सिरा अगले प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा हो। इस प्रकार के संयोजन में सभी प्रतिरोधों में एकसमान धारा प्रवहित होती है।



माना तीन प्रतिरोध R1 , R2 व R3 परिपथ के अनुसार श्रेणीक्रम में संयोजित है, जिनके सिरों के विभवान्तर क्रमश: V1, V2, व V3 है तथा प्रतिरोधों में धारा I प्रवाहित हो रही है।

ओम के नियम से,


V1 = IR1 ...................(i)


V2 = IR2 ..................(ii)


V3 = IR3 .................(iii)


माना परिपथ में लगी बैटरी का विभवान्तर V है, तब

V = V1 + V2 + V3 ..................(iv)


यदि A व D के मध्य तुल्य प्रतिरोध हो, तो ओम के नियम से,


V = IR ...................(v)


समी (v) का मान सभी (iv) में रखने पर,

IR = V1 + V2 + V3

IR = IR1 + IR2 + IR3 [समी] (i), (i) व (iii) से]


R = R1 + R2 + R3 


अतः हम कह सकते हैं कि श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध, उनके योग के बराबर होता है।





2. समान्तर क्रम संयोजन (Parallel Combination):–

समान्तर क्रम संयोजन में सभी प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि सभी पहले सिरे एक बिन्दु से दूसरे सिरे दूसरे बिन्दु से जुड़े हो। इस प्रकार संयोजन में सभी प्रतिरोधों के सिरों के बोच विभवान्तर समान होता है।




माना तीन प्रतिरोध R1, R2 व R3 को परिपथ के अनुसार समान्तर क्रम में संयोजित किया गया है जिनमें प्रवाहित धारा क्रमश: I1 , I2 व I3 है। प्रतिरोध में प्रवाहित धारा बिन्दु B पर मिलकर धारा I बनाती है।


बिन्दु A पर धारा तीन भागों में विभाजित होती है, अतः

I = I1 + I 2 + I3 .............(i)

माना बिन्दु A व B के मध्य विभवान्तर V है तथा प्रत्येक प्रतिरोध A व B के मध्य जुड़ा है। अतः प्रत्येक प्रतिरोध का विभवान्तर भी V होगा। 

ओम के नियम से,


I1 = V/R1 ................(ii)

I2 = V/R2..................(iii)

I3 = V/R3 ..................(iv)


समी (ii), (ii) व (iv) का मान सभी (1) में रखने पर

I = V/R1 + V/ R2 + V/R3 ..............(v)


यदि बिन्दुओं A व B के बीच तुल्य प्रतिरोध R हो, तो ओम के नियमानुसार

I = V /R ................(vi)


समी (vi) का मान समी (v) में रखने पर,

V/R = V/R1 + V/ R2 + V/R3

1/R = 1/R1 + 1/ R2 + 1/R3


अतः हम कह सकते हैं कि समान्तर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों के तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम, उन प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है। समान्तर क्रम संयोजन को पार्श्व क्रम संयोजन भी कहते हैं। समान्तर क्रम में तुल्य प्रतिरोध, जोड़े गए प्रतिरोधों में से सबसे कम प्रतिरोध के मान से भी कम होता है।


नोट:

• प्रतिरोधों के समान्तर क्रम संयोजन में सभी प्रतिरोधों में भिन्न-भिन्न धाराएँ प्रवाहित होती हैं तथा प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर समान होता है। अतः यदि एक प्रतिरोध टूट भी जाए, तो परिपथ नहीं खुलता व अन्य प्रतिरोधों में धारा प्रवाहित होती रहती है। उदाहरण- घरों में होने वाली बिजली की फिटिंग।


• श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध अधिकतम होता है अर्थात् धारा का प्रवाह न्यूनतम होता है तथा समान्तर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध न्यूनतम होता है अर्थात् धारा का प्रवाह अधिकतम होता है।


























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