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अध्याय 7 प्रकाशिक यन्त्रः सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी (Optical Instruments: Microscope and Telescope)

 अध्याय 7
प्रकाशिक यन्त्रः सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी
(Optical Instruments: Microscope and Telescope)

जब हम अपने चारों ओर की वस्तुओं को देखते हैं, तो कुछ वस्तुएँ छोटी तथा कुछ वस्तुएँ बड़ दिखाई देती हैं; जैसे- आकाश में स्थिर तारे बहुत छोटे दिखाई देते हैं तथा पृथ्वी पर स्थित किस वस्तु को समीप से देखने पर वह बड़ी दिखाई देती है।

दर्शन कोण (Visual Angle):-

किसी वस्तु का छोटा या बड़ा दिखाई देना, उस वस्तु द्वारा हमारी आंख पर बने का पर निर्भर करता है। इस कोण को दर्शन कोण को हैं। वस्तु द्वारा आँख पर बना दर्शन कोण जितना बड़ा होता है, वस्तु का आकार उतना ही बड़ा दिखाई देता है।

माना कोई वस्तु PB नेत्र पर कोण α बनाती है जिसका रेटिना पर प्रतिबिंब MD बनता है। यदि वस्तु को आंख के समीप P1B1 स्थिति में लाया जाता है, तो वस्तु नेत्र पर β कोण बनती है तथा वस्तु का रेटिना पर प्रतिबिम्ब MD1 बनता है जो पहले के प्रतिविम्व की तुलना में बड़ा है, क्योंकि दर्शन कोण β का मान α से अधिक है। अतः वही वस्तु पहले की अपेक्षा बड़ी दिखाई देने लगती है जबकि वस्तु का वास्तविक आकार अपरिवर्तित रहता है। अतः निकट होने पर छोटी वस्तुएँ बड़ी तथा दूर होने पर बड़ी छोटी दिखाई पड़ती है।

उदाहरण– तारे , चन्द्रमा की अपेक्षा बहुत दूर स्थित होने के कारण छोटा दर्शन कोण बनाते है। यही कारण है कि तारे, चन्द्रमा की तुलना में छोटे दिखाईं पड़ते हैं।


प्रकाशिक यन्त्र (Optical Instruments):-

जिन यन्त्रों या उपकरणों की सहायता से हमें अतिसूक्ष्म वस्तुएँ या बहुत दूर स्थित वस्तुएँ (जैसे- आकाश में स्थिर तारे) बड़ी व स्पष्ट दिखाई देती हैं, उन यन्त्रों को प्रकाशिक यन्त्र कहते हैं।

ये सामान्यतः दो प्रकार के होते हैं
(i) सूक्ष्मदर्शी         (ii) दूरदर्शी

प्रकाशिक यन्त्र की आवर्धन क्षमता (Magnifying Power of an Optical Instrument):-

किसी प्रकाशिक यन्त्र से बने प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बने दर्शन कोण और बिना यन्त्र के केवल आँखों से देखने पर वस्तु द्वारा आँख पर बने दर्शन कोण के अनुपात को यन्त्र की आवर्धन क्षमता कहते हैं। इसे M से प्रदर्शित करते हैं। प्रकाशिक यन्त्र की आवर्धन क्षमता (M)
= प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बना दर्शन कोण / वस्तु               द्वारा आँख पर बना दर्शन कोण

सूक्ष्मदर्शी (Microscope):-

वे प्रकाशिक यन्त्र जिनकी सहायता से निकटवर्ती सूक्ष्म वस्तुओं को स्पष्ट देखा जा सकता है, सूक्ष्मदर्शी कहलाते हैं।

सूक्ष्मदर्शी मुख्य रूप से निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं

1. सरल सूक्ष्मदर्शी (Simple Microscope):-

सरल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से छोटी वस्तुओं का आभासी एवं बड़ा प्रतिबिम्ब बनता है तथा वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं।

संरचना (Construction):-

सरल सूक्ष्मदर्शी में एक कम फोकस दूरी का उत्तल लेन्स प्लास्टिक या धातु के गोल छल्ले में लगा होता है। इसे पकड़ने के लिए गोल छल्ले पर एक हत्था (Handle) लगा होता है।



सिद्धांत (principle):-

जब किसी वस्तु को उत्तल लेन्स के सम्मुख प्रकाशिक केन्द्र (Optical centre) तथा फोकस के मध्य रखा जाता है, तो उसका सीधा, आभासी तथा वस्तु से बड़ा प्रतिबिम्ब बनता है अर्थात् उत्तल लेन्स से वस्तु बड़ी अथवा आवर्धित दिखाई देती हैं इसलिए इसे आवर्धक लेन्स (Magnifying lens) भी कहते हैं।

क्रियाविधि (Procedure):-

माना एक वस्तु PQ आँख से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर रखी है जो आँख पर α दर्शन कोण बनाती है। यदि वस्तु PQ को उत्तल लेन्स के प्रकाशिक केन्द्र O तथा प्रथम फोकस F के मध्य रखा जाता है, तो इसके शीर्ष से दो किरणें QM व QO निकलती हैं। किरण QM लेन्स की मुख्य अक्ष के समान्तर है जो अपवर्तन के पश्चात् लेन्स के द्वितीय फोकस F' से होकर जाती है तथा किरण QO, लेन्स के प्रकाशिक केन्द्र O से होकर सीधी निकल जाती है।
इन दोनों किरणों को पीछे की ओर बढ़ाने पर ये बिन्दु Q' पर मिलती हुई प्रतीत होती हैं। अतः बिन्दु Q' बिन्दु Q का आभासी प्रतिबिम्ब है। बिन्दु Q' से मुख्य अक्ष पर डाला गया लम्ब P'Q' वस्तु PQ का पूर्ण प्रतिबिम्ब है।
चूँकि वस्तु की द्वितीय स्थिति में नेत्र पर बना दर्शन कोण (B), प्रथम स्थिति में बने दर्शन कोण (a) से बड़ा है। अतः वस्तु का सीधा, आभासी व बड़ा प्रतिबिम्ब नेत्र से D दूरी पर बनता है।



सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता (Magnifying Power of a Simple Microscope):-

सरल सूक्ष्मदर्शी से बने प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बने दर्शन कोण तथा वस्तु को स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर रखने पर वस्तु द्वारा आँख पर बने दर्शन कोण के अनुपात को सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता कहते हैं।

यदि वस्तु का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बने तथा लेन्स की फोकस f दूरी हो,
तो सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता

                    M = 1+ (D / f)

यदि कोई वस्तु लेन्स की फोकस दूरी पर स्थित है, तो वस्तु का बड़ा प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है। इस स्थिति में आँख श्रान्त अवस्था में अर्थात् तनाव रहित रहती है परन्तु सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता घट जाती है। अतः श्रान्त आँख के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता
     
                        M = D / f

उपरोक्त सूत्रों से स्पष्ट होता है कि फोकस दूरी का मान जितना कम होगा आवर्धन क्षमता का मान उतना ही अधिक होगा, परन्तु बहुत कम फोकस दूरी का लेन्स मोटा होता है जिसके द्वारा बनने वाले प्रतिबिम्ब में दोष उत्पन्न हो जाता है। अतः अधिक आवर्धन क्षमता प्राप्त करने हेतु सरल सूक्ष्मदर्शी के स्थान पर संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है।

उपयोग :–
(i) घड़ीसाज द्वारा घड़ी के सूक्ष्म पुर्जों को देखकर ठीक करने में।
(ii) प्रयोगशाला में यन्त्र पर लगे वर्नियर पैमाने का पाठ्यांक पढ़ने में।

2. यौगिक अथवा संयुक्त सूक्ष्मदर्शी(Compound Microscope):-

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अत्यधिक छोटी वस्तुओं के बड़े प्रतिबिम्ब देखें जा सकते हैं। इसकी आवर्धन क्षमता सरल सूक्ष्मदर्शी की तुलना में अधिक होती है।

संरचना (Construction):-

इसमें धातु की एक बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर कम फोकस दूरी व छोटे द्वारक का उत्तल लेन्स लगा होता है जिसे अभिदृश्यक लेन्स (Objective lens) कहते हैं। नली के दूसरे सिरे पर एक अन्य छोटी नली इस प्रकार लगी होती है कि उसको बड़ी नली के अन्दर खिसकाया जा सके। इस नली के बाहर वाले सिरे पर एक अन्य उत्तल लेन्स का संयोजन लगा होता है। जिसकी फोकस दूरी एवं द्वारक अभिदृश्यक लेन्स की अपेक्षा अधिक होती है। यह लेन्स आँख की ओर रखा होता है इसलिए इसे नेत्रिका या अभिनेत्र लेन्स (Eye lens) कहते हैं। दोनों लेन्सों का मुख्य अक्ष एक ही होता है। नेत्रिका के फोकस पर क्रॉस तार (Cross wire) लगे रहते हैं। उपकरण में लगी दण्ड-चक्र व्यवस्था की सहायता से नली को आगे-पीछे खिसकाकर अभिदृश्यक लेन्स तथा नेत्रिका लेन्स के बीच की दूरी को बदला जा सकता है।



समायोजन( Adjustment):-

सर्वप्रथम, नेत्रिका को आगे-पीछे खिसकाकर इस प्रकार समायोजित करते हैं कि उसमें से क्रॉस तार स्पष्ट दिखाई दे। अब वस्तु को अभिदृश्यक लेन्स के ठीक सामने उसकी फोकस दूरी से अधिक दूरी पर रखते हैं तथा दण्ड-चक्र व्यवस्था द्वारा पूरी नली को इस प्रकार समायोजित करते हैं कि वस्तु का प्रतिबिम्ब क्रॉस तार पर बने व क्रॉस तार और प्रतिबिम्ब में लम्बन न रहे। इस प्रकार वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।

क्रियाविधि ( Procedure):–

माना एक सूक्ष्म वस्तु PQ को अभिदृश्यक लेन्स L1 के प्रथम फोकस F० से कुछ आगे रखा गया है जिस कारण वस्तु PQ का वास्तविक, उल्टा तथा बड़ा प्रतिबिम्ब P'Q' अभिनेत्र लेन्स L2 से कुछ आगे बनता है। लेन्सों L1 व L2 के बीच की दूरी को इस प्रकार समायोजित करते हैं कि प्रतिबिम्ब P'Q' नेत्रिका L2 के प्रथम फोकस Fe' तथा लेन्स L2 के मध्य बने। इस स्थिति में प्रतिबिम्ब P' Q' लेन्स L2 के लिए वस्तु का कार्य करता है। लेन्स L2 के लिए वस्तु P'Q' का आभासी, सीधा एवं बड़ा प्रतिबिम्ब P" Q" बनता है। यह प्रतिबिम्ब P" Q" प्राय: स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है परन्तु इस स्थिति में यह प्रतिबिम्ब न्यूनतम दूरी और अनन्त के बीच कहीं भी बन सकता है।



संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता(Magnifying Power of a Compound Microscope):-

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता अन्तिम प्रतिबिम्ब की स्थिति पर निर्भर करती है।

यदि वस्तु का अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बनता है,

तो आवर्धन क्षमता

M = -v०/u० [1+ (D / fe)]

जहाँ,

u० = वस्तु की अभिदृश्यक लेन्स से दूरी

v० = प्रतिबिम्ब की अभिदृश्यक लेन्स से दूरी

fe = नेत्रिका की फोकस दूरी

यदि वस्तु का अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है, तो आवर्धन क्षमता

M = -v०/u० × D / fe

आवर्धन क्षमता का ऋणात्मक होना दर्शाता है कि प्रतिबिम्ब उल्टा बनता है। संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की अधिक आवर्धन क्षमता हेतु नेत्रिका लेन्स की फोकस दूरी
(fe) कम होनी चाहिए।

उपयोग पैथोलॉजिस्ट द्वारा सुक्ष्म परीक्षण करने में।

दूरदर्शी (Telescope):–

वे प्रकाशिक यन्त्र जिनकी सहायता से दूर स्थित वस्तुओं अथवा आकाशीय पिण्डों जैसे-तारे, चन्द्रमा, ग्रह आदि के स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखें जा सकते हैं, दूरदर्शी कहलाते हैं।

ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं।

(i) खगोलीय (Astronomical) दूरदर्शी
(ii) पार्थिव (Terrestrial) दूरदर्शी

खगोलीय दूरदर्शी (Astronomical Telescope):-

खगोलीय दूरदर्शी की सहायता से आकाशीय पिण्डों (तारे, चन्द्रमा, आदि) को स्पष्ट देखा जा सकता है।

संरचना (Construction):-

इसमें धातु की एक बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर बड़े द्वारक व अधिक फोकस दूरी का उत्तल लेन्स लगा होता है जिसे अभिदृश्यक लेन्स कहते हैं। नली के दूसरे सिरे पर एक अन्य छोटी नली इस प्रकार लगी होती है कि उसको बड़ी नली के अन्दर खिसकाया जा सके। इस नली के दूसरे सिरे पर एक छोटे द्वारक तथा कम फोकस दूरी का उत्तल लेन्स लगा होता है जिसे नेत्रिका अथवा अभिनेत्र लेन्स कहते हैं। नेत्रिका के फोकस पर क्रॉस तार लगे होते हैं।



समायोजन (Adjustment):-

सर्वप्रथम, नेत्रिका को आगे-पीछे खिसकाकर क्रॉस तार पर फोकस कर लेते हैं। अब जिस वस्तु का प्रतिबिम्ब देखना होता है, अभिदृश्यक लेन्स को उस वस्तु की ओर कर देते हैं। इसके पश्चात् दण्ड-चक्र व्यवस्था द्वारा लेन्स की क्रॉस तार से दूरी इस प्रकार समायोजित करते हैं कि प्रतिबिम्ब व क्रॉस तार में लम्बन न रहे। इस प्रकार वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।

क्रियाविधि (Procedure):-

माना वस्तु PQ दूरदर्शी से बहुत दूर स्थित है। दूरदर्शी के अभिदृश्यक लेन्स L1 द्वारा वस्तु का उल्टा, वास्तविक व छोटा प्रतिबिम्ब (p'Q') इसके द्वितीय फोकस (F1) पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब (P'Q') नेत्रिका L2 के लिए वस्तु का कार्य करता है। दोनों लेन्सों के बीच की दूरी को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि P'Q' नेत्रिका के प्रथम फोकस प्रकाशिक केन्द्र F'2 के बीच बने।

इस प्रकार अन्तिम प्रतिबिम्ब (P" Q") आभासी, सीधा तथा बड़ा आँख से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी तथा अनन्त के बीच बनता है। इस स्थिति में अन्तिम प्रतिबिम्ब P" Q" द्वारा आँख पर बना दर्शन कोण (β) वस्तु द्वारा आँख पर बने दर्शन कोण (α) की तुलना में बड़ा होता है। यदि अभिदृश्यक लेंस द्वारा बना प्रतिबिंब नेत्रिका के प्रथम फोकस पर बने, तो अंतिम प्रतिबिंब अनंत पर बनेगा।



खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता (Magnifying Power of an Astronomical Telescope):-

खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता अन्तिम प्रतिबिम्ब की स्थिति पर निर्भर करती है।

यदि वस्तु का अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बनता है, तो आवर्धन क्षमता


M = - f० / fe (1+ fe / D)


जहाँ

f० = अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी


fe = नेत्रिका की फोकस दूरी


इस स्थिति में दूरदर्शी की लम्बाई f० + ue होती है, जहाँ ue अभिदृश्यक लेन्स द्वारा बने प्रतिबिम्ब की नेत्रिका से दूरी है। 

यदि वस्तु का अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है, तो आवर्धन क्षमता


M = -fo / fe


इस अवस्था में दूरदर्शी की लम्बाई (fo + fe) होती है।


खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी (f०) अधिक तथा नेत्रिका की फोकस दूरी (fe) कम होनी चाहिए।


 उपयोग खगोलशास्त्रियों द्वारा ग्रह, नक्षत्रों तथा तारों का अध्ययन करने में।



सूक्ष्मदर्शी व दूरदर्शी में अन्तर (Difference between Microscope and Telescope):-


 सूक्ष्मदर्शी (microscope):-           

(i) इसकी सहायता से अतिसूक्ष्म वस्तुओं को देखा जाता है। 

(ii) इसके अभिदृश्यक लेन्स का द्वारक छोटा होता है।

(iii) इसके अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी कम होती है।

(iv) इसमें अन्तिम प्रतिविम्ब उल्टा बनता हैं।


दूरदर्शी (telescope):-


(i) इसकी सहायता से दूर स्थित वस्तुओं को देखा जाता है। जैसे-चन्द्रमा, तारे, आदि को देखा जाता है।(ii) इसके अभिदृश्यक लेन्स का द्वारक बड़ा होता है।

(iii) इसके अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी अधिक होती है।

(iv) इसमें अन्तिम प्रतिबिम्ब को अतिरिक् बनता है। लेन्स लगाकर सीधा प्राप्त किया जा सकता है।












Thanks for watching..............









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