भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि ताजि मरागु चले। चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरूम कलमले।।
सुर असुर मुनि कर कान दिन्हें सकल बिकल विचारहीं।
कोदंड खड़ेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहिं।।
संदर्भ:–
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।
प्रसंग:–
उपरोक्त पद्यांश में धनुष– भंग के पश्चात सभी लोकों में मची उथल-पुथल का आलंकारिक वर्णन किया गया है।
व्याख्या :–
कवि तुलसीदास जी कहते हैं कि जब श्रीराम ने शिव धनुष को तोड़ा तो उनके टूटने की भयंकर कठोर ध्वनि की गुंज सभी लोक में गुंज गई, जिससे घबराकर सूर्य के रथ के घोड़े मार्ग को छोड़कर चलने लगे। समस्त दिशाओं के हाथी चिघांड़ने लगे, पृथ्वी कांपने लगी, शेषनाग, वाराह और कच्छप व्याकुल हो उठे।
देवता,राक्षस और मुनि कानों पर हाथ रख कर व्याकुल होकर विचारने लगे। तुलसीदास जी कहते हैं कि जब सभी को यह विश्वास हो गया कि श्री राम ने धनुष तोड़ डाला है, तब सब श्रीरामचंद्र की जय जय बोलने लगे।
काव्य गत सौन्दर्य
भाषा- अवधी। शैली - प्रबंध और चित्रात्मक
गुण- ओज । रस - अद्भुत
शब्दशक्ति - अभिधा और लक्षणा।
अलंकार - अनुप्रास अलंकार।
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