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दिसिकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर डोला।। राम चहहि संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।

 दिसिकुंजरहु कमठ अहि कोला।

धरहु धरनि धरि धीर डोला।।
राम चहहि संकर धनु तोरा।
होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।
चाप समीप रामु जब आए।
नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए।।
सब कर संसउ अरु अग्यानू।
मंद महिपन्ह कर अभिमानु

संदर्भ:–

प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।

प्रसंग :–

प्रस्तुत पद्यांश में लक्ष्मण जी ने धरती को धारण करने वाले कच्छप ,शेषनाग और वाराह को आगाह किया है, कि श्री राम धनुष को तोड़ने वाले हैं, इसलिए आप सभी पृथ्वी को भली–भांति संभाल कर रखना। इस तरह रोमांच दृश्य का वर्णन यहां किया गया है।

व्याख्या:–

लक्ष्मण जी कहते हैं कि हे दिग्गजों! हे कच्छप! , हे शेषनाग! , हे वाराह! आप सभी धैर्य धारण करें तथा पृथ्वी को संभाल कर रखें, क्योंकि श्री राम इस शिव धनुष को तोड़ने जा रहे हैं, इसलिए आप सब मेरी इस आज्ञा को सुनकर सतर्क हो जाइए। जब श्री राम धनुष के पास गए तब वहां उपस्थित नर नारियों अपने पुण्यों को मनाने लगे, क्योंकि सभी को श्री राम के धनुष तोड़ने पर शंका तथा अज्ञान है कि श्री राम धनुष को तोड़ पाएंगे या नहीं। सभा में उपस्थित नीच अहनकारी राजाओं को भी यही लग रहा है की राम जी धनुष नहीं तोड़ पाएंगे, क्योंकि जब हम से यह धनुष नहीं टूटा तो राम से कैसे टूटेगा?

काव्यगत सौंदर्य


भाषा –अवधी।     शैली –प्रबंध
गुण –ओज और प्रसाद ।    रस– वीर और शांति
छंद –दोहा –चौपाई।    शब्द शक्ति –अभिधा और लक्षणा

अलंकार –अनुप्रास अलंकार 



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