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चींटी को देखा? वह सरल, विरल, काली रेखा तम के तागे-सी जो हिल-डुल

 चींटी को देखा? 

वह सरल, विरल, काली रेखा 

तम के तागे-सी जो हिल-डुल 

चलती लघुपद पल-पल मिल-जुल 

वह है पिपीलिका पांति! 

देखो ना, किस भांति 

काम करती वह सतत! 

कन-कन कनके चुनती अविरत


 संदर्भ:-

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के चींटी शीर्षक से उद्धृत है यह कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित युगवाणी काव्य-संग्रह से ली गई है।


 प्रसंग :-

प्रस्तुत पंक्तियों में चींटी जैसी तुच्छ प्राणी की निरंतर गतिशीलता का, निर्भय होकर विचरण करना, कभी हार ना मानने जैसी प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है।


 व्याख्या :-

कवि कहता है कि क्या तुमने कभी चींटी को देखा है? वह अत्यंत सरल और सीधी है। वह पतली और काली रेखा की भांति, काले धागे की भांति हिलती-डुलती हुई, अपने छोटे-छोटे पैरों से प्रत्येक क्षण चलती है। वे सब एक पंक्ति में आगे पीछे अर्थात मिलकर होती हुई चलती हैं तथा देखने में काले धागे की रेखा-सी दिखती है। देखो! वह चींटियां किस तरह पंक्ति बद्ध होकर निरंतर अपने काम में लगी हुई है। वह बिना रुके एक-एक कण इकट्ठा कर अपने घर ले जाती हैं अर्थात वे कभी हार नहीं मानती तथा लगातार श्रम से अपने परिवार के लिए भोजन को एकत्र करने के काम में तल्लीन रहती हैं। चींटी श्रम की साकार व सजीव मूर्ति है, यद्यपि वह अत्यंत लघु प्राणी है।


 काव्यगत सौंदर्य

 भाषा - साहित्य खड़ी बोली।           शैली - वर्णनात्मक 

गुण - ओज।                                रस- वीर

 अलंकार - अनुप्रास अलंकार, उपमा अलंकार ,पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।



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