गाय चराती, धूप खिलाती, बच्चों को निगरानी करती,
लड़ती अरि से तनिक न डरती, दल के दल सेना संवारती,
घर आंगन, जनपथ बुहारती।
संदर्भ:-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के चींटी शीर्षक से उद्धृत है यह कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित युगवाणी काव्य संग्रह से ली गई है।
प्रसंग:-
इन पंक्तियों में चींटियों की कर्मठता के स्वरूप का चित्रण किया गया है।
व्याख्या:-
कवि पंत जी कहते हैं कि चींटियों के पास भी अपनी गायें होती है। वह अपनी गायों को चराती हैं और उन्हें यथासमय धूप दिलाती हैं। ये अपने बच्चों की देखभाल करती हैं तथा शत्रुओं से लड़कर अपनी सुरक्षा करती हैं, चींटियां भी अपना सामूहिक दल बनाती हैं और बहुत सुंदर सेना का निर्माण करती है। यह चिंटियां बहुत सारी गंदी वस्तुओं को उठाकर ले जाती हैं और घर-आंगन व रास्ते को झाड़- पोंछकर साफ कर जाती हैं ।
काव्यगत सौंदर्य
भाषा - साहित्य खड़ी बोली ।
शैली - वर्णनात्मक ।
गुण - ओज।
रस - वीर।
अलंकार - अनुप्रास अलंकार।
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