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सुनि सुन्दर बैन सुधारस- साने, सयानी हैं जानकी जानी भली। तिरछे करि नैन दै सैन तिन्है समुझाइ कछु मुसकाइ चली।।

 सुनि सुन्दर बैन सुधारस- साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।

तिरछे करि नैन दै सैन तिन्है समुझाइ कछु मुसकाइ चली।।

तुलसी तेहि औसर सोहैं सबै आलोकित लोचन-लाहु अली। 

अनुराग तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली।।



संदर्भ:–

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के वन पथ पर शीर्षक से उद्धृत हैं। यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित कवितावली के अयोध्या कांड से लिया गया है।


प्रसंग :-

प्रस्तुत पद्यांश में ग्रामीण स्त्रियों ने सीता जी से श्रीराम के विषय में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया। इस पर सीता जी ने संकेतों के माध्यम से श्री राम के विषय में सब बता दिया। 

 व्याख्या:-

 कवि तुलसीदास जी कहते हैं कि जब ग्रामीणों ने सीता जी से श्रीराम के विषय में पूछा कि सांवले और सुंदर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं? उनकी या अमृतरूपी मधुर वाणी सुनकर सीताजी समझ गई कि ये स्त्रियां बहुत चतुर हैं, वे उनके मनोभावों को समझ गई कि ये प्रभु (श्रीराम) के साथ मेरा संबंध जानना चाहती हैं, तब सीताजी ने उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कुराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दे दिया।


उन्होंने अपनी मर्यादा का पूर्ण रुप से पालन किया। उन्होंने संकेत द्वारा ही समझा दिया कि यह मेरे पति हैं और अपने नेत्रों को तिरछा करके मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गई अर्थात कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।


तुलसीदास जी कहते हैं कि उस समय वह स्त्रियां श्रीराम की सुंदरता को एकटक देखती हुई, अपने नेत्रों को आनंद प्रदान करने लगीं अर्थात उनके सौंदर्य को देखकर अपने जीवन को धन्य मानने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो प्रेम के सरोवर में राम रूपी सूर्य उदित हो गया और उन ग्रामीण स्त्रियों के नेत्ररूपी कमल की सुंदर कलीयां खिल गई हैं अर्थात् उनके नेत्रों में अपने जीवन को सफल बना लिया।


काव्यगत सौंदर्य

 भाषा - ब्रज। शैली - चित्रात्मक व मुक्तक

गुण - माधुर्य। रस - श्रृंगार 

छन्द - सवैया। शब्द शक्ति - व्यंजना 

अलंकार - अनुप्रास अलंकार।


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