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चन्द्रलोक में प्रथम बार, मानव ने किया पर्दापण, छिन्न हुए लो, देश काल के, दुर्जय बाधा बंधन! दग्-विजयी मनु-सुत, निश्चय, यह महत् ऐतिहासिक क्षण, भू-विरोध हो शांत। निकट आएं सब देशों के जन।

 चन्द्रलोक में प्रथम बार, 

मानव ने किया पर्दापण, 

छिन्न हुए लो, देश काल के, 

दुर्जय बाधा बंधन! 

दग्-विजयी मनु-सुत, निश्चय, 

यह महत् ऐतिहासिक क्षण,

भू-विरोध हो शांत।

निकट आएं सब देशों के जन।


 संदर्भ:-

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के चन्द्रलोक में प्रथम बार शीर्षक से उद्धृत है यह कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ऋता काव्य संग्रह से ली गई है।


प्रसंग:-

 प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मानव के चंद्रमा पर पहुंचने की ऐतिहासिक घटना के महत्व को व्यक्त किया है। यहां कभी ने उन संभावनाओं का वर्णन किया है जो मानव के चंद्रमा पर पैर रखने से साकार होती प्रतीत होती हैं।


 व्याख्या :-

कवि कहता है कि जब चंद्रमा पर प्रथम बार मानव ने अपने कदम रखे तो ऐसा करके उसने देशकाल के उन सारे बंधनों, जिन पर विजय पाना कठिन माना जाता था, उन्हें छिन्न-भिन्न कर दिया। मनुष्य को या विश्वास हो गया कि इस ब्रह्मांड में कोई भी देश और ग्रह – नक्षत्र अब दूर नहीं है। आज निश्चय ही मानव ने दिग्विजय प्राप्त कर ली है अर्थात उसने समस्त दिशाओं को जीत लिया है या एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण है कि अब सभी देशों के निवासी मानवों पर परस्पर विरोध समाप्त कर एक दूसरे के निकट आना चाहिए और प्रेम से रहना चाहिए। संपूर्ण विश्व ही एक देश में परिवर्तित हो गया है। सभी देशों के मनुष्य एक दूसरे के निकट आएं, यहां यही कवि की मंगलकामना है।


 काव्यगत सौंदर्य:-

 भाषा - साहित्य खड़ी बोली ।

शैली - प्रतीकात्मक ।

गुण - औज।

रस - वीर।

छन्द - तुकांत-मुक्त ।

अलंकार - अनुप्रास अलंकार।



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