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युग–युग का पौराणिक स्वप्न हुआ मानव का संभव, समारंभ शुभ नए चंद्र–युग का भू को देव गौरव! फाहराए ग्रह उपग्रह में धरती का श्यामल अंचल, सुख संपद् संपन्न जगत् में बरसे जीवन–मंगल। अमरीका सोवियत बनें नव दिक् रचना की वाहन जीवन पद्धतियों के भेद समन्वित हों, विस्तृत मन!

युग–युग का पौराणिक स्वप्न हुआ मानव का संभव, 

समारंभ शुभ नए चंद्र–युग का भू को देव गौरव!

फाहराए ग्रह उपग्रह में धरती का श्यामल अंचल, 

सुख संपद् संपन्न जगत् में बरसे जीवन–मंगल।

अमरीका सोवियत बनें 

नव दिक् रचना की वाहन 

जीवन पद्धतियों के भेद 

समन्वित हों, विस्तृत मन! 


संदर्भ:-

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के चन्द्रलोक में प्रथम बार शीर्षक से उद्धृत है यह कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ऋता काव्य संग्रह से ली गई है।


प्रसंग:-


 प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य के चंद्रमा पर पहुंचने से मानव कल्याण की मनोकामना का चित्रण किया है।


 व्याख्या:-

 संपूर्ण संसार पुराने समय से चंद्रमा पर पहुंचने का स्वप्न देख रहा था, जो आज मनुष्य की मेहनत से संभव हुआ है। कवि का कथन है कि जब मैं चाहता हूं कि ब्रह्मांड के ग्रहों - उपग्रहों में इस पृथ्वी का आंचल फहराने लगे। तात्पर्य है कि मनुष्य अन्य ग्रहों पर भी पहुंच कर वहां पृथ्वी जैसी हरियाली और जीवन का संचार कर दे। सुख और वैभव से युक्त इस संसार में मानव जीवन के कल्याण की वर्षा हो। संपूर्ण संसार में कहीं भी दुख व्याप्त ना रहे।

 अत: चारों ओर जीवन में मंगल ही मंगल हो, कवि की यही मनोकामना है। चंद्रलोक पर प्रथम बार मनुष्य के पहुंचने के पश्चात कवि की प्रार्थना है कि अमेरिका और रूस में आपसी सुख समृद्धि की प्रचुरता में वृद्धि हो और विशाल शक्ति-संपन्न देश के समस्त जीवन मार्गों में स्थापित हो और सभी का मन रूपी हृदय बड़ा व उदार बने।


 काव्यगत सौंदर्य 

भाषा - साहित्य खड़ी बोली

शैली - प्रतीकात्मक।

गुण - ओज।

रस - वीर।

अलंकार - अनुप्रास अलंकार।


 

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