Header Ads Widget

अणु–युग बने धरा जीवन हित स्वर्ण–सृजन का साधन, मानवता ही विश्व सत्य भू–राष्ट्र करें आत्मार्पण! धरा चंद्र की प्रीति परस्पर जगत प्रसिद्ध, पुरातन, हृदय–सिंधु में उठता स्वार्गिक ज्वार देख चन्द्रानन!

 अणु-युग बने धरा जीवन हित 

स्वर्ण–सृजन का साधन,

मानवता ही विश्व सत्य 

भू–राष्ट्र करें आत्मार्पण! 

धरा चंद्र की प्रीति परस्पर

जगत प्रसिद्ध, पुरातन, 

हृदय–सिंधु में उठता 

स्वार्गिक ज्वार देख चन्द्रानन! 



संदर्भ:-

 प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के चन्द्रलोक में प्रथम बार शीर्षक से उद्धृत है यह कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ऋता काव्य संग्रह से ली गई है।


प्रसंग:-

 प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अणु–युग के प्रति लोक कल्याण की भावना को प्रकट किया है। कवि चाहता है कि विज्ञान का विकास मानव के कल्याण के लिए हो।


 व्याख्या:-

 कवि कामना करता है कि अणु–युग का विकास मानव जाति के कल्याण के लिए हो अर्थात विज्ञान का प्रयोग मानव के विकास के लिए हो, जिससे यह पृथ्वी स्वर्ग के समान सुखी और संपन्न हो जाए। आपसी बैर–विरोध समाप्त हो जाएं तथा भाईचारे की भावना उत्पन्न हो जाए और सब मिल–जुल कर रहें। इस संसार में केवल मानवता ही सत्य है। अतः सभी राष्ट्रों को अपनी स्वार्थ भावना का त्याग कर देना चाहिए। कवि कहता है कि पृथ्वी और चंद्रमा का प्रेम संसार में प्रसिद्ध है और यह अत्यंत प्राचीन प्रेम संबंध है। माना जाता है कि चंद्रमा पृथ्वी का ही एक भाग था जो बाद में उससे अलग हो गया। आज भी पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को देखकर समुंदर के हृदय में ज्वार आता है, मानो यह पृथ्वी और चंद्रमा की प्रेम का परिचायक हो।


 काव्यगत सौंदर्य 


भाषा – साहित्य खड़ी बोली।

शैली - प्रतीकात्मक एवं भावात्मक। 

गुण - प्रसाद ।

रस - शांत।

छंद - तुकांत - मुक्त।

अलंकार - अनुप्रास अलंकार।



Post a Comment

0 Comments