मैया हो न चरैहौ गाइ।
सिगरे ग्वाल घिरावत मोसो, मेरे पाइं पिराइ।
जो न पत्याहि पूछी बलदाउहीं ,अपनी सौह दिवाइ।
यह सुनि माइ जसोदा ग्वालिन, गारी देति रिसाइ।
मैं पठवति अपने लरिका कों, आवे मन बाहराइ।।
सूर स्याम मेरो अति बालक, मारत ताहि रिंगाई।।
संदर्भ :–
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के पद शीर्षक से उद्धृत है यह सूरदास द्वारा रचित सूरसागर महाकाव्य से ली गई है।
प्रसंग:–
प्रस्तुत पद्यांश में माता यशोदा ने श्री कृष्ण द्वारा हट किए जाने पर मुझे वन भेज दिया, किंतु वन मे ग्वाल– शाखाओं ने उन्हें परेशान किया तथा प्रस्तुत पद में श्रीकृष्ण घर लौटकर माता यशोदा से उनकी शिकायत करते हैं ।व्याख्या:–
श्री कृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि हे माता! अब में गाय चराने नहीं जाऊंगा सभी ग्वाले मुझसे ही अपनी गायों को घेरने के लिए कहते हैं, इधर से उधर तो दोड़ते दोड़ते मेरे पैरों में दर्द होने लगता है। हे माता! यदि आपको मेरी बात पर विश्वास ना हो तो अपनी सौगंध दिला कर बलराम भैया से पूछ लो।यह सुनकर माता यशोदा क्रोधित होकर ग्वालो को गाली देने लगती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा कहती है कि मैं अपने पुत्र को वन में इसलिए भेजती हूं कि उसका मन बहला जाए । मेरा कृष्ण अभी बहुत छोटा है, ये ग्वाले उसे इधर-उधर दौड़ाकर मार डालेंगे।
काव्यगत सौंदर्य
भाषा ब्रज
शैली मुक्तक
गुण माधुर्य
रस वात्सल्य
छंद गेय पद
शब्द शक्ति अभिधा
अलंकार अनुप्रास अलंकार
Thanks for watching........
Share and comment kare.....
0 Comments