बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु।
भलौ–भलौ कहि छोड़िये, खोटैं ग्रह जपु दानु।।
संदर्भ:-
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के नीति शीर्षक से उद्धृत है यह कभी बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सतसई से लिया गया है।
प्रसंग:-
प्रस्तुत दोहे में इस शब्द को उद्घाटित किया गया है कि संसार में दुष्ट व्यक्ति की बहुत आव–भगत(आदर) होती है, जिससे उसके अनिष्ट कार्यों से बचा जा सके।
व्याख्या:-
कवि बिहारी कहते हैं कि जिस मनुष्य के शरीर में बुराई का वास होता है, उसी का सम्मान किया जाता है। संसार की यही नीति है कि जो व्यक्ति दुष्ट एवं बुरा है, जगत में उसी का सम्मान किया जाता है, जब तक अच्छा समय होता है तो भला–भला कहकर छोड़ दिया जाता है और जब बुरा समय आता है तो मनुष्य उसके लिए दान जाप करने लगता है अर्थात अच्छे समय में मनुष्य ईश्वर को भूल जाता है और बुरा समय आने पर ईश्वर की स्तुति करने लगता है।
काव्यगत सौंदर्य
भाषा - ब्रज। शैली - मुक्तक
गुण - प्रसाद । रस - शांत
छन्द - दोहा।
अलंकार - अनुप्रास अलंकार,श्लेष अलंकार, विरोधाभास अलंकार , पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।
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