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नर की अरु नल–नीर की, गति एकै करि जोई। जेतौ नीचो ह्वै चलै, तेतौ ऊंचौ होई।।

नर की अरु नल–नीर की, गति एकै करि जोई।

जेतौ नीचो ह्वै चलै, तेतौ ऊंचौ होई।।


संदर्भ:-

 प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड के नीति शीर्षक से उद्धृत है यह कभी बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सतसई से लिया गया है।


प्रसंग:-

 उपरोक्त दोहे में मनुष्य की विनम्रता की महत्ता का वर्णन किया गया है।


 व्याख्या:-

 कवि बिहारी कहते हैं कि मनुष्य की स्थिति बिल्कुल नल के पानी के समान है। जिस प्रकार नल का जल जितना नीचे की ओर चलता है, उसमें उतना ही ऊंचा पानी चढ़ता है अर्थात पानी के स्तर में उतनी ही बढ़ोतरी होती है। उसी प्रकार व्यक्ति जितना नम्रतापूर्वक आचरण करता है, उतनी उसकी श्रेष्ठता बढ़ती है अर्थात उसका सामान संसार में दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।


 काव्यगत सौंदर्य

 भाषा - ब्रज। शैली - मुक्तक 

गुण - प्रसाद । रस - शांत 

छंद - दोहा ।

अलंकार - अनुप्रास अलंकार, उपमा अलंकार ।



 

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