काम कुसुम धनु सायक लिन्हे है।
सकल भुवन अपने बस किन्हें।।
देबि ताजिअ संसउ अस जानी।
भंजब धनुषु राम सुनु रानी।।
सखी बचन सुनि भे परतीती।
मिटा विषादु बढ़ी अति प्रीती।।
तब रामहि बिलोंकि बैदेही।
सभय हृदय बिनावति जेहि तेही।।
संदर्भ:–
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक के खंडकाव्य के धनुष भंग शीर्षक से उद्धृत है यह कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड से लिया गया है।
प्रसंग:–
प्रस्तुत दोहा –चौपाई में सीता जी की माता की सखी अनेक तथ्यों द्वारा उनका संशय दूर करती हैं ,तभी सीता जी, श्री राम से विवाह करने के लिए सभी देवताओं से विनती करती हैं। इसी मोहकता का यहां वर्णन किया गया है।
व्याख्या:–
सीताजी की माता को उनकी सखी श्रीराम की वीरता का वर्णन करते हुए कहती है कि कामदेव ने फूलों का ही धनुष बाण लेकर सारे संसार को अपने बस में कर रखा है अतः हे देवी! आप अपने मन की शंका का परित्याग कर दीजिए। श्री राम इस शिव धनुष को अवश्य ही तोड़ देंगे। आप मेरी बात का विश्वास कीजिए। अपनी सखी सके ऐसे वचन सुनकर रानी को श्रीराम की क्षमता पर विश्वास हो गया और उनका दुख समाप्त हो गया तथा उनका विषाद श्रीराम के प्रति स्नेह के रूप में परिवर्तित हो गया। तभी श्री राम को देखकर सीता जी विचलित हो वह सभी देवताओं से विनती करने लगी अर्थात सीता जी का हृदय भय से व्याकुल हो उठा।
काव्यगत सौंदर्य
भाषा –अवधि । शैली –प्रबंध और वर्णनात्मक
गुण –माधुर्य । रस –श्रृंगार
छंद –चौपाई । शब्द शक्ति –अभिधा और लक्ष्णा
अलंकार –अनुप्रास अलंकार।
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