प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय (Pt. Pratap Narayan Mishra Biography in Hindi)
पं. प्रताप नारायण मिश्र हिंदी के प्रख्यात निबंधकार, कवि, नाटककार और संपादक थे। इनका जन्म सन् 1856 ई. में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बेजे गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. संकटाप्रसाद ख्यात ज्योतिषी थे।
पिता ने उन्हें ज्योतिष विद्या सिखाने की कोशिश की, लेकिन मिश्र जी का मन उसमें नहीं रमा। उन्होंने स्कूली शिक्षा तो प्रारंभ की, लेकिन पढ़ाई में विशेष रुचि नहीं थी। फिर भी स्वाध्याय और सुसंगति से इन्होंने हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी और बंगला भाषा में निपुणता प्राप्त कर ली।
एक बार जब ईश्वरचंद्र विद्यासागर उनसे मिलने आए, तो उन्होंने उनसे बंगला भाषा में ही संवाद किया। जीवन के अंतिम वर्षों तक वे साहित्य-सृजन में लगे रहे और मात्र 38 वर्ष की आयु में सन् 1894कानपुर में उनका निधन हो गया।
📚 प्रताप नारायण मिश्र की प्रमुख रचनाएं:
✍️ मौलिक रचनाएं:
📝 निबंध:
- प्रताप पीयूष
- निबंध नवनीत
- प्रताप समीक्षा
🎭 नाटक:
- कलि प्रभाव
- हठी हम्मीर
- गौ-संकट
😄 प्रहसन और रूपक:
- कलि-कोतुक
- भारत-दुर्दशा
- ज्वारी-खुआरी
- समझदार की मौत
📖 काव्य:
- मन की लहर
- श्रृंगार-विलास
- लोकोक्ति-शतक
- प्रेम-पुष्पावली
- दंगल खंड
📚 अन्य:
- त्रिप्यन्ताम
- ब्राडला-स्वागत
- मानस विनोद
- शैव-सर्वस्व
- प्रताप-लहरी
- रसखान-शतक
📰 संपादन:
- ब्राह्मण
- हिन्दुस्तान
🌐 अनूदित रचनाएं:
- पंचामृत
- चरिताष्टक
- वचनावली
- राजसिंह
- राधारानी
- कथामाला
- संगीत शाकुन्तल
उन्होंने अनेक बांग्ला उपन्यासों का अनुवाद किया जिनमें इंदिरा, देवी चौधरानी, अमरसिंह, कथा बाल-संगीत आदि प्रमुख हैं।
🖋️ साहित्यिक परिचय व विशेषताएं:
मिश्र जी ने ख्याल, लावनी से साहित्यिक जीवन की शुरुआत की। बाद में गद्य लेखन में उत्कृष्ट योगदान दिया। वे भारतेन्दु हरिश्चंद्र से प्रभावित थे और उन्हें गुरु मानते थे। उनकी शैली में व्यावहारिकता, हास्य, व्यंग्य और सामाजिक दृष्टि समाहित थी।
उन्होंने 'ब्राह्मण' और 'हिन्दुस्तान' पत्रों का सफल संपादन किया। साथ ही, नाटक सभा की स्थापना कर हिंदी रंगमंच को नई दिशा देने का प्रयास किया। वे स्वयं भी एक अच्छे अभिनेता थे।
उनकी एक बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने दांत, बात, वृद्ध, धोखा, मूंछ जैसे साधारण विषयों पर भी अत्यंत रोचक और चमत्कारपूर्ण निबंध लिखे।
🔚 निष्कर्ष:
पं. प्रताप नारायण मिश्र हिंदी साहित्य के मौलिक निबंधकार, कवि और अनुवादक थे। उन्होंने अल्पायु में ही हिंदी साहित्य को अनमोल कृतियाँ दीं, जिनका प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है।
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