कक्षा 12 भौतिक विज्ञान पाठ 7 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव part(3):–
जब अवेशित कण चुंबकिए क्षेत्र के लंबवत हो तब चुंबकीय बल:—
माना एक धन आवेशित कण +q एक समान चुंबकीय क्षेत्रB में v वेग से लंबवत प्रवेश करता है तो कण पर लगने वाला चुंबकीय बल :–
F= qvBsinQ
यदि थीटा=90°
तब,F=qvB
जब कोई कण किसी वृत्त के परितः एक समान चाल से गति करता है तो कण पर लगने वाला चुंबकीय बल कण को वृत्ताकार मार्ग में घूमने के लिए आवश्यक अभिकेंद्र बल प्रदान करता है यदि कण का द्रव्यमान m तथा पथ की त्रिज्या r है तो अभिकेंद्र बल :–
F= mv²/r=qvB
वृत्ताकार पथ की त्रिज्या r=mv/qB
जहां m द्रव्यमान है तथा v वेग,q आवेश,B चुम्बकीय क्षेत्र हैं।
यदि कण गतिज ऊर्जा k हो तो:–
K=1mv²/2
या 2k/m=v²
या वेग v=√2k/√m
V का मान रखने पर
त्रिज्या r=m/qB× √2k/√m
या r=√m×√m/qB×√2k/√m
या √2km/qB
यह वृत्ताकार पथ की त्रिज्या तथा गतिज ऊर्जा में संबंध है।:–
K= qv = wr = √2vqm/√q*√q*B
r = 1/B √2vm/q
विभवांतर और वृत्ताकार पथ की त्रिज्या में संबंध है।
कण अपने एक चक्कर में 2πr दूरी तय करता है अतः कण का आवर्तकाल:–
आवर्तकाल T = एक चक्कर में कई दूरी (परिधि)/ चाल
= 2πr/v
= 2π/v * mv/qB
T = 2πm/qB
आवृत्ति (f) = 1/T = qB/2*m
आवृत्ति आवर्तकाल का उल्टा होता है।
गतिमान आवेश पर बल से धारावाही चालक पर बल की व्याख्या:-
जब कोई धारावाही चालक चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उस पर एक बल कार्य करता है, वास्तव में चालक पर धारा मुक्त इलेक्ट्रॉनों की गति के रूप में होती है ।माना धारावाही चालक की लम्बाई तथा क्षेत्रफल A हैं, तथा चालक के प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनो की सख्यां n है।
माना इलेक्ट्रॉन का अनुगमन वेग vd है, तो 1sec में चालक के क्षेत्रफल से गुजरने वाला इलेक्ट्रॉनों की संख्या neAvd होगी। यदि इलेक्ट्रॉन पर आवेश e हो, तो में प्रवाहित आवेश की मात्रा
i = neAvd
यदि यह चालक चुंबकीय क्षेत्र B में क्षेत्र की दिशा में ø कोण बनाते हुए रखा हो तो प्रत्येक इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल
F'= evdBsinØ. (F = qvBsinø)
पूरे चालक का आयतन = A( क्षेत्रफल )× L( लम्बाई )
अतः पूरे चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनो की संख्या nAL होगी।
अतः पूरे चालक पर लगने वाला बल
F = 1 इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल ×आयतन
F = evdsinø×nAL
F = neAvd(BLsinø) [ i = neAvd ]
पूरे चालक पर लगने वाला बल :-
F = iblsinQचुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक तथा विमाः-
B = F/ iLsinø = N / Amp - m = web/m² = tesla = Gaussविमा [ MLT-²] ÷ [ A ]×[ L ] = [MT-²A-¹]
विशेष स्थितियाँ
अ. लम्बवत हो ,तोØ = 90
Fmax = iBL
ब. समान्तर व रेखीय हो, तो
Ø = 0 = 180
Fmini = 0
- 1e.v. = 1.6×10-¹9 joule
- 1 me. = 1.6×10-¹³ joule
- Ro = 1.2×10-¹5 m
- 1Atomosphere = 76 CM = 760 mm
- 1 moll = 22.4 litre
विद्युत चुंबकीय तरंगों के संचरण की तीन विधियां:-
अ. भू तरंगों द्वारा संचरण
ब. आकाश तरंगों द्वारा संचरण
स. अंतरिक्ष तरंगों द्वारा संचरण
माइक्रोवेव व तरंग परिसर इसको उत्पन्न करने का स्रोत लिखिए:-
माइक्रोवेव का तरंग परिसर 38 सेंटीमीटर से 1 मिली मीटर होती है, इसको मैगनेटाँन नामक निर्वातित नलिका में धारा प्रवाहित करने के लिए करते हैं।विद्युत चुंबकीय तरंगों का स्रोत क्या है :-
आवेशविद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का कौन सा भाग रडार संचालन में प्रयुक्त होता है इसकी तरंगदैर्ध्य कोटि बताइएः-
सुक्ष्म तरंगे या रेडियो की तरंगे रेडार में प्रयुक्त की जाती हैं। तरंग दैर्ध्य परिसर 10-³ से 3×10-¹ होता है।साइक्लोट्रान:–
साइक्लोट्रान आवेशित कणों अथवा आयनो को उच्च ऊर्जाओ तक त्वरित करने की युक्ति है इसका आविष्कार 1934 मे लारेंज तथा लिविग्सटन ने किया था। आवेशित कणों की ऊर्जा में वृद्धि करने के लिए वैद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग किया जाता है।
रचना:–
इसमें एक अर्धवृत्ताकार आकार के धातु के दो सपार पात्र D¹ व D² अत्यंत अंतराल पर होते हैं ,जिन्हें डीज कहते हैं । डीज के बीच एक उच्च प्रत्यावर्ती विभव 10^5 volt की कोटि तथा उच्च आवृत्ति 10–15मेगाहर्ट्ज की कोटि लगाया जाता है, तथा पूरे उपकरण को एक प्रबल विद्युत चुंबक के ध्रुव के बीच रखा रख दिया जाता है।अनुनादी प्रतिबंध:–
साइक्लोट्रॉन के कार्य करने का सिद्धांत यह है कि डीज के बीच लगने वाले प्रत्यावर्ती विभवांतर की आवृत्ति आवेशित कण की आवृत्ति के बराबर होनी चाहिए।कार्य विधि:–
डीज के बीच रखे स्रोत से उत्पन्न धनायन उस बीज की ओर आकर्षित होते हैं। जिस पर ऋण विभव है, लंबवत चुंबकीय क्षेत्र के कारण धनायन डीज के भीतर वृत्ताकार पथ पर चलने लगते हैंमाना ,आयन पर आवेश q तथा वेग से चुंबकीय क्षेत्र B में गतिमान है तो उस पर लगने वाला अभिकेंद्र बल चुंबकीय बल के बराबर होता है।
F = mv²/r =qvB
r = mv/qB
[वृत्त की अर्द्धचालक में तय दूरी=πr]
आवर्तकाल T = πr/v = π * mv/ v * qB
T = πm/qB
आवृत्ति f=n= 1/T = qB/πm
अधिकतम गतिज ऊर्जा k = 1/2× mv²
1/2 × m × r² q²B²/m²
[K= 1/2× r²q²B²/m] जुल
दो समांतर धारावाही तारो के बीच बल या एंपियर की परिभाषा:—
जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है यदि हम इस चालक के समीप एक दूसरा धारावाही चालक रखें तो यह पहले वाले चालक से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के कारण एक बल का अनुभव करता है।
माना दो लंबे समांतर वा सीधे तार PQ वा RS निर्वात अथवा वायु में पास — पास रखे हैं जब इन तारों में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वे एक दूसरे पर बल आरोपित करते हैं प्रयोगों द्वारा यह देखा गया कि जब चालक में धारा एक ही दिशा में होती है तो वे एक दूसरे को आकर्षित करते हैं परंतु विपरीत दिशा में होती है तो वे प्रतिकर्षित करते हैं।
माना, तार PQ व RS मैं प्रवाहित धारा क्रमश: i' व i" है तथा इनके बीच की दूरी r है तो PQ के कारण RS के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र:—
चुम्बकीय क्षेत्र B'= μ० i'/2πr (1)
RS की l लंबाई पर लगने वाला बल चालक चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रखा है:—
तो चुंबकीय बल:—
F=i"B'Lsin थीटा
समीकरण (1) का मान रखने पर:—
F = μ० i' × i"×Lsin थीटा/2πr {sin90=1}
तब,
F = μ० i' × i"×L/2πr , न्यूटन
यदि दोनो तार में एक ही धारा प्रवाहित की जाए तो चालक पर लगने वाला बल:—
i' = i"= iF= μ०i × L/2πr
(μ० का मान 4π ×10–⁷ होता हैं।)
तो,
F = 2× 10–⁷ i² L/r , न्यूटन
या
F/L= 2×10–⁷i²/r, न्यूटन
एम्पियर:—
एंपियर वह विद्युत धारा है जो निर्वात अथवा वायु में परस्पर 1 मीटर दूरी पर स्थित दो लंबे व समांतर तारों में प्रवाहित होने पर उसके प्रति मीटर लंबाई पर2 ×10–⁷ , न्यूटन का बल उत्पन्न करती है।
0 Comments