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कक्षा 12 में पूछे गए महत्वपूर्ण प्रश्न पाठ 4 भौतिक विज्ञान

कक्षा 12 में पूछे गए महत्वपूर्ण प्रश्न पाठ 4 भौतिक विज्ञान :–

चालक :–

          वे पदार्थ जिनमें वाह्य वैद्युत क्षेत्र लगाने पर बहुत अधिक आवेश वाहक गतिमान हो जाते हैं चालक कहलाते हैं, जैसे:—fe(आयरन), तांबा आदि।

धातुओं में चालन मुक्त इलेक्ट्रॉन के प्रवाह के द्वारा होता है।

विद्युतरोधी अथवा परावैद्युत:—

                                        वह पदार्थ जिनमे सामान्यता धारा का प्रवाह सुगमता से नहीं होता है अचालक अथवा विद्युत रोधी कहलाते हैं ,जैसे रबर, कांच, कागज आदि।

चालको में मुफ्त तथा बध्य अवेश:–

                                      प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना है परमाणु विद्युत रूप से उदासीन होता है प्रत्येक परमाणु में धनावेशित नाभिक होता है जिनके चारों और इलेक्ट्रॉन निश्चित ऊर्जाओं की कक्षाओं में परिक्रमा करते हैं नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होते हैं नाभिक से अधिक दूरी पर स्थित इलेक्ट्रान के मतमध्य दुर्बल आकर्षण बल कार्य करता है जिसके कारण संपूर्ण भारत में गत करने के लिए स्वतंत्र होते हैं इन्हीं इलेक्ट्रान को मुक्त इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

बध्य अवेश :–

              नाभिक के नजदीकी कक्षाओं में उपस्थित इलेक्ट्रान प्रबल आकर्षण बल द्वारा बंधे होते हैं तथा अपनी कक्षा छोड़कर नहीं जा सकते इसीलिए इन अवेशो को बद्ध आवेश कहते हैं।

चालक की धारित:–

                           किसी चालक की धारिता चालक को दिए गए आवेश तथा चालक के विभव में होने वाली वृद्धि के अनुपात को कहते हैं ।

यदि किसी चालक को q आवेश देने पर उसके विभव में v वृद्धि हो तो चालक की धारिता—

चालक की धारिता C=q/v , कुलाम/वोल्ट या फेरड 

जहां q आवेश तथा v विभव है।, तथा इसका मात्रक कुलाम/वोल्ट या फेरड हैं।

बिलगित गोलीय चालक की धारिता:–

     सूत्र:–

यदि परावैद्युतांक k हो तब:–

C=4πहेक्सलेन जीरो k R, कुलाम/वोल्ट

यदि निर्वात/वायु हो तब:–

C०=4πहेक्सलेन जीरो R, कुलाम/वोल्ट

नोट:–

C/c०=k

      या

     C=kc०

तथा हम कह सकते हैं कि परावैद्युतांक की धरिता (c) , निर्वात की धारिता (c) का k गुना होता है।


आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा:—

                            किसी चालक की स्थितिज ऊर्जा उस कुल कार्य से मापी जाती है जो उसे प्रारंभिक अना– आवेशित अवस्था से आवेशित करने में किया जाता है यह कुल कार्य ही स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। इसका मात्रक जूल (j) होता है।

सूत्र:—

    ऊर्जा U=q²/2C, जूल

        या

U=cv²/2 ,जूल

अवेशित चालकों को एक दूसरे से जोड़ने पर आवेशो का पुनः वितरण उभयनिष्ठ विभव:—


   उभयनिष्ठ विभव∆V=CV+c'v'/c+c' वोल्ट

संयोजन में उर्जा हानि:–

       सूत्र:–

  ∆U=CC' (V–V')²/2(C+C') ,जूल

समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता:–

सूत्र:–

   C=Aहेक्सलें जीरो/d , कुलाम/वोल्ट

जहां d दूरी तथा A क्षेत्रफल हैं।

संधारित्र का संयोजन:–

 श्रेणी क्रम संयोजन:–




      संधारित्र के श्रेणी क्रम संयोजन में पहले संधारित की पहली प्लेट को किसी स्रोत के साथ तथा दूसरी प्लेट को दूसरे प्लेट के संधारित से पहली प्लेट के साथ आदि इसी क्रम में जोड़े चले जाते हैं अंतिम प्लेट के दूसरे सिरे को पृथ्वी से संबंधित कर देते हैं। 

इस प्रकार के संयोजन में अवेश समान तथा विभव भिन्न होते हैं

सूत्र:–

तुल्य धारिता,1/C=1/c'+1/c''+1/c''' ,कुलाम/वोल्ट

समांतर क्रम संयोजन:—



        इस प्रकार के सयोग में सभी संधारित की पहली प्लेट को एक बिंदु से तथा दूसरी प्लेट को दूसरे बिंदु से जोड़ देते हैं  

इस प्रकार के सयोग में आवेश भिन्न तथा विभव समान होते हैं।

सूत्र:—

   तुल्य धारिता C=c'+c'''+c"' ,कुलाम/वोल्ट

संधारित्रो का उपयोग:—

1. आवेश का संचय करने में।

2. उर्जा का संचय करने में।

3. विधुत परिपथन में।

4. विद्युत उपकरण में आदि।

वान डे ग्राफ जनित्र:—

वान डे ग्राफ ने 1931मैं एक ऐसे स्थिर विद्युत जनित्र की रचना की जिसकी सहायता से अति उच्च विभव (10⁶) वोल्ट की कोटि उत्पन्न किया जा सकता है इसका उपयोग आवेशित कणों (इलेक्ट्रान तथा प्रोटॉन)को त्वरित करके उनके गतिज ऊर्जा में वृद्धि की जाती है 

सिद्धांत:—

इस मशीन के कार्य करने का सिद्धांत निम्नलिखित दो घटनाओं पर आधारित है

1. किसी आवेशित चालक से वायु में विद्युत विसर्जन उसकी नुकीले शिरो प्राथमिकता से होता है 

खोखले चालक का आवेश उनके बाहरी पृष्ठ पर विद्यमान होता है।




रचना:—

   इसमें धातु का एक बड़ा गोला S दो अचालक स्तंभों A व B पर साधा होता है इसमें एक रबर अथवा सिल्क की सिरेहीन वैल्ट होती है जो दो घिरनियो p व p' पर एक विद्युत मोटर के सहायता से चलाई जा सकती है।

कार्यविधि :—

जब कंधे c को अति उच्च विभव दिया जाता है तो तीछ बिंदुओं के क्रिया के फल स्वरुप या इसके स्थान में आयन उत्पन्न करता है ।

धनायनो व कंधे c के बीच प्रति आकर्षण के कारण ये धनायन वेल्ट पर चले जाते हैं ।

वन डे ग्राफ जनित्र धन आवेशित कणों को अतिउच्या वेग तक त्वरित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

      महत्वपूर्ण बिन्दु :–

हेक्सलेन जीरो का मात्रक कुलाम ²/न्यूटन –मीटर ²हैं।

तथा इसका मान 8.85×10–¹²कुलाम ²/न्यूटन –मीटर ²हैं।

एक मात्रक को दुसरे मात्रक मे बदलना:—

1मिली फेरेड=10–³फेरड

1माइक्रो फेरड=10–⁶फेरड

1पीको फेरड=10–¹² फेरड

1नैनो फेरड=10–⁹फेरड









                           




                    


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