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अध्याय 1 भोजस्यौदार्यम् श्लोकों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद एवं प्रश्न – उत्तर

अध्याय 1 भोजस्यौदार्यम् :–



श्लोकों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
अये लाजानुच्चैः पथि वचनमाकण्यं गृहिणीं।
शिशोः कर्णी यत्नात् सुपिहितवती दीनवदना।।
मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले।
तदन्तः शल्यं मे त्वमसि पुनरुद्धमुचितः ।। (2017, 16, 13, 10)


सन्दर्भ :–

प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘भोजस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।


हिन्दी में अनुवाद:–

 मार्ग पर ऊँचे स्वर में ‘अरे, खील लो’ सुनकर दीन मुख वाली (मेरी पत्नी ने बच्चों के कान सावधानीपूर्वक बन्द कर दिए और मुझ दरिद्र पर जो अश्रुपूर्ण दृष्टि डाली, वह मेरे हृदय में काँटे सदृश गड़ गई, जिसे निकालने में आप ही समर्थ हैं।


श्लोक 2

अर्द्ध दानववैरिणा गिरिजयाप्यर्द्ध शिवस्याहृतम्।
देवेत्थं जगतीतले पुरहराभावे समुन्मीलति।।
गङ्गा सागरमम्बरं शशिकला नागाधिपः मातलम्।।
सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् त्वां मां तु भिक्षाटनम्।। (2013)


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।

हिन्दी में अनुवाद:– 

शिव का अद्भुभाग दान-वैरी अर्थात् विष्णु ने तथा अर्द्ध भाग पार्वती ने हर लिया। इस प्रकार भू-तल पर शिव की कमी होने से गंगा सागर में, चन्द्रकला आकाश में तथा नागराज (शेषनाग) भू-तल में समा गए। सर्वज्ञता और अधीश्वरता आपमें तथा भिक्षाटन मुझमें आ गया।



श्लोक 3

विरलविरलाः स्थूलास्ताराः कलाविव सज्जुनाः।
मुन इव मुनेः सर्वत्रैव प्रसन्नमभून्नभः।।

अपसरति च ध्यान्तं चित्तात्सतामिव दुर्जनः।।

ब्रजति च निशा क्षित्रं लक्ष्मीरनुघमिनामिव।। (2018)


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।।


हिन्दी में अनुवाद:– 

आकाश में बड़े तारे उसी प्रकार गिने-चुने (बहुत कम) दिखाई दे रहे हैं, जैसे कलियुग में सज्जन। सारा आकाश मुनि के सदृश प्रसन्न (निर्मल) हो गया है। आकाश से अँधेरा वैसे ही मिटता जा रहा है, जैसे सज्जनों के चित्त से दुर्जन और उद्यमहीनों की लक्ष्मी तीव्रता से भागी जा रही हो।


श्लोक 4

अभूत् प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राप्य कनकं।
गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्यसदसि।।
क्षणं क्षीणस्तारा नृपतय इवानुद्यमपराः ।।
न दीपा राजन्ते द्रविणरहितानामिव गुणाः ।। (2017, 14, 13, 11)


सन्दर्भ:–

 पूर्ववत्।


हिन्दी में अनुवाद:–

 पूर्व दिशा सुवर्ण (सूर्य की पहली किरण) को पाकर पारे-सी पीली (सुनहरी) हो गई है। चन्द्रमा वैसे ही कान्तिहीन हो गया है, जैसे अज्ञानियों (गॅवारों) की सभा में विद्वज्जन। तारे उद्यमहीन राजाओं की भाँति क्षणभर में क्षीण हो गए हैं। निर्धनों (धनहीनों) के गुणों के सदृश दीपक भी नहीं चमक रहे हैं। कहने का अर्थ है, जिस प्रकार दरिद्रता व्यक्ति के गुणों को ढक लेती है, उसी प्रकार संवेरा होने पर दीपक व्यर्थ हो जाता है।


अध्याय 1 भोजस्यौदार्यम् प्रश्न – उत्तर:–



प्रश्न 1.

द्वारपालः भोजं किम् अकथयत्? (2017, 13, 11)

उत्तर:

द्वारपालः भोजम् अकथयत् यत् कौपीनावशेषः कोऽपि विद्वान् द्वारि वर्तते’ इति।


प्रश्न 2.

भोजं दृष्ट्वा कविः किम् अचिन्तयत?

उत्तर:

भोजं दृष्ट्वा कविः अचिन्तयत् ‘अद्य मम दरिद्रतायाः नाशः भविष्यति’ इति।


प्रश्न 3.

भोजः कविम् किम् अपृच्छतु? (2017, 16)

उत्तर:

भोजः कविम् अपृच्छत् ‘कवे! किं रोदिषि?’ इति।


प्रश्न 4.

राजा भोजः कालिदासं किं कर्तुं प्राह? (2018)

उत्तर:

राजा भोजः कालिदास प्रभातवर्णन कर्तुं प्राह।


प्रश्न 5.

भोजस्य सभायां कः कविः प्रभातम् अवर्णयत्? (2012)

उत्तर:

भोजस्य सभायां कवि: कालिदासः प्रभातम् अवर्णयत्।


प्रश्न 6.

कवि कथम् अरोदी? (2017)

उत्तर:

कवेः रोदनस्य कारणं तस्य दरिद्रता आसीत्।


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