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रक्षी कोलॉइड (Protective Colloids) एवं स्वर्ण संख्या की परिभाषा, उदाहरण और उपयोग

रक्षी कोलॉइड (Protective Colloids) एवं स्वर्ण संख्या

रक्षी कोलॉइड वे द्रवस्नेही कोलॉइड होते हैं जो द्रवविरोधी कोलॉइड को स्कन्दन (Coagulation) से बचाते हैं। द्रवस्नेही कोलॉइड अधिक स्थायी होते हैं क्योंकि इनमें विलायक की एक परत जुड़ी रहती है जिसे विलायकयोजित (Solvation) परत कहा जाता है।

रक्षी कोलॉइड की व्याख्या:

जब किसी द्रवविरोधी सॉल (जैसे- स्वर्ण सॉल) में थोड़ी-सी मात्रा में द्रवस्नेही सॉल (जैसे- जिलेटिन) मिला दी जाती है, तो यह सॉल के चारों ओर एक रक्षण परत बना देता है जो विद्युत अपघट्य (Electrolyte) की उपस्थिति में भी स्कन्दन से बचाता है।

इस प्रक्रिया को रक्षण (Protection) कहते हैं और जो द्रवस्नेही सॉल इस कार्य को करता है उसे रक्षी कोलॉइड (Protective Colloid) कहते हैं।

उदाहरण:

  • जिलेटिन
  • ऐरेबिक गोंद
  • हीमोग्लोबिन

विशेष उदाहरण:

स्वर्ण सॉल (Gold Sol) एक द्रवविरोधी सॉल है। जब इसमें जिलेटिन को मिलाया जाता है तो यह सोडियम क्लोराइड जैसे विद्युत अपघट्य के प्रभाव से स्कन्दन

स्वर्ण संख्या (Gold Number):

स्वर्णांक (Gold Number) रक्षी कोलॉइड की रक्षण क्षमता को मापने की इकाई है। इसे सबसे पहले जिगमाण्डी (Zsigmondy) ने परिभाषित किया।

परिभाषा:

“स्वर्ण संख्या उस मिलीग्राम में रक्षी कोलॉइड की वह न्यूनतम मात्रा है जो 10 मिली स्वर्ण सॉल में, NaCl के 1 मि.ली. 10% विलयन की उपस्थिति में, स्कन्दन को रोकने के लिए आवश्यक होती है।”

संबंध:

रक्षण क्षमता ∝ 1 / स्वर्ण संख्या

अर्थात् जितनी कम स्वर्ण संख्या होगी, रक्षी कोलॉइड की रक्षण क्षमता उतनी ही अधिक होगी।


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