केदारनाथ अग्रवाल (Kedarnath Agrawal) का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं
केदारनाथ अग्रवाल हिंदी साहित्य के उन महान कवियों में से एक हैं जिन्होंने भारत की मिट्टी, प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं को अपनी कविताओं में जीवंत किया। वे जनकवि
संक्षिप्त जीवन परिचय:
नाम | केदारनाथ अग्रवाल |
जन्म | 01 अप्रैल 1911 |
जन्मस्थान | बाँदा, उत्तर प्रदेश |
पिता | हनुमान प्रसाद गुप्ता |
माता | घसीटो देवी |
भाषा | ब्रजभाषा और खड़ी बोली |
पेशा | कवि, लेखक, वकील |
मृत्यु | 22 मई 2000 (आयु 89 वर्ष) |
सम्मान | साहित्य अकादमी पुरस्कार |
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
केदारनाथ जी की शिक्षा उनके गांव कमासिन से शुरू हुई। आगे की पढ़ाई रायबरेली, कटनी, जबलपुर और अंत में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की। वहीं से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और साहित्यिक जीवन की शुरुआत की।
उनका विवाह अल्पायु में इलाहाबाद की एक समृद्ध परिवार की कन्या से हुआ था। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने कविताएं लिखना प्रारंभ किया।
केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक योगदान
उनकी कविताओं में भारतीय लोकजीवन, प्रकृति, संघर्ष, प्रेम, और सामाजिक यथार्थ का गहरा चित्रण मिलता है। उन्होंने प्रयाग की धरती से प्रेरणा लेकर अपनी अधिकतर काव्य रचनाएँ रचीं।
उनकी कविताओं का अनुवाद जर्मन, रूसी और अंग्रेजी भाषाओं में भी हुआ।
केदारनाथ जी की प्रमुख रचनाएं:
- फूल नहीं रंग बोलते हैं
- युग की गंगा
- गुलमेंहदी
- जमुन जल तुम
- मार प्यार की थापें
- कहें केदार खरी-खरी
- हे मेरी तुम
- बोलेबोल अबोल
- नींद के बादल
- आग का आईना
- लोक और आलोक
- अपूर्वा
- आत्म गंध
प्रसिद्ध पुरस्कार एवं सम्मान
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
- तुलसी पुरस्कार
- मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
- हिंदी संस्थान पुरस्कार
मृत्यु और विरासत
22 मई 2000 को केदारनाथ जी का निधन हो गया। लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने अपने लेखन से यह सिद्ध किया कि कविता केवल सौंदर्य की नहीं, बल्कि संघर्ष और जीवन की अभिव्यक्ति का माध्यम भी हो सकती है।
“मैं जमीन हूं, मैं मिट्टी हूं, मैं उपजाऊ हूं,
क्योंकि मैं भारत की धरती हूं।” – केदारनाथ अग्रवाल
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