ब्राउनी गति को परिभाषित कीजिए
ब्राउनी गति (Brownian Motion):
वनस्पतिज्ञ रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) ने सन् 1827 में देखा कि जल में डाले गए परागकण विराम अवस्था में नहीं रहते, बल्कि अव्यवस्थित रूप से लगातार गति करते रहते हैं। बाद में इस परिघटना को कोलॉइडी कणों में भी देखा गया तथा इसे ब्राउनी गति नाम दिया गया।
बीनर (Weiner) के अनुसार, कोलॉइडी कणों का परिक्षेपण माध्यम में तीव्र व निरन्तर टेढ़ी-मेढ़ी (Zig-Zag) गति ब्राउनी गति कहलाती है।
ब्राउनी गति का कारण:
यह गति, कोलॉइडी कणों के साथ परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के टकराने के कारण उत्पन्न होती है। चूंकि यह टक्करे असमान होती हैं, इसलिए कणों की गति अनियमित और टेढ़ी-मेढ़ी होती है।
जैसे-जैसे कण का आकार बढ़ता है, यह प्रभाव कम होता जाता है, और अंत में जब कण निलंबन जैसे बड़े हो जाते हैं, तो ब्राउनी गति प्रदर्शित नहीं होती।
ब्राउनी गति को प्रभावित करने वाले कारक:
- कण का आकार: आकार बढ़ने पर ब्राउनी गति मंद हो जाती है।
- तापमान: तापमान बढ़ने से ब्राउनी गति तेज होती है।
- समय: ब्राउनी गति समय के साथ स्थिर रहती है और कोलॉइडी विलयन को लंबे समय तक स्थिर रखती है।
ब्राउनी गति के प्रभाव:
- यह गुरुत्वाकर्षण के कारण कोलॉइडी कणों को तल पर नहीं बैठने देती, जिससे विलयन स्थायी बना रहता है।
- इससे गतिज ऊर्जा की पुष्टि होती है और आवोगाद्रो संख्या के निर्धारण में मदद मिलती है।
निष्कर्ष: ब्राउनी गति कोलॉइड विज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो कोलॉइडी कणों की गतिशीलता को स्पष्ट करता है और कोलॉइड विलयनों की स्थिरता बनाए रखने में सहायक होता है।
यह लेख upboardclasses.in द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
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